अनाज

अनाज खाद्य कृषि उत्पाद होते हैं, जिन्हें उनके फार के बीज के लिए उत्पादन किया जाता है। ये एकबीजपत्री परिवार से होते हैं।

अनाज (अंग्रेज़ी:होल ग्रेन) अर्थात दाने के तीनों भागों को खाया जाता है जिसमें रेशा युक्त बाहरी सतह और पोषकता से भरपूर बीज भी शामिल है। साबुत अनाज वाले खाद्य पदार्थों में एक बाहरी खोल, भूसी, चोकर या ब्रान (ऊपरी सतह), बीज और मुलायम एण्डोस्पर्म पाया जाता है।[1] गेहूं की पिसाई के वक्त ऊपरी भूसी एवं बीज को हटा दिया जाता है एवं स्टार्च बहुल एण्डोस्पर्म ही बच जाता है। भूसी एवं बीज से विटामिन ई, विटामिन बी और अन्य तत्व जैसे जस्ता, सेलेनियम, तांबा, लौह, मैगनीज एवं मैग्नीशियम आदि प्राप्त होते हैं। इनमें रेशा भी प्रचुर मात्र में पाया जाता है। सभी साबुत अनाजों में अघुलनशील फाइबर पाये जाते हैं जो कि पाचन तंत्र के लिए बेहतर माने जाते हैं, साथ ही कुछ घुलनशील फाइबर भी होते हैं जो रक्त में वांछित कोलेस्ट्रोल के स्तर को बढ़ाते हैं। खासतौर से जई, जौ और राई में घुलनशील फाइबर की मात्र अधिक होती है, साबुत अनाजों में रूटीन (एक फ्लेवेनएड जो हृदय रोगों को कम करता है), लिग्नान्स, कई एंटीऑक्सीडेंट्स और अन्य लाभदायक पदार्थ पाये जाते हैं।

परंपरागत पकी हुई राई की ब्रेड
पूर्व मान्यता अनुसार साबुत अनाज कई रोगों से बचाते हैं क्योंकि इसमें फाइबर की प्रचुरता होती है। परंतु नवीन खोजों से पुष्टि हुई कि साबुत अनाजों में फाइबर के अलावा कई विटामिनों के अनूठे मिश्रण, खनिज-लवण, अघुलनशील एंटीऑक्सीडेंट और फाइटोस्टेरोल भी पाए जाते हैं, जो कि सब्जियों और फलों में अनुपस्थित होते हैं और शरीर को कई रोगों से बचाते हैं।[2] इसका सेवन करने वालों को मोटापे का खतरा कम होता है। मोटापे को बॉडी मास इंडेक्स और कमर से कूल्हों के अनुपात से मापा जाता है। साथ ही साबुत अनाज से कोलेस्ट्रोल स्तर भी कम बना रहता है जिसका मुख्य कारण इनमें पाये जाने वाले फाइटोकैमिकल्स और एंटीआक्सीडेण्ट्स हैं। जो घर में बने आटे की रोटियां खाते हैं उनमें ब्रेड खाने वालों की अपेक्षा हृदय रोगों की आशंका २५-३६ प्रतिशत कम होती है। इसी तरह स्ट्रोक का ३७ प्रतिशत, टाइप-२ मधुमेह का २१-२७ प्रतिशत, पचनतंत्र कैंसर का २१-४३ प्रतिशत और हामर्न संबंधी कैंसर का खतरा १०-४० प्रतिशत तक कम होता है।

साबुत अनाज का सेवन करने वाले लोगों को मधुमेह, कोरोनरी धमनी रोग, पेट का कैंसर और उच्च रक्तचाप जैसे रोगों की आशंका कम हो जाती है।[1] साबुत अनाज युक्त खाद्य पदार्थों का ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है, जिससे ये रक्त में शर्करा के स्तर को कम करते हैं। इनमें पाए जाने वाले फाइबर अंश पेट में गैस बनने की प्रक्रिया कम करते हैं एवं पेट में स्थिरता का आभास होता है, इसलिए ये शारीरिक वजन को कम करने में सहायता करते हैं। साबुत अनाज और साबुत दालें प्रतिदिन के आहार में अवश्य सम्मिलित करने चाहिये। धुली दाल के बजाय छिलके वाली दाल को वरीयता देनी चाहिये। साबत से बनाए गए ताजे उबले हुए चावल, इडली, उपमा, डोसा आदि रिफाइन्ड अनाज से बने पैक किए उत्पादों जैसे पस्ता, नूडल्स आदि से कहीं बेहतर होते हैं। रोटी, बन और ब्रैड से ज्यादा अच्छी होती हैं।[2] रिफाइंड अनाज के मुकाबले साबुत अनाज वाले खाद्य पदार्थों से कार्डियोवस्क्युलर बीमारियों एवं पेट के कैंसर का खतरा कम हो जाता है।

लॉक डाउन में किसानों को भूली सरकार

लॉक डाउन में किसानों को भूली सरकार

कोरेना वायरस की माहमारी से आज पूरी दुनिया जूझ रही है यह एक वैश्विक संकट है। दुनिया भर में तमाम देश आज लॉक डाउन हो चुके हैं क्योंकि इस समस्या का समाधन ही घर पर रहना, समाज में दूरी बनाकर रखना है।
कल माननीय प्रधानमंत्री जी ने 21 दिनों का लॉक डाउन किया जिसका हम सभी ने स्वागत किया,
माननीय प्रधानमंत्री जी ने सभी विशेष सेवाओं की छूट दी है जिसमें चिकित्सा, खाने पीने का सामान, दूध, सब्जियां आदि।
लेकिन माननीय प्रधानमंत्री जी ने किसानों के लिए कोई विशेष सूचना नही दी,जबकि इनमें से दो तिहाई वस्तुओं का सम्बंध किसानों से है।

किसानों ने दिखाया गेहूँ और दलहनी फसलों पर भरोसा, तिलहनी फसलों की बुबाई की कम

मौसम की बदलती करवट के चलते किसानों ने रवि फसल में गेहूं चना मटर दलहन पर भरोसा जताया है जबकि तिलहन ऊपर किसानों का भरोसा इस वर्ष कम देखने को मिल रहा है जिसके चलते तिलहन फसलों का एरिया लगातार घटता जा रहा है
चालू सीजन में गेहूं की बुआई बढ़कर 277.91 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुआई 250.02 लाख हेक्टेयर में हुई थी. वहीं दलहन की बुआई बढ़कर 131.46 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 131.38 लाख हेक्टेयर में दालों की बुआई हुई थी. रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुआई पिछले साल के 86.70 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 89.28 लाख हेक्टयेर में हो चुकी है.

राजस्थान में तीन साल में दुगुनी हो गई आर्गेनिक फार्मिंग :कृषि मंत्रालय

 राजस्थान में तीन साल में दुगुनी हो गई आर्गेनिक फार्मिंग

पेस्टीसाइड और केमिकल्स के खाद्यान्न उत्पादन में बढ़ते उपयोग के बीच प्रदेश के लिए एक अच्छी खबर है। बड़ी तादात में हमारे किसानों ने फसलों में रसायनिक खाद और केमिकल का उपयोग करना बंद कर दिया है। ऑर्गेनिक फार्मिंग बहुत तेजी से बढ़ रही है। राजस्थान में वर्ष 2015-16 में 1,55020 हैक्टेयर क्षेत्र में जैविक खेती की गई। इसमें 58,534 मैट्रिक टन जैविक उत्पादन हासिल किया गया।