करे साधुआ खेतवा ना बोवाई ?

करे साधुआ खेतवा ना बोवाई ?

है अपना हिन्दुस्तान कहाँ ? यह बसा हमारे गाँवों में ?

स्वर्ग से गाँव ?

शुद्ध ताज़ी हवा बहती है जहां.

गाँव के भोले भाले सीधे सादे लोग.

दूध दही की नदियां बहती हैं गाँवों में.

बेचारा किसान.

जी तोड़ .......हाड़ तोड़ मेहनत करके भी दाने दाने को मोहताज .....बेचारा किसान.

ये कुछ पसंदीदा डायलोग हैं हमारे लोगों के. यही लिखते पढ़ते देखते सुनते आये हैं हम लोग ........

अब मुझसे सुन लो ......

अब ना रहता हिन्दुस्तान गाँवों में .......भैया हिन्दुस्तान चला गया शहर के slums में ...... अब तो जो नकारे निकम्मे बेकार बौड़म पड़े हैं गाँव में.

हमारे गाँव स्वर्ग ......hahahahahaha ......i cant stop laughing ...... अबे सुरग तो अब कश्मीर भी न रहा ......यहां कहाँ आ गया सुरग ढूंढने बावले ....... अबे बावले यहां तो बजबजाती नालियां है ......दिन में मक्खियाँ और रात के मच्छर ....... गाँव के बाहर हर सड़क पे सिर्फ और सिर्फ एक ही चीज दिखती है ........ताजा मल ....... आ जा सूंघ ले .......

भोले भाले सीधे सादे .......oh my god ......rolling on the floor and laughing and laughing and laughing ......वाकई बड़े भोले हैं ......साले भोले न होते तो मायावती और मुलायम सिंग लालू को ही वोट देते ........ इतने सीधे हैं की चक्कर में फंस मत जाना कभी ....... चरस बो देंगे .......

दूध दही की नदिया नहीं अब तो नालियां बहती हैं .......per person availability आज भी 160 ग्राम ही है दूध की इस देश में. गाँव की 80 % जनता ऐसी जिसने पूरी जिंदगी में कभी एक लीटर दूध न पीया होगा पूरे जीवन में ....... black tea नसीब न होती अच्छे अच्छे बाबू साहब लोगों को.

जिसके दरवाजे गाय भैंस खड़ी भी है दूध तो उसके बच्चे को नसीब नहीं ...... सारा बाल्टा वाला नाप के ले जाता है ........

और बेचारा किसान .......किसी जमाने में करता रहा होगा हाड़ तोड़ मेहनत.

अब काहे की मेहनत ?

पुराने जमाने में तो 4-6 बैल होते थे खूंटे पे और 4 - 6 गाय भैंस. उन्ही का चारा भूसा दाना पानी देख रेख ......अब न बैल न पशु न चारा ......साल में दो बार बुलवा लेते है ट्रेक्टर ........जोत दे भाई .......

पहले हल चलाता था अब मेढ़ पे बैठ के खाली time note करता है. पहले रहट चलाता था .......दोन चलाता था .......बैलों से पानी खींचता था कुए से ....... अब तो सिर्फ handle मारना है या सिर्फ बटन दबाना है. पहले कम से कम नाली देखनी पड़ती थी .....अब तो प्लास्टिक pipe है ........ सिर्फ पाइप सरकानी है .......harvester से कट जाएगा नहीं तो मजदूर. पहले महीनों चलती थी thrashing .... बैलों से कुचलते थे गेहूं फिर ओसाते थे ........दौरी कहते थे. अब तो बड़का thrasher आता है और सिर्फ 3 घंटे में 6 बीघे का गेहूं बोरे में ....... भूसा ट्रेक्टर trolly से ढो के घर में ........

story में twist .......ये ऊपर जो मेहनत लिखी है ये भी किसान महोदय को नहीं करनी है ....... 3 बीघे की खेती के लिए भी मजूरा चाहिए. सारी खेती मुसहर करते हैं. बेचारा किसान तो सिर्फ गेहूं बांटते समय बोरियां गिनने की हाड़ तोड़ मेहनत करता है.

आज शाम हम दोनों भाई ......माहपुर के बेचारे किसान .......एक एकड़ की गेहूं की फसल की टोटल लेबर जोड़ रहे थे.

वो मेहनत जो मुसहर ने की ......

तीन बार ट्रेक्टर की जुताई का टाइम नोट किया.

दो लड़कों ने बीज छीटा .....2×2 hrs हो गयी बुवाई. =4 man hours

3 बार पानी दिया. 3 ×6hrs ×2boys = 36 man hours

कटाई .......6men × 8 hrs =48 man hours

thrashing ...... 2hrs ×6 boys = 12 man hours

भूसा ढुवाइ ......3 hrs ×3 boys =9 man hours

miscellaneous .......खाद यूरिया डाल .....घूम आये. बकरी घुसी थी वो भगा दी. बकरी के मालिक को गन्दी गन्दी गाली दी etc etc ...12hrs

total = 122 man hours.

120 दिन की crop में बेचारा किसान और उसका मजदूर दोनों मिल के 122 घंटे यानि 1 हर per day की हाड़ तोड़ मेहनत करता है ........per acre .

ये आंकड़ा UP के गाजीपुर जिले के एक ठाकुर साहब का है. राजस्थान हरियाणा पंजाब वाले कुछ ज़्यादा कर लेते होंगे.

मित्रो ......ये आज की अधिकाँश indian agriculture की स्थिति है. पूरी ईमानदारी से. अब आपको जितना बेचारा बताना है बेचारे किसान को बताइये. बेचारा victim ........

इसमें भी याद रखिये कि 100 %बड़े किसान 99 % मझोले अपने खेत में पैर तक नहीं रखते. पंजाबी हरियाणा वाले इक्का दुक्का छोड़. सिर्फ भूमिहीन किसान या फिर आधा एकड़ वाले दलित पिछड़े ही अपने हाथ से कृषि करते हैं. बाकी तो सिर्फ सधुआ मुसहर को अगोरते हैं ......

करे साधुआ खेतवा ना बोवाई ?

अजित सिंह (उदयन स्कूल के संस्थापक)