रासायनिक खाद

रासायनिक खाद जमीन की मित्र या शत्रु

कृषि को स्थानीय बीजों और संसाधनों पर आधारित करने और रासायनिक खादों, कीटनाशकों से मुक्त करने का महत्व पर्यावरण की दृष्टि से तो समझा जाने लगा है, पर बहुत-से लोग अब भी इसकी व्यावहारिकता के बारे में सवाल उठाते हैं। उन्हें लगता है कि इससे पैदावार में कमी आएगी और साथ ही किसान की आय भी घटेगी। दूसरी ओर, दुनिया के अनेक भागों से ऐसे उदाहरण सामने आ रहे हैं जहां किसानों ने पर्यावरण की रक्षा वाली टिकाऊ खेती को अपना कर अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने में भी सफलता प्राप्त की। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के डॉ.

खेत और खेती को खत्म करती रासायनिक खाद

कृषि अब पर्यावरण असंतुलन की मार भी झेल रही है। रासायनिक उर्वरकों के बेइंतिहा इस्तेमाल से खेत बंजर हो रहे हैं और सिंचाई के पानी की कमी हो चली है। साठ के दशक में हरित क्रांति की शुरुआत के साथ ही देश में रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशक दवाओं, संकर बीजों आदि के इस्तेमाल में भी क्रांति आयी थी। केंद्रीय रासायनिक और उर्वरक मंत्रालय के रिकॉर्ड के मुताबिक सन् 1950-51 में भारतीय किसान मात्र सात लाख टन रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल करते थे जो अब बढ़कर 240 लाख टन हो गया है। इससे पैदावार में तो खूब इजाफा हुआ, लेकिन खेत, खेती और पर्यावरण चौपट होते चले गये। करीब साल भर पहले इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर, विश्व भार