गन्ने की फसल में अगस्त माह किसान भाई क्या करें

अन्तः कर्षण क्रियायें –
अगस्त माह के अन्त तक गन्ने के थानों पर अन्तिम रूप से 20-25 सेंटीमीटर मिट्टी चढ़ायें उसके पश्चात वर्षा न होने पर सिंचाई करें।
अधिक वर्षा की स्थिति में जलनिकास की व्यवस्था करें।
सूखे पत्तों को निकाल कर लाइनों के मध्य पलवार के रूप में बिछा दें। इससे बेधक कीटों का प्रकोप कम होगा तथा भूमि में नमी संरक्षण एवं कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ेगी।
माह के अन्त तक पहली बँधाई के 50 सेंटीमीटर ऊपर बढ़वार बिन्दु को छोड़ते हुये, दूसरी बँधाई कर दें।
जून-जुलाई में यदि गन्ने में ढेंचा बोया हो तो उसकी पलटाई कर दें।
ट्रेंच विधि से गन्ने की मध्य सितम्बर में बुवाई हेतु आवश्यक निवेशों की व्यवस्था करें।
फसल सुरक्षा –
बेधक कीटों के जैविक नियन्त्रण के लिए जुलाई माह की भाँति ही ट्राइकोग्रामा के 50,000 कीट/हेक्टेयर की दर से प्रत्येक 10 से 15 दिन के अन्तर से रोपित करते रहें।
रोगग्रस्त पौधों को नियमित अन्तराल पर खेत से जड़ सहित निकालकर नष्ट करते रहें तथा रिक्त स्थान पर संवर्धित ट्राइकोडर्मा का बुरकाव कर दें।
बेधक कीटों के रसायनिक नियन्त्रण के लिये खेत में पर्याप्त नमी की अवस्था में क्लोरेंट्रेनिलिप्रोले 18.5 एस॰सी॰ 500-600 मिलीलीटर या फिप्रोनिल 2.0 लीटर मात्रा/हेक्टेयर का छिड़काव या थिमेट 10 जी॰ 33 किलोग्राम/हेक्टेयर की दर से जून के अन्तिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक गन्ने की जड़ के पास प्रातः 10 बजे से पूर्व बुरकाव करें।
पायरिल्ला कीट के नियन्त्रण के लिये इपीरिकैनिया परजीवी के कोकून या अण्डसमूह को अधिकता वाले क्षेत्रों से लाकर अपने खेतों में गन्ने की पत्तियों के पीछे लगा दें। इपीरिकैनिया परजीवी के कोकून सफ़ेद रंग तथा अण्डसमूह चटाईनुमा हल्के भूरे रंग के होते हैं पत्तियों के पिछले भाग पर पाये जाते हैं।
पोक्का बोइंग रोग की शुरुआत नई पत्तियों के आधार पर पीले-सफेद धब्बों से होती है जो आगे चलकर लाल-भूरे हो जाते हैं। पत्तियाँ सिकुड़न युक्त, घुमावदार, सामान्य से छोटे आकार की होती है जो कट-फट कर विकृत हो जाती हैं। धीरे-धीरे संक्रमण नीचे की तरफ तने के वृद्धि बिन्दु को प्रभावित करता है तथा तने की छाल पर एक, दो या अधिक चाकू के कट जैसे आड़े निशान दिखते हैं। 20-30° सेन्टीग्रेड तापमान, 70-80% आपेक्षिक आर्द्रता, बदली या फुहार वाली बारिश इस रोग के प्रसार के लिये सहायक परिस्थितियाँ हैं। कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (2 मिलीलीटर/लीटर पानी) का 15 दिन के अन्तराल पर 2 या 3 छिड़काव कर रोग को नियंत्रित किया जा सकता है।

डॉ आर के सिंह
अध्यक्ष कृषि विज्ञान केन्द्र बरेली
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