बुबाई विधि से धान की खेती

सन 1970 से पूर्व भारत में धान की सीधी बुवाई छिटकवाँ विधि से की जाती थी परन्तु बरसात के मौसम में छिटकवाँ विधि से बोये गये धान में खरपतवार नियन्त्रण करना अत्यधिक कठिन कार्य था तथा तब खड़ी फसल में खरपतवार नियन्त्रण के लिये कोई रसायन भी उपलब्ध नहीं था। खरपतवारों की अधिकता के कारण उत्पादन बहुत कम होता था । अतः ऐसी परिस्थिति में धीरे-धीरे सभी किसान अधिक कठिन तथा अधिक खर्चीली रोपाई विधि को अपनाने लगे जिसमें खेत में पानी भरा रखकर खरपतवारों को रोका जाता है तथा भरे हुये पानी में उपयोग के लिये खरपतवारनाशी भी उपलब्ध हैं। परन्तु रोपाई विधि से एक किलोग्राम धान के उत्पादन में 3000 से 5000 लीटर पानी व्यय होता है। एशिया में कुल सिंचाई जल का लगभग 50% पानी धान की सिंचाई में लग जाता है तथा एशिया में विश्व के सिंचाई जल का लगभग 34-43% पानी धान की सिंचाई में लगता है।
धान उत्पादन के विभिन्न संसाधनों जैसे पानी, श्रम आदि के अपव्यय को कम करने के लिये वर्तमान में धान की सीधी बुवाई को बढ़ावा दिया जा रहा है। धान की सीधी बुवाई करने से धान की पौधशाला प्रबन्धन का पूरा व्यय, पौध को उखाड़ने पर होने वाला व्यय, मुख्य खेत की तैयारी, कंधेर पर होने वाला व्यय तथा रोपाई की लागत में बचत होती है। साथ ही कंधेर करने से मृदा में केशिका छिद्र टूट जाते हैं, मृदा समुच्चय नष्ट हो जाते हैं, महीन चिकनी मिट्टी के कण बिखर जाते हैं तथा कम गहराई पर कठोर पर्त बन जाती है। यह स्थिति धान की खेती के लिये तो लाभदायक होती है क्योंकि इससे खेत में पानी खड़ा रखने में मदद मिलती है, खरपतवार नियन्त्रण होता है, पानी तथा पोषक तत्वों की उपलब्धता में सुधार होता है, धान की पौध के रोपण तथा स्थापित होने में आसानी होती है। परन्तु यह मृदा के भौतिक गुणों पर विपरीत प्रभाव डालकर जैसे खराब मृदा संरचना, मृदा की निचली सतहों में जल की पारगम्यता कम होना तथा संघनन आदि के कारण अगली फसल की वृद्धि तथा उपज पर विपरीत प्रभाव डालती है। सीधी बुवाई में कंधेर न करने से भूमि की भौतिक दशा खराब नहीं होती है। इसमें श्रमिकों की कम आवश्यकता होने के कारण श्रमिकों की उच्च माँग के समय भी बुवाई कार्य में विलम्ब नहीं होता है। सीधी बुवाई पर्यावरण अनुकूल है इसमें भूमिगत जल का अपव्यय कम होता है तथा जल भरकर कंधेर करने के स्थान पर पलेवा करके बुवाई कर दी जाती है। खेत में वानस्पतिक वृद्धि की अवस्था में पानी भरकर नहीं रखना पड़ता है। धान की समय से बुवाई, समय से कटाई होने के कारण रबी की फसल की बुवाई में विलम्ब नहीं होता है जिससे दोनों फसलों से अच्छा उत्पादन प्राप्त होता है।
धान की सीधी बुवाई के लाभ –
 श्रम की बचत ( परम्परागत धान की रोपाई विधि की अपेक्षा सीधी बुवाई में मात्र 1-2 श्रमिक)।
 आसान और तीव्र योजना के कारण एक निश्चित समय में बुवाई पूर्ण।
 सीधी बुवाई में फसल के 7-10 दिन पूर्व परिपक्व होने के कारण अगली फसल की समय से बुवाई तथा अच्छा उत्पादन।
 जल संसाधन का बेहतर उपयोग तथा उच्च जल तनाव सहिष्णुता।
 अधिक लाभदायकता विशेष रूप से निश्चित सिंचाई सुविधा की परिस्थितियों में।
 कम मीथेन उत्सर्जन (शुष्क सीधी बुवाई < गीली सीधी बुवाई < परम्परागत रोपण विधि)।
 शोधों के अनुसार धान की सीधी बुवाई कर खेत का बेहतर ढंग से प्रबन्धन किया जाये तो इससे रोपित धान के बराबर ( शोधों में 22 से 87 कुंतल/हेक्टेयर तक) उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
