मौसंबी की उन्नत खेती

मौसंबी की उन्नत खेती

निंबु वर्गीय फलो मे मौसंबी यह अत्यंत महत्वपुर्ण फसल है। देश मे मुख्य रूप महाराष्ट्र मे बडे पैमाने पर इस फसल का उत्पादन किया जाता है। जिसमें अहमद नगर, पुणे , जलगाॅव, जालना, औरंगाबाद, नागपुर, अमरावती जिले अग्रणी है। इसके अतिरीक्त मध्यप्रदेश मे छिंदवाड़ा जिले मे सौसर एवं पांढुरना तहसील मे इसका उत्पादन लिया जाता है। इसके अतिरीक्त आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, पंजाब, हरियाना राज्यो मे मौसंबी की खेती की जाती है।

मौसंबी के लिए जमीन

 
सामान्य काली, 2 फिट तक गहरी वालुकामय जमीन मौसंबी के लिए उत्तम होती है। जमीन का पी. एच. मान 6.5 से 7.5 होना चाहिए। 

 

मौसंबी की जातीया 
. वाशींगटन नॅव्हेल, जाफा, सतगुडी, कॅलेन्शीया, न्यूसेलर, काटोलगोल्ड।

वाशींगटन नॅव्हेलः-
        इसकी छाल मोटी होती है बिजो की संख्या कम होती है इसका उत्पादन कर्नाटका, आंध्रप्रदेश मे किया जाता है। 
कॅलेन्शीयाः- फल मध्यम आकार का होता है। फल का रंग पिला एवं स्वाद खट्टा होता है इसका उत्पादन पंजाब, हरियाणा राज्यो ते किया जाता है। 
सतगुडीः- मध्यम आकार का होता है। फल गोल भरपुर रसदार फल मे 15 से 20 बिज होते है । यह आंध्रप्रदेश, कर्नाटका, महाराष्ट्र मे इसकी फसल ली जाती है। 
न्यूसेलरः- यह रोगमुक्त, दिर्घायु अधिक उत्पादन देने वाली फल आकार मे बडा 200 ग्राम तक भरपुर रसदार फिकी पिली चिकनी चमकदार छाल, स्वाद मे मिठा फल मे 10 से 20 बिज होते है । 
न्युसेलर यह रोग बिमारीयो को सहनशील उत्पादन मे अन्य जातीयो से ज्यादा है फल आकार मे बडा आकर्षक हर पकने पर चमकदार स्वाद मे मिठा भरपुर रसदार होते है। महाराष्ट्र मे इसका ज्यादा उत्पादन किया जाता है। 

खेती कि तैयारी 

मौसंबी के पौधे लगाने के लिए ग्रीष्म काल मे खेत 18  ग् 18 फिट पर मार्क करके 1.5 ग् 1.5 ग् 1.5 फिट गढ्ढे कर लेने चाहिए तथा उन्हे 1 से 1.5 माहतक वैसे ही छोड देना चाहिए जिससे धुप से हानिकारक किट मर कर जाए उसके पश्चात प्रत्येक गढ्ढे मे 40 किलो गोबर की खाद या उपजाउ मिट्टी 1 किलो सुपर फास्फेट 100 ग्राम किटनाशक के मिश्रण से गढ्ढे भर देना चाहिए। पौधे लगाते समय पौधे की आॅख जमीन से 2 से 3 इंच उपर रहे इस बात का ध्यान रहे मौसंबी वर्ष भर कभी भी लगाई जा सकती है। 

 

