क्या है किसान कमाई की सच रोटी कपड़ा भी नसीब नही

क्या है किसान की दोगुनी कमाई के दौर का सच

क्या है किसान की दोगुनी कमाई के दौर का सच

सरकारी आंकड़ो में करोड़ों कमाने बाला किसान उसके परिवार की दैनिक जरूरत रोटी कपड़ा और मकान भी पूरी नही कर पाता है I
 भारत के किसान उन्नतशील और समृद्ध थे। ग्रामीण कृषक कृषि पर गर्व अनुभव करते थे, संतुष्ट थे। गाँवों में कुटीर उद्योग फलते फूलते थे। लोग सुखी थे। भारत के गाँवों में स्वर्ग बसता था। किन्तु समय बीतने के साथ नगरों का विकास होता गया और गाँव पिछड़ते गये।
भारत के किसान की दशा अब दयनीय है। इसका मुख्य कारण अशिक्षा है। अशिक्षित होने के कारण किसान  गाँवों में साहूकारों, जमींदारों और व्यापारियों का अनावश्यक दबदबा है। किसान प्रकृति पर निर्भर करते हैं और सदैव सूखा तथा बाढ़ की चपेट में आकर नुकसान उठाते हैं। कर्जों में फंसे, तंगी में जीते, छोटे छोटे झगड़ों को निपटाने के लिए कचहरी के चक्कर लगाते हुए ये अपना जीवन बिता देते हैं।
ऐसे समय में जब केंद्र सरकार किसान की आय दो गुनी करने के प्रयास में है, यह आंकड़ा बताता है कि दो गुनी हो भी गई तो भी किसानों को इस आय में गुजर-बसर मुश्किल है।एक किसान प्रति एकड़ खेत से प्रति महीने मात्र 800 रुपए की कमा पाता है।
आज खेती फायदे के बजाए नुकसान दे रही है जिससे किसान खेती छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं। प्रधानमंत्री ने चुनाव से पहले स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों का समर्थन किया था, लेकिन उस वायदे को भुला दिया गया। उन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाने की मांग की और कहा कि यह क्षेत्र उत्पादन के मामले में अन्य जगहों को पीछे छोड़ने की ताकत रखता है।
किसानों के दो या पांच हजार के कर्ज के लिए तहसीलदार उसे बंद कर देता है, लेकिन करोड़ों रुपए का कर्ज हड़प कर जाने वाले उद्योगपतियों का कुछ नहीं किया जाता। उन्होंने कहा कि किसानों की उपज के भाव तय करने वालों को खेती के बारे में कुछ पता नहीं होता कि किसान किन हालातों और मुश्किलों में खेती करते हैं। 
खेती के हिसाब से देश के सबसे समृद्ध राज्यों में से एक हरियाणा के दस ज़िलों में एक सर्वे किया गया, जिसमें सामने आया है एक किसान विपरीत मौसमी परिस्थितियों का सामना करते हुए प्रति एकड़ प्रति फसल 4,799 रुपए तक कमा पता है।
इन अर्थशास्त्रियों ने सर्वे में गेहूं की छह महीने की फसल को चुना। गेहूं के बीज की बुवाई से लेकर, खेती की बीच की सारी लागत के साथ ही मंडी में फसल बिकने तक का खर्चा शामिल किया।
इतना ही नहीं अर्थशास्त्रियों ने फसल उत्पादन में लगने वाली लागत का छह महीने का ब्याज व ज़मीन का किराया भी इसमें शामिल किया। हालांकि एक किसान का पूरा परिवार खेतों में श्रम करता है लेकिन मेहनत के रूप में परिवार को छोड़कर केवल किसान की ही लेबर को जोड़ा गया है। खाद, रसायन, बीज, देशी खाद, रिस्क फैक्टर, ट्रांसपोर्टेशन, बायो प्रोडक्ट, निराई-गुड़ाई व कटाई के खर्च को भी सर्वे में शामिल किया गया है।
सर्वे में 10 ज़िलों के 382 किसानों को शामिल किया गया। सर्वे के अनुसार एक एकड़ में गेहूं पैदा करने वाले किसान को फसल के दौरान औसत 4,799 रुपए की बचत होती है। सर्वे में शामिल हुए किसानों के पास 1,873 एकड़ ज़मीन थी।
गेहूं की फसल छह महीनों की होती है, तो यदि औसत बचत को प्रति महीने के हिसाब से देखें तो एक किसान ने औसत प्रति महीने गेहूं की फसल से केवल 799 रुपए कमाए।
रिपोर्ट में कृषि अर्थशास्त्रियों ने बताया कि प्रदेश में किसानों को प्रति एकड़ ज़मीन पर गेहूं की फसल पैदा करने के लिए 29 हज़ार, 691 रुपए खर्च करना पड़ता है। छह माह तक परिवार समेत मेहनत करने के बाद किसानों को फसल व उसके बायो प्रोडक्ट समेत 34 हज़ार, 490 रुपए की आमदनी होती है। अर्थशास्त्रियों ने यह सर्वे रेडम सेंपल के आधार पर किया है।