सरसों

सरसों क्रूसीफेरी (ब्रैसीकेसी) कुल का द्विबीजपत्री, एकवर्षीय शाक जातीय पौधा है। इसका वैज्ञानिक नाम ब्रेसिका कम्प्रेसटिस है। पौधे की ऊँचाई १ से ३ फुट होती है। इसके तने में शाखा-प्रशाखा होते हैं। प्रत्येक पर्व सन्धियों पर एक सामान्य पत्ती लगी रहती है। पत्तियाँ सरल, एकान्त आपाती, बीणकार होती हैं जिनके किनारे अनियमित, शीर्ष नुकीले, शिराविन्यास जालिकावत होते हैं।[1] इसमें पीले रंग के सम्पूर्ण फूल लगते हैं जो तने और शाखाओं के ऊपरी भाग में स्थित होते हैं। फूलों में ओवरी सुपीरियर, लम्बी, चपटी और छोटी वर्तिकावाली होती है।[2] फलियाँ पकने पर फट जाती हैं और बीज जमीन पर गिर जाते हैं।[3] प्रत्येक फली में ८-१० बीज होते हैं। उपजाति के आधार पर बीज काले अथवा पीले रंग के होते हैं। इसकी उपज के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त है। सामान्यतः यह दिसम्बर में बोई जाती है और मार्च-अप्रैल में इसकी कटाई होती है। भारत में इसकी खेती पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और गुजरात में अधिक होती है।

 

किसानों की बर्बादी बनकर बरसी की बर्फ, फ‍िर दो दिन बारिश की संभावना

किसानों की बर्बादी बनकर बरसी की बर्फ, फ‍िर दो दिन बारिश की संभावना

अन्नदाताओं की मुसीबत बन गई है बेमौसम बरसात।किसानों की मुसीबतें दिन व दिन बढ़ती जा रहीं हैं, किसानों की फसल40%से ज्यादा तो नष्ट हो चुकी है फिर भी मुसीबत टली नही है।
बिन मौसम बारिश धरतीपुत्रों के लिए आफत बन गई है। उनके अरमानों पर ओलो रूपी बर्फ गई है। हवा के साथ बारिश के चलते गेहूं की फसल जमीन पर बिछने से न केवल पैदावार पर असर पड़ेगा, निचले हिस्से में पानी जमा होने से फसल गलकर बर्बाद हो जाएगी। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि खेत में ज्यादा पानी भरा है तो किसान उसे निकाल दें। बारिश से सरसों और सब्जियों में भी नुकसान है।

सर्दी में बारिश मतलब किसान की आफ़त

सर्दी में बारिश मतलब किसान की आफ़त

जनवरी में सर्दी के मौसम में अचानक वारिश ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। देश के अलग-अलग हिस्सों में दो दिनों से लगातार बारिश से जहां सरसों की फसल खत्म होने आशंका है तो वहीं आलू की फसल को भी नुकसान पहुंच सकता है। हालांकि गेहूं के लिए बारिश अच्छी साबित हो सकती है , लेकिन हालात देखते हुए यह गेहूँ को नुकसान कर सकती है।

किसानों ने दिखाया गेहूँ और दलहनी फसलों पर भरोसा, तिलहनी फसलों की बुबाई की कम

मौसम की बदलती करवट के चलते किसानों ने रवि फसल में गेहूं चना मटर दलहन पर भरोसा जताया है जबकि तिलहन ऊपर किसानों का भरोसा इस वर्ष कम देखने को मिल रहा है जिसके चलते तिलहन फसलों का एरिया लगातार घटता जा रहा है
चालू सीजन में गेहूं की बुआई बढ़कर 277.91 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुआई 250.02 लाख हेक्टेयर में हुई थी. वहीं दलहन की बुआई बढ़कर 131.46 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 131.38 लाख हेक्टेयर में दालों की बुआई हुई थी. रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुआई पिछले साल के 86.70 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 89.28 लाख हेक्टयेर में हो चुकी है.

रबी की फसल की बुबाई के समय रखें सावधानियाँ

रबी की फसल की बुबाई के समय रखें सावधानियाँ

इन फसलों की बोआई के समय कम तापमान तथा पकते समय शुष्क और गर्म वातावरण की आवश्यकता होती हैं। ये फसलें सामान्यतः अक्टूबर-नवम्बर के महिनों में बोई जाती हैं। रबी में सिंचाई के लिए हमें नलकूप तालाब कुवे और भूमिगत जल संसाधनों पर आश्रित रहना पड़ता हैं । इस बार रबी के मौसम में  सूखे की संभावना बहुत हैं इस लिए किसान भाई अपनी खेती की कार्य योजना बहुत सोच समझ के बना नी हैं ।
फसल के अच्छे उत्पादन के लिए इस प्रकार योजना बनाये

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