 शोधों के अनुसार आर्थिक दृष्टि से भी यह रोपित धान के मुकाबले बहुत किफायती (सीधी बुवाई में लाभ:लागत अनुपात 2.29 से 3.12 जबकि रोपित धान में 1.93 से 2.66) है।
 शोधों के अनुसार धान की सीधी बुवाई में जल उत्पादकता रोपित धान से 25% अधिक है।
 शोधों के अनुसार धान की सीधी बुवाई में श्रम की बचत रोपित धान से 13-37% अधिक है।
 धान की सीधी बुवाई, रोपित धान का बेहतर तथा पर्यावरण अनुकूल विकल्प है जो कि तकनीकी व आर्थिक रूप से पूर्ण व्यावहारिक है।
धान की सीधी बुवाई में पौधशाला में पौध तैयार न करके बीज को सीधे मुख्य खेत में बोते हैं जैसे पूर्व में अंकुरित बीजों को कंधेर किए हुये खेत में या पानी भरे खेत में बिखेर कर बोना या कंधेर किए खेत में ड्रम सीडर से बीज बोना या शुष्क बीज शय्या पर शुष्क बीज बिखेरकर या सीड ड्रिल से बोना आदि।
मृदा का प्रकार – धान की सीधी बुवाई के लिये मध्यम से भारी मृदायें उपयुक्त रहती हैं। हल्की मृदाओं में प्रायः आयरन की कमी होने के कारण फसल की वृद्धि तथा उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
बुवाई का समय – सामान्य धान की सीधी बुवाई जून के पहले सप्ताह से तीसरे सप्ताह तक तथा बासमती धान की सीधी बुवाई के लिये जून का तीसरा सप्ताह उपयुक्त रहता है। प्रजाति के अनुसार बुवाई का समय वही रखना चाहिये जो प्रजाति की पौध डालने का समय होता है।
लेज़र लेवेलिंग तथा खेत की तैयारी – धान की सीधी बुवाई के लिए खेत जितना अच्छी तरह से समतल होगा परिणाम उतने ही बेहतर प्राप्त होंगे। इसके लिये आवश्यक है की जहां तक हो सके खेत को धान की सीधी बुवाई से एक माह पूर्व लेज़र लैंड लेवलर से लेवल कराने के बाद उसमें पानी भरकर ऊंचे-नीचे स्थानों का पता लगाकर एक बार पुनः लेज़र लेवलर से और अच्छी तरह से लेवल करा लिया जाये। यह सिंचाई पिछली धान की फसल के बीजों तथा खरपतवारों के बीजों को अंकुरित करने में भी मददगार होगी जिनको धान की बुवाई से पूर्व नष्ट किया जा सकता है। खेत तैयार करने के लिये 2-3 जुताई डिस्क हैरो या कल्टीवेटर से अथवा रोटावेटर से खेत तैयार करके पटेला लगा देना चाहिये।
बुवाई यंत्र एवं बीज अंतरण – धान की सीधी बुवाई सामान्य सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल, जीरो टिल सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल, मल्टी क्रॉप सीड ड्रिल, वर्टिकल प्लेट मीटरिंग मैकेनिज्म, इंक्लाइंड प्लेट मीटरिंग मैकेनिज्म, और ड्रम सीडर से की जा सकती है। इनमें इंक्लाइंड प्लेट मीटरिंग मैकेनिज्म सर्वोत्तम परिणाम देता है क्योंकि इसमें बीज कम टूटता है तथा लाइन से लाइन के साथ-साथ बीज से बीज की दूरी भी निर्धारित करता है। शुष्क विधि में बीज की गहराई 2-3 सेंटीमीटर तथा गीली विधि में 3-5 सेंटीमीटर रखते हैं। लाइन से लाइन की दूरी 20 सेंटीमीटर रखते हैं।
सीधी बुवाई हेतु प्रजातियों का चयन – सीधी बुवाई के लिये शीघ्र पकने वाली प्रजातियों जैसे सरजू-52, नरेन्द्र-97, नरेन्द्र-359, मालवीय धान-2, पी॰आर॰-115 तथा बासमती प्रजातियों में पूसा बासमती -1509, पूसा बासमती -1121, पूसा बासमती -1, पंजाब महक, सी॰एस॰आर॰ 30 तथा तरावड़ी बासमती आदि प्रजातियों का चयन करना चाहिये।
बीजदर तथा बीज उपचार – शुद्धता के साथ बोने वाली सीड ड्रिल में बीजदर 20-30 किलोग्राम/हेक्टेयर रखते हैं। बुवाई से पहले बीज को 2 ग्राम स्ट्रेप्टोसायक्लीन + 20 ग्राम ट्रायसायक्लाजोल प्रति 10 किलोग्राम बीज की दर से शोधित कर लेते हैं।
