रसायन खेती का अन्तिम विकल्प नही है

रसायन खेती का अन्तिम विकल्प नही है

हमारे यहाँ एक कहावत कही जाती है जान के मक्खी नही निगली जाती है हम लोग जब कोई सामान खरीद्नें जाते हैं तो उसके बारे में तमाम सवाल दुकान वाले से करते हैं जबकि वह सामान की आयु एक साल दो साल अधिक से अधिक दस बीस साल होगी । लेकिन हम अपनी जिन्दगी का सौदा बिना सोचे बिना समझे करते है जो अन्न हम खाते हैं अपने परिवार को खिलाते हैं उसमें अंधाधुंध जहर मिलाते हैं । 

प्राचीन काल में राजा-महाराजा को मारने के लिए षडयंत्रकारी लोग राजा के रसोईए से मिलकर, राजा के भोजन में धीमी गति से फैलने वाला ज़हर मिलवा देते थे । परन्तु आजकल हम सब कुछ जानते हुए भी आँखे बंद करके इस ज़हर का सेवन करते हैं । 

प्रतिदिन हम समाचार पत्र-पत्रिकाओं अथवा टी वी चैनलों पर फलों व सब्ज़ियों पर छिडके गए कीटनाशक रसायनों से होने वाले दुष्परिणामों के विषय में पढ़ते व सुनते हैं ।

किसान अपनी पैदावार बढ़ाने के लिए तथा हम “अन्य कोई विकल्प ही नहीं है” कह कर निरन्तर ऐसे फलों व सब्ज़ियों का प्रयोग करते रहते हैं ।

इस विकल्प के बारे में जान लेना अति आवश्यक है मैं आप लोगो को एक इतिहास बताता हूँ शायद इस इतिहास के बारे में आपने कहीं किसी मेरे जैसे भाई या किसी बुजुर्ग के मुंह सुना हो  1840 में जर्मन वैज्ञानिक लिबिक ने इन तीनों के रासायनिक संगठक एन पी के खाद बनाकर फसलों की बढ़वार के लिए इस रसायन को भूमि पर डालने के लिए प्रोत्साहित किया द्वतीय विश्व युद्ध के बाद भारी मात्रा में बचे गोला , बारूद की रासायनिक सामग्रियों को एन पी के खाद एवं कीटनाशक बनाकर बेचने के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने व्यापक प्रचार-प्रसार प्रारंभ कर दिया इससे इन कंपनियों को भारी मात्रा में बचे गोला बारूद के रसायनों का अधिकतम मूल्य तो मिला ही साथ ही साथ कृषि बाजार में इन कंपनियों की गहरी जड़ें जम गई भारत तथा एशियाई देशों में औद्यौगिक क्रांति के बाद हरित क्रांति के नाम पर इन खाद और कीट नाशकों को बेचकर खूब पैसा कमाया इस बात का एक एतिहासिक उदाहरण बताना चाहूँगा 1965 में अमेरिका वियतनाम युद्ध के दौरान जंगलों में छिपे वियतनामी सैनिकों को ढूंढ़कर अपना निशाना बनाने की गरज से अमेरिका वायुसेना ने एजेंट ओरेंज नाम के रसायन का छिडकाव किया यह रसायन एक व्यापक असर वाला खरपतवार नाशक था जो हर रोज की हरियाली को नष्ट कर देता था अमरीकी वायुसेना ने लगभग एक करोड़ 10 लाख गैलन एजेंट ओरेंज छिड़का था जिसके प्रभाव से वियतनाम के लाखों हेक्टेयर जंगल उसकी जैव विबिधता और जीव - जंतु तबाह हो गए जिन वियतनामी सैनिकों या नागरिकों पर इसका असर पड़ा , हाल में पैदा होने वाली उनकी दूसरी पीढ़ी तक विकलांग पैदा हुई रसायन की निर्माता बहुराष्ट्रीय रसायन कंपनी मोनसेंटो थी और आज यही रसायन राउंड अप नाम से खरपतवार नाशक कहकर भारतीय किसानों को बेचा जा रहा है ।

मौत का सामान यह रसायन किसी समाज को नस्त्र ही कर सकते हैं  और हम किसान अपनी जिन्दगी को दांव पर लगा कर इन खतरनाक रसायनों से एक अच्छे और बेहतर कल की कामना कर रहे हैं 

यह सत्य है कि यह अन्तिम विकल्प है लेकिन खेती का ही नही यह हमारी मानव जाति का अंतिम विकल्प है क्यों  की आप लोगों के इस अन्तिम विकल्प नें आप को ही नहीं बल्कि आने बाली पीढ़ी को भी खतरे में डाल दिया है । हम लोगों ने चका चौंध की इस बनाबटी दुनिया हो एक मात्र सत्य मान लिया है । 

इतने खतरनाक रसायनों के परिणाम सुखद तो नहीं होंगे इतना तो मैं भी जनता हूँ और आप सभी लोग भी जानते हैं रसायन अन्तिम विकल्प नही है इस सच्चाई को मान ले इस समस्या से निजात पाने का एक मात्र हल जैविक खेती है ।  एक बार खुद के बारे में नही अपनी पीढ़ी को बचने के खातिर इस रासायनिक दुनिया से बहार आयें ।  जाने अनजाने में जो भूल हम किसानों से हुई हैं उन्हें हम दुवारा न दोहरा के एक अच्छे देश का निर्माण कर सकते हैं। 

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