फसल

फ़सल
फसल या सस्य किसी समय-चक्र के अनुसार वनस्पतियों या वृक्षों पर मानवों व पालतू पशुओं के उपभोग के लिए उगाकर काटी या तोड़ी जाने वाली पैदावार को कहते हैं। मसलन गेंहू की फ़सल तब तैयार होती है जब उसके दाने पककर पीले से हो जाएँ और उस समय किसी खेत में उग रहे समस्त गेंहू के पौधों को काट लिया जाता है और उनके कणों को अलग कर दिया जाता है। आम की फ़सल में किसी बाग़ के पेड़ों पर आम पकने लगते हैं और, बिना पेड़ों को नुक्सान पहुँचाए, फलों को तोड़कर एकत्रित किया जाता है।

जब से कृषि का आविष्कार हुआ है बहुत से मानवों के जीवनक्रम में फ़सलों का बड़ा महत्व रहा है। उदाहरण के लिए उत्तर भारत, पाकिस्तान व नेपाल में रबी की फ़सल और ख़रीफ़ की फ़सल दो बड़ी घटनाएँ हैं जो बड़ी हद तक इन क्षेत्रों के ग्रामीण जीवन को निर्धारित करती हैं। इसी तरह अन्य जगहों के स्थानीय मौसम, धरती, वनस्पति व जल पर आधारित फ़सलें वहाँ के जीवन-क्रमों पर गहरा प्रभाव रखती हैं।

भारतीय फसलें तथा उनका वर्गीकरण

भारयीय फसलों का वर्गीकरण भिन्न-भिन्न आधारों पर किया जा सकता है। नीचे कुछ आधारों पर भारतीय फसलों का वर्गीकरण दिया गया है।

ऋतु आधारित
ख‍रीफ फसलें : धान, बाजरा, मक्‍का, कपास, मूँगफली, शकरकन्‍द, उर्द, मूँग, मोठ लोबिया(चँवला), ज्‍वार, तिल, ग्‍वार, जूट, सनई, अरहर, ढैंचा, गन्‍ना, सोयाबीन, भिंण्‍डी
रबी फसलें : गेहूँ, जौं, चना, सरसों, मटर, बरसीम, रिजका, मसूर, आलू, तम्‍बाकू, लाही, जंई
जायद फसलें : कद्दू, खरबूजा, तरबूज, लौकी, तोरई, मूँग, खीरा, मीर्च, टमाटर, सूरजमूखी
जीवनचक्र पर आधारित
एकवर्षीय फसलें : धान, गेहूँ, चना, ढैंचा, बाजरा, मूँग, कपास, मूँगफली, सरसों, आलू, शकरकन्‍द, कद्दू, लौकी, सोयाबीन
द्विवर्षीय फसलें : चुक्कन्‍दर, प्‍याज
बहुवर्षीय फसलें (Perennials) : नेपियर घास, रिजका, फलवाली फसलें
उपयोगिता या आर्थिक आधार पर संपादित करें
अन्‍न या धान्‍य फसलें (Cereals) : धान, गेहूँ, जौं, चना, मक्‍का, ज्‍वार, बाजरा,
तिलहनी फसलें (Oilseeds) : सरसों, अरंडी, तिल, मूँगफली, सूरजमूखी, अलसी, कुसुम, तोरिया, सोयाबीन और राई
दलहनी फसलें (Pusles) : चना, उर्द, मूँग, मटर, मसूर, अरहर, मूँगफली, सोयाबीन
मसाले वाली फसलें : अदरक, पुदीना, प्‍याज, लहसुन, मिर्च, धनिया, अजवाइन, जीरा, सौफ, हल्‍दी, कालीमिर्च, इलायची और तेजपात
रेशेदार फसलें (Fibres) : जूट, कपास, सनई, पटसन, ढैंचा
चारा फसलें (Fodders) : बरसीम, लूसर्न (रिजका), नैपियर घास, लोबिया, ज्‍वार
फलदार फसलें : आम, अमरूद, नींबू, लिचि, केला, पपीता, सेब, नाशपाती,
जड एवं कन्‍द (Roots & Tubers) : आलू, शकरकन्‍द, अदरक, गाजर, मूली, अरबी, रतालू, टेपियोका, शलजम
उद्दीपक (Stimulants) : तमबाकू, पोस्‍त, चाय, कॉफी, धतूरा, भांग
शर्करा : चुकन्‍दर, गन्‍ना
औषधीय फसलें (Medicinals) : पोदीना, मेंथा, अदरक, हल्‍दी और तुलसी
विशेष उपयोग आधारित संपादित करें
नकदी फसलें (Cash Crops) : गन्‍ना, आलू, तम्‍बाकू, कपास, मिर्च, चाय, काफी,
अन्‍तर्वती फसले (Catch Crops) : उर्द, मूँग, चीना, लाही, सांवा, आलू
मृदा रक्षक फसलें (Cover Crops) : मूँगफली, मूँग, उर्द, शकरकन्‍द, बरसीम, लूसर्न (रिजका)
हरी खाद : मूँग, सनई, बरसीम, ढैचां, मोठ, मसूर, ग्‍वार, मक्‍का, लोबिया, बाजरा

किसान फटाफट कर लें रबी फसलों की बुआई-सिंचाई

किसान फटाफट कर लें रबी फसलों की बुआई-सिंचाई

खरीफ की फसलों को मौसम ने बेहद नुकसान पहुंचाया. फसल कटान के समय बारिश पड़ने पर किसानों की फसल बर्बाद हो गई थी. अब सीजन रबी फसलों की बुवाई का चल रहा है. आजकल मौसम नरम चल रहा है. मौसम विभाग के अनुसार, 4 से 5 दिन मौसम सापफ रहेगा. उत्तर भारत के कई राज्यों में दिन में तापमान 26 डिग्री सेल्सियस, रात में 15 से 18 डिग्री सेल्सियस रह रहा है. मौसमी आद्रता भी सुबह में करीब 80 प्रतिशत और दोपहर में लगभग 50 प्रतिशत बनी हुई है. एग्रीकल्चर एक्सपर्ट का कहना है कि फसलों की बुवाई और सिंचाई के लिए मुफीद मौसम है. 

किसान ऐसे करें गेहूं की फसल की सिंचाई

गन्ना की पैदावार बढ़ाने के लिए बायो फर्टिलाइजर और कंपोस्ट खाद की खरीद पर 50 फीसदी अनुदान

गन्ना की पैदावार बढ़ाने के लिए बायो फर्टिलाइजर और कंपोस्ट खाद की खरीद पर 50 फीसदी अनुदान

बिहार गन्ना उद्योग विभाग की ओर से गन्ना की पैदावार बढ़ाने के लिए बायो फर्टिलाइजर और कंपोस्ट खाद की खरीद पर 50 फीसदी अनुदान दिया जा रहा है. गन्ना की खेती करने वाले किसानों को जैव उर्वरक और कार्बनिक पदार्थों वाली वर्मी कंपोस्ट खाद की खरीद पर 150 रुपये प्रति क्विंटल की दर से अनुदान राशि देने का प्रावधान किया है. एक हेक्टेयर के लिए 25 क्विंटल तक खपत होती है. इस स्कीम का फायदा अधिकतम 2.5 एकड़ यानी 1 हेक्टेयर जमीन पर मिलेगा. इस हिसाब से गन्ना की खेती करने वाला हर किसान अधिकतम 3,750 रुपये का अनुदान ले सकता है. 

आलू की फसल में लग सकते हैं झुलसा जैसे रोग, करे बचाव

आलू की फसल में लग सकते हैं झुलसा जैसे रोग, करे बचाव

आलू में कई तरह की बीमारियां और कीटों के लगने का खतरा रहता है,लगातार तापमान गिरने और बदलते मौसम के साथ ही आलू में कई तरह के रोग और कीट लगने लगते हैं, समय रहते इनका प्रबंधन करके किसान नुकसान से बच सकते हैं। "आलू में पछेती अंगमारी या पछेती झुलसा बीमारी बहुत खतरनाक होती है। दो बीमारियों का हमें खास ध्यान रखना होता है, एक अगेती झुलसा और दूसरा पछेती झुलसा रोग। इनसे बचाव के लिए जब एक महीने की फसल हो जाती है तो मैंकोजेब 75 प्रतिशत फंफूदीनाशक की लगभग आठ सौ ग्राम मात्रा प्रति एकड़ खेत के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए। इसी के साथ ही आलू की फसल में एक और भी बीमारी देखने को मिलती है, जिसे बैक्टीरियल रॉट य

बदलता परिदृश्य और भारत में GM फसलों का भविष्य

बदलता परिदृश्य और भारत में GM फसलों का भविष्य

हाल ही में, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत काम करने वाली जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) ने आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) सरसों के व्यावसायिक रिलीज से पहले बीज उत्पादन को मंजूरी दे दी है. जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) पर्यावरणीय दृष्टिकोण से अनुसंधान और औद्योगिक उत्पादन में खतरनाक सूक्ष्मजीवों और पुनःसंयोजकों के बड़े पैमाने पर उपयोग से संबंधित गतिविधियों के मूल्यांकन के लिए जिम्मेदार है. GEAC की अध्यक्षता MoEF&CC के विशेष सचिव/अतिरिक्त सचिव तथा सह-अध्यक्षता जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) के एक प्रतिनिधि द्वारा की जाती है.

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