औषधि

औषधि वह पदार्थ है जिन का निश्चित मात्रा शरीर मै निश्चित प्रकार का असर दिखाता है। इनका प्रयोजन चिकित्सा में होता है। किसी भी पदार्थ को औषधि के रुप मै प्रयोजन करके के लिए उस पदार्थ का गुण, मात्रा अनुसार का व्यवहार, शरीर पर विभिन्न मात्राऔं में होने वाला प्रभाव आदि का जानकारी अपरिहार्य है।

औषधियाँ रोगों के इलाज में काम आती हैं। प्रारंभ में औषधियाँ पेड़-पौधों, जीव जंतुओं से प्राप्त की जाती थीं, लेकिन जैसे-जैसे रसायन विज्ञान का विस्तार होता गया, नए-नए तत्वों की खोज हुई तथा उनसे नई-नई औषधियाँ कृत्रिम विधि से तैयार की गईं।
ऐसे पौधे जिनके किसी भी भाग से दवाएँ बनाई जाती हैं औषधीय पौधे कहलाते हैं। सर्पगंधा, तुलसी, नीम आदि इसी प्रकार के पौधे हैं।

सदाबहार धनिया उपजायें

जलवायु एवं भूमि – धनिया की खेती शीतोष्ण एवं उपोष्ण दोनों प्रकार की जलवायु में की जाती है। बसंत ऋतु में पाला पडऩे से पौधों को क्षति होने की संभावना रहती है। इसका अंकुरण होने के लिए 20 डिग्री से.ग्रे. तापमान की आवश्यकता होती है। धनिया की खेती के लिए दोमट मृदा सर्वोत्तम होती है। ऐसी भूमि जिसमें कार्बनिक पदार्थ की मात्रा ज्यादा हो एवं जल निकास की भी उचित व्यवस्था हो, इसकी खेती के लिए उचित होती है। इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान 6.5-8 के बीच होना चाहिए, क्योंकि ज्यादा अम्लीय एवं लवणीय मृदा इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती है।

स्ट्राबेरी की उन्नत खेती

 

भारत में स्ट्राबेरी की खेती सर्वप्रथम उत्तर प्रदेश तथा हिमाचल प्रदेश के कुछ पहाड़ी क्षेत्रों में 1960 के दशक से शुरू हुई, परन्तु उपयुक्त किस्मों की अनुउपब्धता तथा तकनीकी ज्ञान की कमी के कारण इसकी खेती में अब तक कोई विशेष सफलता नहीं मिल सकी। आज अधिक उपज देने वाली विभिन्न किस्में, तकनीकी ज्ञान, परिवहन शीत भण्डार और प्रसंस्कण व परिरक्षण की जानकारी होने से स्ट्राबेरी की खेती लाभप्रद व्यवसाय बनती जा रही है। बहुद्देशीय कम्पनियों के आ जाने से स्ट्राबेरी के विशेष संसाधित पदार्थ जैसे जैम, पेय, कैंडी इत्यादि बनाए जाने के लिये प्रोत्साहन मिल रहा है।

जलवायु

जलकुंभियों से बनाये मूल्यवान जैविक खाद

 

देश का शायद ही कोई गांव या शहर का ऐसा हिस्सा बचा होगा जहां पर ठहरा पानी हो और उसमे जलकुम्भी का राज न हो। सरकार चाहे तो एक पंथ से दो काज कर सकती है। इसपर कंट्रोल को लेकर बेरोजगार युवाओं को प्रशिक्षित करके फिजिकल तौर पर इसे खतम किया जा सकता है और दवाइयों का निर्माण करके या आयुर्वेद की दवाइयां बनाने वाली कंपनियों को सप्लाई करके युवा मोटी कमाई कर सकते हैं। इसके और भी उपयोग हैं जैसे फर्नीचर, हैंडबैग, आर्गेनिक खाद,जानवरों के चारे के साथ कागज बनाने में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।

अश्वगंधा की उन्नत खेती

भारत में अश्वगंधा अथवा असगंध जिसका वानस्पतिक नाम वीथानीयां सोमनीफेरा है, यह एक महत्वपूर्ण औषधीय फसल के साथ-साथ नकदी फसल भी है।अश्वगंधा आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में प्रयोग किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पौधा है। इसके साथ-साथ इसे नकदी फसल के रूप में भी उगाया जाता है। सभी ग्रथों में अश्वगंधा के महत्ता के वर्णन को दर्शाया गया है। इसकी ताजा पत्तियों तथा जड़ों में घोंड़े की मूत्र की गंध आने के कारण ही इसका नाम अश्वगंधा पड़ा। विदानिया कुल की विश्व में 10 तथा भारत में 2 प्रजातियाँ ही पायी जाती हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में अश्वगंधा की माँग इसके अधिक गुणकारी होने के कारण बढ़ती जा रही है। यह पौ

Pages