कांट्रैक्ट खेती

कॉन्ट्रैक्ट खेती में उत्पादक और खरीदार के बीच कीमत पहले ही तय हो जाती है। फसल की क्वालिटी, मात्रा और उसकी डिलीवरी का वक्त फसल उगाने से पहले ही तय हो जाता है.
कांट्रेक्ट खेती का मकसद है - फसल उत्पाद के लिए तयशुदा बाज़ार तैयार करना। इसके अलावा कृषि के क्षेत्र में पूँजी निवेश को बढ़ावा देना भी कांट्रेक्ट खेती का उद्देश्य है।

इसके बाद कृषि उत्पाद के कारोबार में लगी कई कॉर्पोरेट कंपनियों ने कांट्रेक्ट खेती के सिस्टम को इस तरह सुविधाजनक बनाने की कोशिश कि जिससे उन्हें अपनी पसंद का कच्चा माल, तय वक़्त पर और कम कीमत पर मिल जाए.
कई बार ये देखा गया है कि खऱीदार ना मिलने पर किसानों की फसल बर्बाद चली जाती है. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह होती है किसान और बाज़ार के बीच तालमेल की कमी.

ऐसे में ही कॉन्ट्रैक्ट खेती की ज़रूरत महसूस की गई ताकि फसल की बर्बादी रोकी जाए और किसानों को भी उनके उत्पाद की मुनासिब कीमत मिल सके.

सरकार ने केंद्रीय कृषि नीति में, कॉन्ट्रैक्ट खेती के क्षेत्र में, निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने का ऐलान किया था.

राज्यों के सहयोग के बगैर कृषि क्षेत्र में सुधार संभव नहीं

राज्यों के सहयोग के बगैर कृषि क्षेत्र में सुधार संभव नहीं

कृषि क्षेत्र में सुधार की सख्त जरूरत है, जिसमें राज्यों का दायित्व ज्यादा है। कृषि को घाटे से उबारने और नई दिशा देने के लिए एक नई नीति की तत्काल जरूरत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर गठित मुख्यमंत्रियों की उप समिति ने बृहस्पतिवार को अपनी पहली बैठक में इन मुद्दों पर गंभीरता से विचार किया। कृषि क्षेत्र में निवेश न होना सबसे बड़ा संकट है, जिसे बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया गया।