हल्दी

हल्दी (टर्मरिक) भारतीय वनस्पति है। यह अदरक की प्रजाति का ५-६ फुट तक बढ़ने वाला पौधा है जिसमें जड़ की गाठों में हल्दी मिलती है। हल्दी को आयुर्वेद में प्राचीन काल से ही एक चमत्कारिक द्रव्य के रूप में मान्यता प्राप्त है। औषधि ग्रंथों में इसे हल्दी के अतिरिक्त हरिद्रा, कुरकुमा लौंगा, वरवर्णिनी, गौरी, क्रिमिघ्ना योशितप्रीया, हट्टविलासनी, हरदल, कुमकुम, टर्मरिक नाम दिए गए हैं। आयुर्वेद में हल्‍दी को एक महत्‍वपूर्ण औषधि‍ कहा गया है। भारतीय रसोई में इसका महत्वपूर्ण स्थान है और धार्मिक रूप से इसको बहुत शुभ समझा जाता है। विवाह में तो हल्दी की रसम का अपना एक विशेष महत्व है।

लैटि‍न नाम : करकुमा लौंगा (Curcuma longa)
अंग्रेजी नाम : टरमरि‍क (Turmeric)
पारि‍वारि‍क नाम : जि‍न्‍जि‍बरऐसे
हल्दी में उड़नशील तेल 5.8%, प्रोटीन 6.3%, द्रव्य 5.1%, खनिज द्रव्य 3.5%, और करबोहाईड्रेट 68.4% के अतिरिक्त कुर्कुमिन नामक पीत रंजक द्रव्य, विटमिन A पाए जाते हैं। हल्दी पाचन तन्त्र की समस्याओं, गठिया, रक्त-प्रवाह की समस्याओं, कैंसर, जीवाणुओं (बेक्टीरिया) के संक्रमण, उच्च रक्तचाप और एलडीएल कोलेस्ट्रॉल की समस्या और शरीर की कोशिकाओं की टूट-फूट की मरम्मत में लाभकारी है। हल्दी कफ़-वात शामक, पित्त रेचक व पित्त शामक है। रक्त स्तम्भन, मूत्र रोग, गर्भश्य, प्रमेह, त्वचा रोग, वात-पित्त-कफ़ में इसका प्रयोग बहुत लाभकारी है। यकृत की वृद्धि में इसका लेप किया जाता है। नाड़ी शूल के अतिरिक्त पाचन क्रिया के रोगों अरुचि (भूख न लगना) विबंध, कमला, जलोधर व कृमि में भी यह लाभकारी पाई गई है। इसी प्रकार हल्दी कि एक किस्म काली हल्दी के रुप में भी होती है। उपचार में काली हल्दी पीली हल्दी के मुक़ाबले अधिक लाभकारी होती है।

हल्दी की गांठ

हल्दी चूर्ण
हल्दी के चामत्कारिक गुण
रसोई की शान होने के साथ-साथ हल्दी कई चामत्कारिक औषधीय गुणों से भरपूर है। आयुर्वेद में तो हल्‍दी को बेहद ही महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि हल्दी गुमचोट के इलाज में तो सहायक है ही साथ ही कफ-खांसी सहित अनेक बीमारियों के इलाज़ में काम आती है। इसके अलावा हल्दी सौन्दर्यवर्धक भी मानी जाती है और प्रचीनकाल से ही इसका उपयोग रूप को निखारने के लिए किया जाता रहा है। वर्तमान समय में हल्दी का प्रयोग उबटन से लेकर विभिन्न तरह की क्रीमों में भी किया जा है

अब हर जलवायु में बोएं नरेंद्र हल्दी की नई प्रजाति

अब हर जलवायु में बोएं नरेंद्र हल्दी की नई प्रजाति

आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक की मेहनत रंग लाई। उनकी ईजाद की गई हल्दी की नई प्रजाति एनडीएच-98 सभी प्रकार की जलवायु के लिए मुफीद पाई गई है। इसे न सिर्फ देश के सभी प्रांतों में उगाया जा सकेगा, बल्कि यह गुणवत्ता व मात्रा में भी श्रेष्ठ पाई गई।
हाल में ही राजस्थान में आयोजित राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र में आयोजित कार्यशाला में हल्दी की इस प्रजाति को रिलीज करने की अनुमति मिली। यह प्रजाति अब रिलीज हो चुकी है। इस प्रजाति ने देशभर में नरेंद्रदेव कृषि विश्वविद्यालय व शोधकर्ता डॉ. विक्रमा प्रसाद पांडेय के कार्य का लोहा मनवाया है।

पराली जलाकर किसान खुद और प्रकृति से कर रहे हैं खिलवाड़

पराली जलाकर किसान खुद और प्रकृति से कर रहे हैं खिलवाड़

प्रकृति ने पराली के रूप में किसानों को बहुत बड़ी नियामत दी है, लेकिन जानकारी के अभाव में किसान इसका सदुपयोग नहीं कर रहे। थ्रेशर व स्ट्रा रिपर की मदद से गेहूं की पराली से तूड़ी बना ली जाती है, जबकि 80 प्रतिशत से ज्यादा धान की पराली को आग के हवाले कर दिया जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि किसान यदि टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर पराली का सदुपयोग करें तो काफी फायदा हो सकता है।

गोमूत्र और नीम तेल फसलों का बना रक्षा कवच

गोमूत्र और नीम तेल फसलों का बना  रक्षा कवच

बारिश के मौसम में फसलों पर कीटों और फफूंद का प्रकोप बढ़ जाता है। इन्हें खत्म करने की बाजार में सैकड़ों रासायनिक कीटनाशक उपलब्ध हैं लेकिन आप चाहे तो घर पर भी इसका इंतजाम कर सकते हैं। इससे न सिर्फ आपके पैसे बचेंगे बल्कि फसल पर भी बुरा असर नहीं पड़ेगा।

खरीफ मौसम में जो भी सब्जियां और फसलें बोई जाती हैं उसमे कीट-पतंग,इल्ली और फफूंद का प्रकोप हो जाता है, जिससे फसल और उपज दोनों पर असर पड़ता है। प्रकोपित पौधे बेहतर उत्पादन नहीं दे पाते हैं। बाजार में मौजूद रसायन एक तो काफी महंगे हैं, जो किसान के लिए खेती का खर्च बढ़ा देते हैं दूसरे कई बार इनका फसलों पर असर भी पड़ता है।'

जुलाई में कृषि कार्यों में क्या करें

जुलाई में कृषि कार्यों में क्या करें

जुलाई महीने के प्रमुख कृषि कार्य

धनहा खेत में हरी खाद की फसल लगाते हैं। ये गहरे हल से जुताई करके किया जाता है।

धान का रोपा लगाया जाता है। जो धान जून के अन्त में बोयी गयी थी, उसकी निंदाई की जाती है।

मक्का, जो मई या जून में बोई गयी थी, उसकी निंदाइ की जाती है।

इस महीने में फिर से मक्का बाजरा, ज्वार, अरहर आदि लगाते हैं।

गन्ने पर मिट्टी चढ़ायी जाती है। कपास, मूंगफली की निंदाई-गुड़ाई करते हैं।

सूरजमुखी की बुवाई करना शूरु हो जाता है।

चारे के लिये सूडान घास, मक्का, नेथियर, रोड्स पारा आदि घास लगायी जाती है।

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