खाद् एवं उर्वरक 

     मौसंबी यह बहुवर्षीय बागवानी फसल है। अच्छी उपज लेने के लिए नियमीत खाद एवं उर्वरक देना चाहिए जिससे पौधे का पोषन अच्छी तरह हो एवं अच्छी गुणवत्ता के फल प्राप्त हो मौसंबी के पौधे को प्रथम वर्ष 10 किलो गोबर कि खाद, 1 किलो निम कि खाद, नाइट्रोजन 100 ग्राम, फास्फोरस 150 ग्राम, पोटाश 150 ग्राम देना चाहिए एवं 5 वर्ष से 30 किलो की गोबर कि खाद, 5 किलो निम खाद, नाइट्रोजन 800 ग्राम, फास्फोरस 300 ग्राम पोटाश 600 ग्राम कि निर्धारित मात्रा वर्ष मे तिन बार देना चाहिए इसके अतिरीक्त 250 ग्राम सुक्ष्म पोषक तत्व वर्ष मे एक बार देना चाहिए। इसके अतिरीक्त जिवामृत का उपयोग करना चाहिए। जिसमे 200 लि. ड्रम मे 60 किलो गाय को गोबर 500 ग्राम राइजोबियम 500 ग्राम पी.एस.बी। ट्रायकोडरमा 2 किलो गुड, 2 किलो चना, उडद, मुंग, सोयाबिन, ज्वार का 2 किलो आटा 4 दिन सडाने के बाद सिंचाई के वक्त देने से अच्छे नतिजे मिलते है। यह वर्ष मे 2 से 3 बार दे इसमे अतिरिक्त हरी खाद का उपयोग करना चाहिए।

 

सिंचाई निदाई गुडाई 

मौसंबी लगाने के बाद पौधे को स्थिर होने के लिए 2 महिने लगते है। पौधो को लगाने के बाद नियमीत पानी देना चाहिए। हो सके तो ड्रिप सिचाई का उपयोग करना चाहिए, पौधो को थंड के मौसम मे 15 से 20 दिन एवं एवं ग्रीष्म काल मे 8 से 10 दिन मे पानी देना चाहिए। खेत मे बरसात का पानी का संचय ना हो इसका ध्यान रखना चाहिए। 

 

पौधो को आकार देना

     मौसंबी को छतरी का आकार देना चाहिए जिसके लिए तने के 2.5 फिट से 4 से 6 टहनिया रखनी चाहिए प्रथम वर्ष पौधो को लकडी की सहायता से साहारा देना चाहिए। 

 

बहार पकडना 

मौसंबी मे मुख्य रूप से 3 बहार आते है। जुलै से अगस्त मृग सितंबर से नवंबर हस्त फरवरी से मार्च अंबिया 5 वर्ष बाद मौसंबी फल उत्पादन देने लायक हो जाती है। मौसंबी यह सदा हरित पौधे होने से पानी का योग्य नियोजन एवं पौधे मे बहार की अवस्था पहचानने के लिए 1.5 से 2 माह विश्राम देने पर पौधो पर भरपुर फुल आते है। इसे ही बहार कहा जाता है । पौधे मे बहार की अवस्था पहचानने के लिए 1.5 से 2 माह पौधो को पानी नही देना चाहिए। जिससे पौधो की पत्तिया पिली पडकर सुख जाती है एवं गलने लगती है। 30 प्रतिशत पत्तीया गिरने पर बहार की अवस्था पुर्ण हुई समझना चाहिए उसके पश्चात पौधे को खाद देकर सिंचाई करना चाहिए। 

 

विश्राम अवस्था में पौधे की देखभाल
    मौसंबी का बगिचा साफ करना चाहिए। 
    फलदार पौधे से सुखी एवं रोगग्रस्त टहनिया निकाल लेनी चाहिए। 
    तने पर गोंद दिखने पर साफ कर लेना चाहिए। 
    तने को बोंडो पेस्ट करे। 
    सम्पुर्ण पौधे पर क्लोरोपायरीफस 30 उस ़ 25 हउ काॅपर आॅक्सीक्लोराईट पानी में 2 बार छिड़काव करें।
    बगीचे की हलकी निदाई गुडाई करे। 
    फुल दिखने पर 4 उस प्लानोफिक्स 13.00.45 50 हउ 10 ली पानी में घोल का छिड़काव करें। 

मौसंबी के किट एवं रोग के लक्षण एवं उपाय 

व    सफेद मख्खी
यह हलके पिले रंग की होती है एवं पत्तो का रस चुसती है। यह बिमारियाॅ फैलाने में सहायक है। 

