लहसुन के सत से दूर करें तिलहन फसलों के रोग

इस रसायन का नाम डायलाइल थायोसल्फिनेट है, जो हर प्रकार के फफूंद से होने वाले रोगों को रोकने में सक्षम है। इसका छिड़काव करने से तिलहन की फसल पर लगने वाला फफूंद पूरी तरह से खत्म हो जाता है। सरसों उत्पादक जिलों में किए गये अध्ययन में ये बात साफ हो गई है कि रासायनिक कीटनाशकों के मुकाबले लहसुन के घोल का छिड़काव करने से जहां फसल पर लगा रोग पूरी तरह से समाप्त हो जाता है, वहीं पैदावार में भी कमी नहीं आती है।

तिलहन की फसलों में लगने वाले रोगों से बचाव के लिए किए जा रहे रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग के कई हानिकारक परिणाम सामने आये है। इस तरह का एक प्रयोग सरसों की फसल पर भी किया गया है। जिसमें पाया गया है कि पौधों पर फूल आने के समय उसमें कीटनाशकों का छिड़काव करने से उसकी पैदावार में कमी आ जाती है। लेकिन रासायनिक कीटनाशकों के बजाए उसके स्थान पर लहसुन के घोल का छिड़काव किया गया तो, फसल पर कोई विपरित प्रभाव तो पड़ा ही नहीं, साथ ही रोगों से भी छुटकारा मिल गया। राष्ट्रीय सरसों अनुसंधान केन्द्र भरतपुर (राजस्थान) द्वारा इस संबंध में अध्ययन किया गया है। इस अध्ययन के अनुसार सरसों में पाया जाने वाला वाठट रस्ट के ऊपर इस घोल का सफलता पूर्वक उपयोग राजस्थान के भरतपुर, नवगांव और पंजाब के भटिंडा में किया गया है। सरसों की फसल में वाइट रस्ट का प्रकोप ज्यादा देखा जाता है। उत्पादक इलाकों में अगर लगातार कई दिनों तक आसमान में बादल छाए रहे और धूप ना निकले तो फिर सरसों की फसल पर सफ़ेद पाउडर लगने का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में लहसुन की कली से निकाले गये सत्व को पानी में मिलाकर सरसों की फसल के ऊपर छिड़काव करने से उसकी पत्ती और कलियों पर अल्टर्नेरिया ब्लाइट रोग का प्रकोप काफी कम हो जाता है। इसके साथ ही सीवर, लुधावायी और नवगांव में किये गये प्रयोग से सामने आया है कि लहसुन की कली के सत्व के घोल से पौधों में बीज उत्पादन भी काफी बढ़ा है। सरसों के अलावा तिलहनों के दूसरी फसलों जैसे सूरजमुखी पर किये गये इस घोल के छिड़काव से भी आशातीत नतीजे सामने आये है। हैदराबाद में किये गये इस प्रयोग से यह सामने आया है कि अल्टर्नेरिया ब्लाइट पर यह बेहद प्रभावी रहा, साथ ही अरंडी पर होने वाले रोगों पर भी यह घोल काफी प्रभावी रहा है। लहसुन की कली से निकाले गये इस सत्व में वैज्ञानिकों ने एक नया रासायन पाया जो फफूंद से होने वाले रोगों के लिए बेहद कारगर साबित हो रहा है। इस रसायन का नाम डायलाइल थायोसल्फिनेट है, जो हर प्रकार के फफूंद से होने वाले रोगों को रोकने में सझम है। इसका छिड़काव करने से तिलहन की फसल पर लगने वाला फफूंद पूरी तरह से खत्म हो जाता है। सरसों उत्पादक जिलों में किए गये अध्ययन में ये बात साफ हो गई है कि रासायनिक कीटनाशकों के मुकाबले लहसुन के घोल का छिड़काव करने से जहां फसल पर लगा रोग पूरी तरह से समाप्त हो जाता है, वहीं पैदावार में भी कमी नहीं आती है। सबसे खास बात तो यह है कि किसान इसको घर पर ही तैयार कर सकते हैं तथा खुद ही तैयार कर अपने खेतों में इसका छिड़काव स्वयं भी कर सकते है। इसकी लागत भी रासायनिक कीटनाशकों के मुकाबले काफी कम होने के कारण किसानों के रासायनिक कीटनाशकों पर होने वाले खर्च में भी अच्छी-खासी कटौती हो सकती है। इसको तैयार करने की विधि भी आसान है। इस घोल को तैयार करने के लिए भी पहले एक किलो लहसुन को पिसकर उसका पेस्ट तैयार किया जाता है। उसके बाद उसको दस लीटर पानी में मिलाकर अच्छी तरह से मिला लिया जाता है। उसके बाद 24 घण्टें इस घोल को सामान्य ताप पर रखा जाता है। इसके बाद इसको छान कर प्राप्त हुये घोल को पत्तियों पर छिड़का जाता है। यह घोल पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल होने के अलावा रासायनिक कीटनाशकों के मुकाबले काफी सस्ता होता है। इस समय सरसों की फसल पकने के लिए तैयार है। देश में लगभग सभी उत्पादक राज्यों में इस समय सरसों की फसल के पौधों पर फूल आ चुके है तथा कई जगह बालियों में दाने पड़ने भी शुरू हो गये है। सरसों किसानों के लिए यह घोल काफी सहायक हो सकता है। इसका प्रयोग केवल सरसों, सूरजमुखी ही नहीं बल्कि अन्य दूसरी तिलहनी फसलों में भी किया जा सकता है। अन्य तिलहनी फसलों पर भी यह उतना ही प्रभावी होता है।

साभार - Bissiness Bhaskar

 

 

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