शुष्क सीधी बुवाई – i) खेत में शुष्क बीज शय्या पर जीरो टिलेज या परम्परागत ढंग से बीज शैय्या तैयार करके सूखा बीज बिखेरकर, ii) परम्परागत ढंग से बीज शैय्या तैयार करके डिबलिंग द्वारा, iii) परम्परागत ढंग से बीज शैय्या तैयार करके या न्यूनतम जुताई करके पावर टिलर चालित सीड ड्रिल या जीरो टिल सीड ड्रिल या रेज्ड बेड सीड ड्रिल द्वारा या मल्टी क्रॉप सीड ड्रिल द्वारा लाइनों में धान के बीज की बुवाई करके शुष्क विधि से धान की सीधी बुवाई की जा सकती है। लाइनों में बीज की बुवाई के लिये सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल का प्रयोग किया जाता है जो बीज और उर्वरक दोनों की बुवाई करती है।
जीरो टिलेज मशीन या मल्टी क्रॉप सीड ड्रिल से धान की सीधी बुवाई करने से पहले मशीन को 25-30 किलोग्राम/हेक्टेयर बीज तथा 120 किलोग्राम/हेक्टेयर उर्वरक गिराने के लिये संशोधित कर लेना चाहिये। बीज 3-4 सेंटीमीटर की गहराई पर गिरना चाहिये। अधिक गहराई पर बीज गिरने पर अंकुरण विलम्ब से होगा तथा कल्ले कम आने के कारण उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। बुवाई करते समय खाद व बीज की नालियों की निरन्तर निगरानी करते रहना चाहिये क्योंकि इनके बन्द हो जाने पर पौधों की संख्या या उर्वरक का वितरण प्रभावित होगा जो उपज को कम कर देगा। प्रायः बुवाई के समय मशीन में डी॰ए॰पी॰ या एन॰पी॰के॰ या सिंगल सुपर फॉसफेट ही प्रयोग करना चाहिये। यूरिया, पोटाश तथा जिंक सल्फेट का प्रयोग पौधों के जमाव के बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में करना चाहिये। इसमें बुवाई के बाद पाटा लगाने की आवश्यकता नहीं होती है तथा पक्षियों द्वारा बीज को नुकसान भी नहीं होता है। विभिन्न शस्य विधियों जैसे उपयुक्त प्रजाति का चुनाव, उपयुक्त बुवाई का समय, उपयुक्त बीजदर, उपुक्त खरपतवार एवं जल प्रबन्धन के द्वारा धान की सीधी बुवाई द्वारा भी रोपित धान के बराबर उपज प्राप्त की जा सकती है
गीली विधि से धान की सीधी बुवाई – कंधेर किये हुये खेत में सतह के ऊपर पूर्व अंकुरित बीजों की बुवाई को वायुजीवी गीली विधि से धान की सीधी बुवाई कहते हैं परन्तु जब बीज को कंधेर किये हुये खेत में पूर्व अंकुरित बीज को ड्रिल करके कंधेरयुक्त मिट्टी में दबा देते हैं तो इसे अवायुजीवी गीली विधि से धान की सीधी बुवाई कहते हैं।
ड्रम सीडर से धान की सीधी बुवाई - ड्रम सीडर से बुवाई में अधिक बीज (लगभग 40 से 50 किलोग्राम बीज/हेक्टेयर) की आवश्यकता होती है। बुवाई से पहले बीज को 2 ग्राम स्ट्रेप्टोसायक्लीन + 20 ग्राम ट्रायसायक्लाजोल प्रति 10 किलोग्राम बीज की दर से शोधित कर लेते हैं। तत्पश्चात इसकी जँवई (बीज को अंकुरित करना) करते हैं तथा जैसे ही समस्त बीज में अंकुर बाहर निकल आते हैं बीज बुवाई योग्य हो जाता है। मुख्य खेत में कंधेड़ करने के 5-6 घण्टे बाद ड्रम सीडर के ड्रमों में पूर्व अंकुरित बीज बराबर मात्र में भरकर धान की सीधी बुवाई कर देनी चाहिये। इससे अधिक देर करने पर मिट्टी कड़ी होने लगती है जिसका दुष्प्रभाव धान के पौधों की प्रारम्भिक बढ़वार तथा उपज पर पड़ता है। बुवाई के समय खेत में 4-5 सेंटीमीटर से अधिक पानी नहीं भरा होना चाहिये। इतने पानी में ड्रम सीडर आसानी से चल जाता है और बीज सीधी लाइन में गिरता है अन्यथा लाइनें टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं। आरम्भिक अवस्था में इसकी चिड़ियों से रखवाली करनी पड़ती है अन्यथा नुकसान अधिक हो जाता है।
