जलकुंभियों से बनाये मूल्यवान जैविक खाद

 

देश का शायद ही कोई गांव या शहर का ऐसा हिस्सा बचा होगा जहां पर ठहरा पानी हो और उसमे जलकुम्भी का राज न हो। सरकार चाहे तो एक पंथ से दो काज कर सकती है। इसपर कंट्रोल को लेकर बेरोजगार युवाओं को प्रशिक्षित करके फिजिकल तौर पर इसे खतम किया जा सकता है और दवाइयों का निर्माण करके या आयुर्वेद की दवाइयां बनाने वाली कंपनियों को सप्लाई करके युवा मोटी कमाई कर सकते हैं। इसके और भी उपयोग हैं जैसे फर्नीचर, हैंडबैग, आर्गेनिक खाद,जानवरों के चारे के साथ कागज बनाने में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।

देश की पुरातन चिकित्सा पद्दति आयुर्वेद में इसका खासा महत्व है। आस्थमा, कफ,एंजाइमा,थाइराइड,शरीर के अंदरूनी दर्द, त्वचा संबंधी बीमारियों सहित तमाम अन्य प्रकार के उपयोग को लेकर इसका तैयार होने वाला तेल 1800 रुपये लीटर तक बिकता है। इतना ही नहीं सुखा कर पाउडर के रूप में किलो में इसकी कीमत 900 रुपये किलो से लेकर 1200 रुपये किलो तक में है। जलकुम्भी पर रिसर्च कर रहे दिल्ली के डाक्टर अर¨वद ¨सह इसके उपयोग से इस पर नियंत्रण की वकालत करते हैं।

जलकुंभियों से बनाये मूल्यवान जैविक खाद

भारत के सभी राज्यों के निचले इलाको में जहां पानी जमा होता है,या गंदे तालाब है,वहाँ जलकुम्भी ज्यादा मिलती है। बारिश के वक्त यह तेजी से बढती है। पानी के निकास वाली जगहों जैसे नालों व तालाबों में जलकुम्भी उग जाने से पानी निकलने में परेशानी आती है।यह एक खरपतवार है लेकिन इसके पौधे से हमे फसल के लिए जरुरी पोषक तत्व नाइट्रोजन,फास्फोरस और पोटाश मिलता है।इसका इस्तेमाल हम कार्बनिक खाद के रूप में कर सकते हैं। जलकुम्भी में नाइट्रोजन 2.5 फीसदी,फास्फोरस 0.5 फीसदी,पोटेसियम 5.5 फीसदी और कैल्श्यम आक्साइड 3 फीसदी पाया जाता है। इसके अलावा इसमें तकरीबन ४२ फीसदी कार्बन होता है। केमिकल खादों के साथ जलकुम्भी का इस्तेमाल करने पर मिट्टी के भौतिक गुणों पर इसका बड़ा असर पड़ता है। नाइट्रोजन और पोटेशियम का अच्छा जरिया होने की वजह से आलू के लिए जलकुम्भी का महत्व और भी ज्यादा हो जाता है।
 

हाइसिंथ यानि की जलकुंभी, पोखरे या तलाब में होने वाले एक तरह का खरपतवार जिसको अधिकांश लोग अब तक अभिशाप ही मानते आए हैं। लेकिन जिले कुछ प्रगतिशील किसान इस अभिशाप को भी अब वरदान बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं। सालों साल पोखरों और तलाब में टिड्डी दल की तरह उगने वाले खर पतवार की सफाई में सार्वजनिक पैसे का एक बड़ा हिस्सा खर्च होता रहा है। सफाई के बाद भी इस बात की गारंटी नहीं रहती कि अगले साल ये खर पतवार नहीं उगेगें या कि तालाब पूरी तरह साफ हो गया। 

सिंचाई विभाग ने इस वित्त वर्ष में पोखरों और तालाब की सफाई और पानी में उगे हाइसिंथ यानि की जलकुंभी के खात्मे के लिए खर पतवार नाशक के छिड़काव के मद में 5.5 करोड़ रुपए का बजट तय किया है। खर पतवार नाशक की मदद से जलकुंभी को पानी में ही नष्ट किया जाता है। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया को उस सौर ऊर्जा की बर्बादी के रूप में देखा जाता है जो कि जैव पदार्थ में तब्दील होता है। इसके साथ ही खरपतवार नाशक पारिस्थितीकीय तंत्र के लिए भी हानिकारक साबित होता है। उद्यमी के रूप में पहचान स्थापित कर चुके प्रगतिशील किसान देवीनेनी मधुसूदन राव का मानना है कि योजनाबद्ध तरीके से काम करके जलकुंभियों का उपयोग मूल्यवान जैविक खाद (कंपोस्ट) बनाने के लिए किया जा सकता है जिसको 15 रुपए किलो के दर से बेचा जा सकता है।

साधारण प्रणाली
नियमित डीजल इंजन द्वारा संचालित मशीन के उपयोग से पानी में उगने वाले खर पतवार की कटाई आसानी से की जा सकती है।
मशीन जलकुंभियों को पानी की सतह से बाहर निकाल कर टुकड़ों में विभक्त कर देता है जिससे इनका उपयोग करना और इनके परिवहन में आसानी होती है। इन जलकुंभियों के कटे हुए टुकड़ों से उच्च श्रेणी के कंपोस्ट बनाए जा सकते हैं। परीक्षणों से पता चला है कि जलकुंभी उर्रवरक अवयवों का उच्च अवशोषक है। जलकुंभी शुद्दीकरण का एक साधन प्रदान करते हैं और बड़े पैमाने पर नष्ट हो जाने वाले उपजाऊ तत्वों को अवशोषित कर, पारिस्थितीकीय तंत्र पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को कम करते हैं। 

 

जलकुंभियों से बनने वाले उच्च श्रेणी के कंपोस्ट 

जलकुंभियों से निर्मित कंपोस्ट 15 रुपये प्रति किलो बिकते हैं।
पोखरे और तलाब के ताजे पानी में पैदा होने वाले खरपतवार को जलकुंभी कहते है। इससे पानी का बहाव बाधित होता है, पानी में नाव की गति को बाधा पहुंचती है और मछलीपालन जैसे उद्यम को इससे नुकसान होता है।
मशीन की मदद से जलकुंभियों को टुकड़ों में काट कर उससे आसानी से उच्च श्रेणी के कंपोस्ट का निर्माण किया जा सकता है।
जलकुंभियों में प्रचुर मात्रा में नाइट्रोजन अवयव होते हैं इसलिए इसे बायोगैस के लिए एक अवयव के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। 

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