व    काली मख्खी
यह पत्तो का रस चुसती है एवं समय पर नियंत्रण नही किया तो पौधे कि सभी टहनिया काली हो जाती है, हमारे क्षेत्र में इसे कोलसी कहते है। 

व    सिट्र्स सिल्ला
यह नयी कोमल पत्तों एवं फुलों पर बैठकर रस चुसती है एवं एक मिठा द्रव छोड़ती है जिसमें फुफंुद उत्पन्न होती है। 

व    लिंफ माइनर 
यह छोटा किट होता है जो पत्तियों में सुरंग बनाकर रहता है तथा पत्तियों का हरा भाग खाती है, जिससें विकृत होती है, इसका प्रकोप नई पत्तियों पर ज्यादा होती है। 

  उपचार 
उपरोक्त किटों का समय पर नियंत्रण करना जरूरी है, अन्यथा उत्पादन पर गहरा असर होता है। 
इसके लिए इमीडाक्लोप्रीड 0.5 मि.ली. या मोनोक्रोटोफास 3 मि.ली. प्रति ली. या ट्रायजोफास 3 मि.ली. पानी में घोल बनाकर बनाकर छिड़काव करना चाहिए। 

तने का किडा
यह तने में सुरंग बनाकर रहता है, एवं रात में छाल खाती है, जिससे पौधा कमजोर होता है। 
 उपचार 
तने से जाला साफ करके डायक्लोरोवास या पेट्रोल इंजेक्षन की साहयता से छेद में डालना चाहिए एवं गिली मिट्टी से छेद बंद कर देना चाहिए। 

 

पत्तिया खाने वाली इल्ली 
यह निंबु वर्गीय बागो में महत्त्वपुर्ण किट है, इसका प्रकोप होने पर पौधे पर्णरहित होते है। 
   उपचार 
इल्ली की रोकथाम के लिए क्विनालफास 3 मि.ली. सेलक्रान या क्लोरोपायरीफास 3 मि.ली. प्रति लि. पानी में छिड़काव करें। 
फल किड़ा
यह पके फलों में सुंड से छेद करते है जिससे फल पिले होकर गिर जाते है, जिससे नुकसान होता है। 
 उपचार
डायक्लोरोवास या नुवान 30 मि.ली. 10 ली. पानी में शाम के समय छिड़कान करना चाहिए एवं खेतों में धुवाॅ करना चाहिए, बाजार में फल मख्खी के लिए ट्रेप आते है, वह लगाने चाहिए बगीचा खरपतवार मुक्त रखना चाहिए। 
 डायबैक 
पौधे की टहनियों से इसकी शुरूवात होती है, शुरूवात में पौधे के पत्ते पिले पड़ जाते है, एवं टहनियाॅ उपर से सुखती है। समय पर उपचार नही किया तो पौधा पुरा सुख जाता है। 
    उपचार 
पौधे की सुखी टहनिया काट लेनी चाहिए एवं काॅपर आॅक्सीक्लोराइड या रेडोमिल का छिडकाव करना चाहिए तथा रोगग्रस्त पौधे कि जड़े पौधे कि जडे़ खुली करके उपरोक्त दवा पानी में मिलाकर डालनी चाहिए। 
    गमोसिस
यह फायटोप्थोरा नामक फंगस से होता है, जिससे तने में जख्म, अन्नद्रव कि, कमतरता जिवाणु, विषाणु से यह रोग होता है, जिससे तना फट जाता है एवं एक चिपचीपा द्रव रिसता है। जिससे पौधा कमजोर होता है। 

   उपचार 
पौधे की सुखी टहनिया काट लेनी चाहिए एवं काॅपर आॅक्सीफलोराइट या क्लोरोथोनोनील या रेडोमील का छिड़काव करना चाहिए। खेत में पानी रूकने न दे। पौधें तने में जखम से द्रव का रिसाव देखते ही साफ करे, एरंडी के तेल में रेडोमील या काॅपर आॅक्सीक्लोराइड का मलहम लगाने से रिसाव बंद हो जाता है। पौधे को वर्ष में 2 बार बोंर्डो पेस्ट लगाना चाहिए। 
  कैंकर 
यह भयानक रोग है, इस भयानक रोग का प्रकोप फल एवं पत्तियों में दिखाई देता है, शुरूवात में पत्तों के निचले भाग में लक्षण प्रगट होते है, जिससे पिले भुरे रंगे के धब्बे दिखाई देेते है। जिससे पत्तिया पिली पड़ कर गिर जाती है। फल धब्बे खुरदरे भुरे रंग के छिलके की गहराई तक होते है, जिससे छिलके फट जाते है। 

