पराली जलाकर किसान खुद और प्रकृति से कर रहे हैं खिलवाड़
प्रकृति ने पराली के रूप में किसानों को बहुत बड़ी नियामत दी है, लेकिन जानकारी के अभाव में किसान इसका सदुपयोग नहीं कर रहे। थ्रेशर व स्ट्रा रिपर की मदद से गेहूं की पराली से तूड़ी बना ली जाती है, जबकि 80 प्रतिशत से ज्यादा धान की पराली को आग के हवाले कर दिया जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि किसान यदि टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर पराली का सदुपयोग करें तो काफी फायदा हो सकता है।
पीएयू के फार्म व पावर मशीनरी विभाग के कृषि इंजीनियर डॉ. महेश कुमार नारंग के अनुसार यूनिवर्सिटी द्वारा ऐसी बहुत सी मशीनरी व टेक्नोलॉजी तैयारी की गई हैं जिसकी मदद से किसान पराली से लाभ कमा सकते हैैं। उदाहरण के तौर पर पराली के इस्तेमाल से मशरूम उत्पादन हो सकता है। पीएयू द्वारा पराली और गेहूं की तूड़ी से कंपोस्ट तैयार कर सर्दियों में बटन मशरूम व ढींगरी मशरूम और गर्मियों में पराली मशरूम की खेती करने की सिफारिश भी की गई है।
इसके अतिरिक्त पीएयू के स्कूल ऑफ एनर्जी स्टडी फॉर एग्रीकल्चर कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी ने पराली से बायोगैस तैयार करने की दो अलग तकनीकें विकसित की हैं। पराली से तैयार बायोगैस के इस्तेमाल से रसोई में खाना बनाने से लेकर जनरेटर चलाया जा सकता है। इससे पैडी-स्ट्रा कंपोस्ट बनाने की तकनीक भी विकसित की है। पैडी-स्ट्रा कंपोस्ट न सिर्फ पैदावार को बढ़ाती है, बल्कि उर्वरक पर होने वाले खर्च भी कम करता है। चारे के तौर भी पराली का इस्तेमाल किया जा सकता है।
कई तरह के चारे की संभावना
पीएयू व गुरु अंगद देव वेटरनरी यूनिवर्सिटी ने पराली से कई तरह का चारा तैयार करने की तकनीकें विकसित की है। चारे को ऐसे राज्यों में बेचा जा सकता है, जहां इसकी कमी है। भट्ठों में भी पराली इस्तेमाल में लाई जाती है। पंजाब में करीब तीन हजार ईंट भ_े हैं। इनमें बीस लाख टन कोयले की खपत होती है। किसान पराली के छोटे-छोटे गोले बनाकर भ_ों को बेच सकते हैं। बिजली पैदा करने में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। बिजली पैदा करने वाले प्लांट पराली की गांठों को एक हजार से पंद्रह सौ रुपये प्रति टन के हिसाब से खरीदते हैं।
गत्ता इंडस्ट्री में भी हो सकता है प्रयोग
पराली का प्रयोग गत्ता बनाने वाली इंडस्ट्री, पैकेजिंग व सेनेटरी इंडस्ट्री में भी किया जा रहा है। मशीन से बड़ी आसानी से आयतकार व गोलाकार में पराली के बंडल बनाए जा सकते हैं। पंजाब में इस समय करीब साढ़े तीन सौ बेलर हैं।
कई सब्जियों की पैदावार में भी सहायक
पराली का इस्तेमाल हल्दी, प्याज, लहसुन, मिर्च, चुकंदर, शलगम, बैंगन, भिंडी सहित अन्य सब्जियां में किया जा सकता है। बैडो पर इन सब्जियों के बीज बोने के बाद पराली को मर्चन कर (पराली को कुतर कर) ढक देने से पौधों को प्राकृतिक खाद मिलती है। ढके हुए हिस्से पर खरपतवार (नदीन) नहीं उगते।
मुफ्त में पोषक तत्व पा सकते हैं किसान
लुधियाना के मुख्य खेतीबाड़ी अफसर डॉ. सुखदेव सिंह के अनुसार पराली न जलाकर फसलों के लिए मुफ्त में कई तरह के पोषक तत्व पाए जा सकते हैं। धान की पराली को आग लगाने से 36 से 42 किलो यूरिया, 15 से 17 किलो डीएपी, 125 से 146 किलो पोटाश व 4 किलो सल्फर प्रति एकड़ जलकर राख हो जाती है। यदि हैप्पी सीडर की मदद से पराली वाले खेत में ही गेहूं की सीधी बिजाई कर दी जाए, तो पराली के अवशेषों से गेहूं के लिए खाद पाई जा सकती है। इससे जमीन में आर्गेनिक तत्वों की मात्रा भी बढ़ती है।
kisanhelp के प्रमुख श्री सिंह नें कहा कि प्रकृति ने पराली के रूप में किसानों को बहुत बड़ी नियामत दी है, लेकिन जानकारी के अभाव में किसान इसका सदुपयोग नहीं कर रहे। पराली जलाकर कई किसान खुद और प्रकृति से खिलवाड़ कर रहे हैं। पराली को खेत में ही हल चला कर जोत देना चाहिए ,जिससे यह एक अच्छी खाद साबित हो सकेगी खेत में फैलानें से खेत की मिटटी में बहुत सारे आवश्यक सूक्ष्म तत्व पूरे हो जाते हैं जिनकी पूर्ती के लिए किसान भाई महँगे उर्वरक खरीदते हैं । पराली का इस्तेमाल सब्जियों की पैदावार में,गत्ता इंडस्ट्री में,बिजली पैदा करने में,चारे में किया जा सकता है