जिन्दा रहने के लिए किसान संगठित और रचनात्मक संघर्ष करे
Submitted by kisanhelp on 26 April, 2015 - 23:10खेती कईली जीए-ला, बैल बिकागेल बीए-ला, यह लोकोक्ति मिथिला के ग्रामीण क्षेत्रों में खूब बोली जाती है। इसका अर्थ भी बताना चाहूंगा। किसान खेती करता है जीने के लिए लेकिन जब खेती करने के दौरान खेती का प्रधान औजार ही बिक जाये तो वैसी खेती करने का कोई औचित्य नहीं रह जाता है। पहले खेती के लिए हल-बैल महत्वपूर्ण साधन होता था लेकिन किसानों को बीज के लिए अगर बैल जैसे खेती के महत्वपूर्ण साधन बेचना पडे इससे बडी विडंवना और क्या हो सकती है। क्या सचमुच आज खेती और खेती करने वालें खेरूतों की स्थिति बदतर हो गयी है? इस बात का पता लगाने के लिए हमें एक विहंगम दृष्टि देश की खेती पर डालना होगा।