सौंफ के प्रमुख रोग एवं उनका जैविक उपचार
सौंफ उत्पादन तथा बीज मसाला निर्यात के हिसाब से भारत का प्रथम स्थान है। मसाले हमारे खाद्य पदार्थों को स्वादिष्टता तो प्रदान करते ही है साथ ही हम इससे विदेशी मुद्रा भी अर्जित करते हैं। सौंफ की मुख्य फसल है, इनमें कई रोग लग जाते हैं जिससे इन बीज मसालों के उत्पादन के साथ गुणवता भी गिर जाती है तथा निर्यात प्रभावित होता है। इस फसल के रोग तथा इनका प्रबन्धन इस प्रकार है
छाछिया (पाउडरी मिल्ड्यू): यह रोग ‘इरीसाईफी पोलीगोनी Ó नामक कवक से होता है। इस रोग में पत्तियों, टहनियों पर सफेद चूर्ण दिखाई देता है जो बाद में पूर्ण पौधे पर फैल जाता है। अधिक प्रकोप से उत्पादन एवं गुणवता कमजोर हो जाते हैं।
रोकथाम: गन्धक चूर्ण 20-25 किलोग्राम/हेक्टेयर का भुरकाव करें या घुलनशील गंधक 2 ग्राम प्रति लीटर पानी या केराथेन एल.सी.1 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार 15 दिन बाद दोहरावें।
जड़ एवं तना गलन: यह रोग ‘स्क्लेरेाटेनिया स्क्लेरोटियेारम व ‘फ्यूजेरियम सोलेनाई Ó नामक कवक से होता है। इस रोग के प्रकोप से तना नीचे मुलायम हो जाता है व जड़ गल जाती है। जड़ों पर छोटे-बड़े काले रंग के स्कलेरोशिया दिखाई देते है।
रोकथाम
बुवाई पूर्व बीज को प्रति किलो बीज को गौमूत्र से 200 ग्राम की दर से बीजोपचार कर बुवाई करनी चाहिये। ट्राइकोडर्मा विरिडी मित्र फफूंद 2.5 किलो प्रति हैक्टेयर गोबर खाद में मिलाकर बुवाई पूर्व भूमि में देने से रोग में कमी होती है।
झुलसा (ब्लाईट)
सौंफ में झुलसा रोग रेमुलेरिया व ऑल्टरनेरिया नामक कवक से होता है। रोग के सर्वप्रथम लक्षण पौधे भी पत्तियों पर भूरे रंग के घब्बों के रूप में दिखाई देते है। धीरे-धीरे ये काले रंग में बदल जाते है। पत्तियों से वृत, तने एवं बीज पर इसका प्रकोप बढ़ता है। संक्रमण के बाद यदि आद्र्रता लगातार बनी रहें तो रोग उग्र हो जाता है। रोग ग्रसित पौधों पर या तो बीज नहीं बनते या बहुत कम और छोटे आकार के बनते हैं । बीजों की विपणन गुणवता का हृास हो जाता है।
रोकथाम
स्वस्थ बीजों को बोने के काम में लीजिए। फसल में अधिक सिंचाई नही करें। इस रोग के लगने की प्रारम्भिक अवस्था में फसल पर गैामूत्र 10 लीटर व नीम की पट्टी 2.5 किलो व लहसुन 250 ग्राम काढ़ा बना कर घोल का छिड़काव करें आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिन बाद दोहरायें। रेमुलेरिया झुलसा रोग रोधी आर एफ 15, आर एफ 18, आर एफ 21, आर एफ 31, जी एफ 2 सौंफ बोये।
सौंफ में कीट-व्याधियों के लिए निम्न पौध संरक्षण (स्प्रे सेडयूल) अपनायें
1 कि.ग्रा. तम्बाकू की पत्तियों का पाउडर 20 कि.ग्रा. लकड़ी की राख के साथ मिला कर बीज बुआई या पौध रोपण से पहले खेत में छिड़काव करें।
गोमूत्र नीम का तेल मिलाकर अच्छी तरह मिश्रण तैयार कर 500 मि. ली. मिश्रण को प्रति पम्प के हिसाब से फसल में तर-बतर कर छिडकाव करें |
प्रथम छिड़काव: बुवाई के 30-35 दिन बाद
द्वितीय छिड़काव: बुवाई के 45 से 50 दिन बाद
तृतीय छिड़काव: दूसरे छिड़काव के 10 से 15 दिन बाद
यदि आवश्यक हो तो तीसरे छिड़काव के 10-15 दिन बाद 25 किलो गन्धक चूर्ण का प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव करें।