बीज दर एवं बीज उपचार - बुवाई से पहले बीज को 2 ग्राम स्ट्रेप्टोसायक्लीन + 20 ग्राम ट्रायसायक्लाजोल प्रति 10 किलोग्राम बीज की दर से शोधित कर लेते हैं। तत्पश्चात इसकी जँवई (बीज को अंकुरित करना) करते हैं तथा जैसे ही समस्त बीज में अंकुर बाहर निकल आते हैं बीज बुवाई योग्य हो जाता है।

पोषक तत्व प्रबन्धन – बुवाई के समय 130 किलोग्राम डी॰ए॰पी॰ या 185 किलोग्राम एन॰पी॰के॰ सीड ड्रिल में प्रयोग करना चाहिये। नत्रजन के लिये 260 किलोग्राम यूरिया चार बार में टॉप ड्रेसिंग के रूप में प्रयोग करना चाहिये। रोपाई के 8-10 दिन पश्चात 65 किलोग्राम यूरिया + 65 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश + 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट (21%) का प्रयोग करना चाहिये। शेष तीन भाग यूरिया को बुवाई के क्रमशः 4,7 और 10 सप्ताह में प्रयोग करना चाहिये। बासमती धान में पोषक तत्व रोपित धान तरह ही प्रयोग करेंगे केवल नत्रजन की मात्रा रोपाई विधि से 25 % अधिक डालनी चाहिये।
खरपतवार प्रबन्धन – धान की सीधी बुवाई में एकीकृत खरपतवार प्रबन्धन अपनाकर खरपतवारों का जितना बेहतर प्रबन्धन करेंगे सफलता का प्रतिशत उतना ही अधिक बढ़ जायेगा। शस्य विधियों में जीरो टिलेज द्वारा बुवाई, सतह पर पलवार बिछाना, आवरण फसलें (ढेंचा, मूँग, लोबिया आदि), ब्राउन मल्चिंग आदि के द्वारा खरपतवारों के दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है। धान की सीधी बुवाई यदि पंक्तियों में की जाती है तो खेत में खुरपी द्वारा पहली निराई बुवाई के 20 से 25 दिन बाद तथा दूसरी निराई बुवाई के 40-45 दिन बाद करनी चाहिये। घासकुल तथा चौड़ी पत्ती दोनों तरह के खरपतवारों की रोकथाम के लिये बुवाई के 15 से 25 दिन (खरपतवार की 3-5 पत्ती तथा 5-7 सेंटीमीटर ऊँचाई) की अवस्था पर पर बिस्पायरीबैक सोडियम 10% एस॰सी॰ 100-120 मिलीलीटर रसायन 120 लीटर पानी में घोलकर /एकड़ की दर से छिड़काव करें। छिड़काव के 48-72 घण्टे बाद खेत में पानी भर दें। मोथा सहित घास तथा चौड़ी पत्ती खरपतवारों के लिये अज़ीमसल्फ्यूरॉन (0.020 किलोग्राम/हेक्टेयर) तथा सांवा प्रजाति के अतिरिक्त अन्य घासों के नियन्त्रण के लिये फेनोक्साप्रोप + सेफेनर (0.067-0.083 किलोग्राम/हेक्टेयर) का छिड़काव करना चाहिये।
सिंचाई जल प्रबन्धन - भारी मृदाओं में पलेवा करके बुवाई की जाती है। बुवाई के बाद पहली सिंचाई थोड़ा देर से (7-15 दिन) करके इसके पश्चात 5-10 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करते रहते हैं। फसल की क्रान्तिक अवस्थाओं जैसे बीज का अंकुरण, कल्ले निकलना, बाली निकलना तथा पुष्पवस्था पर नमी की कमी नहीं होने देना चाहिये।
धान कि सीधी बुवाई के सम्बन्ध में विभिन्न मतों के होते हुये भी यदि इसका बेहतर ढंग से प्रबन्धन किया जाये तो रोपित धान के बराबर उत्पादकता प्राप्त की जा सकती है। वर्तमान परिदृश्य में पानी की वैश्विक कमी तथा बढ़ती हुई श्रम की लागत को देखते हुये जब धान उत्पादन का भविष्य दाँव पर लगा है ऐसे में धान कि सीधी बुवाई उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन की अपेक्षा सतत उत्पादन प्राप्त करने के लिये एक सर्वाधिक व्यावहारिक विकल्प है।
डॉ आर के सिंह
अध्यक्ष
कृषि विज्ञान केन्द्र, बरेली
[email protected]

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