 उपचार
 बरसात में रोगग्रस्त टहनिया काटकर जला देनी चाहिए, रोगग्रस्त पौधों को बरसात में कार्बेन्डाजीम 2 ग्राम प्रति ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए एवं काॅपर आॅक्सीफलोराइट 3 ग्राम $ स्ट्टोसाइक्सीन 0.25 ग्राम प्रति ली. पानी में घोल बनाकर आवष्यकतानुसार छिड़काव करना चाहिए। 

   फलों की परिपक्वता एवं उत्पादन 
मौसंबी 7 से 9 माह में परिपक्व हो जाते है। अंबिया बहार नवंबर एवं मृग फरवरी माह में फलो का रंग हरे से हल्का पिला फलों में चमक आ जाती है एवं फलों की कठोरता कम हो जाती है। तो समझना चाहिए कि, फल परिपक्व हो गये है। फलो की उत्पादकता 5 से 6 वर्ष पौधों से 200 से 400 फल एवं 10 वर्ष से आगे 1000 तक फल प्राप्त होते है। पौधे का जीवन अच्छी व्यवस्था होने पर 30 से 40 वर्ष उत्पादन देते है। 

 मौसंबी पौधों की देखभाल
    पौधे लगाने के बाद एक महिने के अंदर क्लोरोपायरीफास 3 मि.ली. $ हुमिक एसीड 3 मि.ली. $ कारबौन्डाजाइम 3 ग्राम प्रति ली. पानी में घोल बनाकर 1 से 2 ली. प्रति पौधे की जड़ो में घोल डालना चाहिए। 
    रोग मुक्त नर्सरी से ही पौधे खरिदी करे। 
    पौधों की जुलाई एवं फरवरी में बाडो पेस्ट लगाए। 
    पौधे लगाने के 4 वर्ष तक जुलाई सप्टेंबर फरवरी में मोनोक्रोटोफास 20 मि.ली. या एसिफेट 20 ग्राम या ट्रयसोफास 30 मि.ली. 10 ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करे। 
    पौधे की सुखी रोगग्रस्त विकृत टहनिया हर वर्ष निकालना चाहिए, उसके पष्चात् काॅपर आॅक्सीक्लोराट का छिड़काव करना चाहिए। 
    वर्ष में 2 बार क्लोरोपायरीफास 20 मि.ली. $ डायक्लोरोफास 20 मि.ली. $ 30 ग्राम काॅपर आॅक्सीक्लोराइट 10 ली. पानी में घोल बनाकर पौधें के तनों में छिड़काव करना चाहिए। 
    मौसंबी के बगीचे में 4 वर्ष तक के सोयाबीन, उडद मुंग मिर्ची कपास फसले लेनी चाहिए। 5 वर्ष के बाद कोई फसल नही लेना चाहिए। 
    टपक सिंचाई का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करे। 

 

  मौसंबी पौधे की उपलब्धता 
संतरे एवं मौसंबी के अच्छी गुणवत्ता के पौधे हमारे क्षेत्र में जुन से आॅक्टोबर तक उपलब्ध रहते है, निबू वर्गीय पौधे की मंडी के रूप में महाराष्ट्र के ग्राम शेंदुरजना घाट, तह. वरूड, जिला-अमरावती से हर साल दुसरे प्रदेषों में लाखों पौधे किसान ले जाते है या उत्तम दर्जे के पौधे उपलब्ध कराने में हमम दत कर सकते है। 

रेवानंद निकाजू 
मु.पो. वाडेगांव तह. पांढुरना
जिला-छिंदवाड़ा 
मो. नं. 9977063179

जैविक खेती: