सरसों

सरसों क्रूसीफेरी (ब्रैसीकेसी) कुल का द्विबीजपत्री, एकवर्षीय शाक जातीय पौधा है। इसका वैज्ञानिक नाम ब्रेसिका कम्प्रेसटिस है। पौधे की ऊँचाई १ से ३ फुट होती है। इसके तने में शाखा-प्रशाखा होते हैं। प्रत्येक पर्व सन्धियों पर एक सामान्य पत्ती लगी रहती है। पत्तियाँ सरल, एकान्त आपाती, बीणकार होती हैं जिनके किनारे अनियमित, शीर्ष नुकीले, शिराविन्यास जालिकावत होते हैं।[1] इसमें पीले रंग के सम्पूर्ण फूल लगते हैं जो तने और शाखाओं के ऊपरी भाग में स्थित होते हैं। फूलों में ओवरी सुपीरियर, लम्बी, चपटी और छोटी वर्तिकावाली होती है।[2] फलियाँ पकने पर फट जाती हैं और बीज जमीन पर गिर जाते हैं।[3] प्रत्येक फली में ८-१० बीज होते हैं। उपजाति के आधार पर बीज काले अथवा पीले रंग के होते हैं। इसकी उपज के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त है। सामान्यतः यह दिसम्बर में बोई जाती है और मार्च-अप्रैल में इसकी कटाई होती है। भारत में इसकी खेती पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और गुजरात में अधिक होती है।

 

मधुमक्खी पालन के लिए सबसे अच्छे फूल कौन से हैं

 मधुमक्खी पालन के लिए सबसे अच्छे फूल कौन से हैं

मधुमक्खियां फूलों का रस चूसकर शहद बनाती हैं. मधुमक्खियां फूलों से रस और परागकण लेती हैं, रस यानि अमृत फूलों की गहराई में स्थित होता है. और पराग (पीले रंग की धूल) जो फूलों के ऊपर बिखरी रहती है, वह पुंकेसर के पास स्थित होती है. मधुमक्खियां इस रस को पेट में रखकर वापस छत्ते पर आती हैं, वह इस रस को चबाने वाली मधुमक्खियों को देती हैं. वह मधुमक्खियां इस रस को चबाती हैं. इसी दौरान उनके एंजाइम रस को ऐसे पदार्थ में बदल देते हैं, जिसमें पानी के साथ शहद शामिल होता है. इसके बाद मधुमक्खियां पदार्थ को मधुकोषों में डाल देती हैं, जिससे पानी वाष्पीकृत हो जाता है और शहद रह जाता है.

सरसों, टमाटर और बैंगन के लिए बहुत खतरनाक है यह पाला

सरसों, टमाटर और बैंगन के लिए बहुत खतरनाक है यह पाला

कड़ाके की ठंड और कोहरे का असर दिख रहा है. लगभग पूरे उत्तर भारत में इसका प्रकोप जारी है. आसमान साफ रहने, तापमान अधिक गिरने और हवा नहीं चलने से पाला का खतरा बढ़ जाता है. अभी यह खतरा कुछ फसलों के लिए बहुत बड़ा है जिनमें सरसों, टमाटर और बैंगन के नाम है. इनकी फसल चल रही है, इसलिए पाले से बचाना बहुत जरूरी है. पाले से बचाने के लिए किसानों को वैज्ञानिक सलाहों पर गौर करना चाहिए. इन सलाहों की मदद से किसान अपनी फसल को आसानी से बचा सकते हैं.

गन्ना की पैदावार बढ़ाने के लिए बायो फर्टिलाइजर और कंपोस्ट खाद की खरीद पर 50 फीसदी अनुदान

गन्ना की पैदावार बढ़ाने के लिए बायो फर्टिलाइजर और कंपोस्ट खाद की खरीद पर 50 फीसदी अनुदान

बिहार गन्ना उद्योग विभाग की ओर से गन्ना की पैदावार बढ़ाने के लिए बायो फर्टिलाइजर और कंपोस्ट खाद की खरीद पर 50 फीसदी अनुदान दिया जा रहा है. गन्ना की खेती करने वाले किसानों को जैव उर्वरक और कार्बनिक पदार्थों वाली वर्मी कंपोस्ट खाद की खरीद पर 150 रुपये प्रति क्विंटल की दर से अनुदान राशि देने का प्रावधान किया है. एक हेक्टेयर के लिए 25 क्विंटल तक खपत होती है. इस स्कीम का फायदा अधिकतम 2.5 एकड़ यानी 1 हेक्टेयर जमीन पर मिलेगा. इस हिसाब से गन्ना की खेती करने वाला हर किसान अधिकतम 3,750 रुपये का अनुदान ले सकता है. 

आलू की फसल में लग सकते हैं झुलसा जैसे रोग, करे बचाव

आलू की फसल में लग सकते हैं झुलसा जैसे रोग, करे बचाव

आलू में कई तरह की बीमारियां और कीटों के लगने का खतरा रहता है,लगातार तापमान गिरने और बदलते मौसम के साथ ही आलू में कई तरह के रोग और कीट लगने लगते हैं, समय रहते इनका प्रबंधन करके किसान नुकसान से बच सकते हैं। "आलू में पछेती अंगमारी या पछेती झुलसा बीमारी बहुत खतरनाक होती है। दो बीमारियों का हमें खास ध्यान रखना होता है, एक अगेती झुलसा और दूसरा पछेती झुलसा रोग। इनसे बचाव के लिए जब एक महीने की फसल हो जाती है तो मैंकोजेब 75 प्रतिशत फंफूदीनाशक की लगभग आठ सौ ग्राम मात्रा प्रति एकड़ खेत के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए। इसी के साथ ही आलू की फसल में एक और भी बीमारी देखने को मिलती है, जिसे बैक्टीरियल रॉट य

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