अधिक फायदेमंद औषधीय फसलों की खेती

परम्परागत खेती में बढ़ती लागत और कम मुनाफा होने से किसानों के लिए औषधीय फसलों की खेती काफी फायदेमंद साबित हो रही है। औषधीय फसल आर्टीमीशिया की खेती उत्तर प्रदेश के अधिकांश जिलों में किसान कर रहे हैं। लखनऊ से 75 किमी दक्षिण में बाराबंकी जिले के टांड़पुर गाँव के किसान राम सांवले शुक्ला बताते हैं, ”हमने चार वर्ष पहले आर्टीमीशिया की खेती शुरू की। इसकी खासियत है इसमें ना तो ज्य़ादा खाद की ज़रूरत होती है, और न ही सिंचाई की। शुरू में मैंने सिर्फ दो एकड़ में फ सल बोई और फायदा होने पर आज अपनी पूरी जमीन पर आर्टीमीशिया की ही खेती करते है 

आर्टीमीशिया की खेती के लिए एक ग्राम बीज प्रति एकड़ जमीन के लिए पर्याप्त होता है। इसकी खेती के लिए नवंबर माह के अंत में नर्सरी तैयार कर जनवरी में रोपाई की जाती है। फ सल अप्रैल से मई माह तक कट जाती है। एक बीघे खेत में इस पौधे की तीन से साढ़े तीन कुंतल पत्तियां निकलती हैं। आर्टीमीशिया की एक बार रोपाई के बाद एक वर्ष भर में तीन बार उपज पाई जा सकती है।
”भारत में आर्टीमीशिया को सीएसआईआर-सीमैप ने ही करीब एक दशक पहले शुरू किया था। इसे पहले सिर्फ चीन में ही इसकी खेती होती थी। सीमैप किसानों को बीज और ट्रेनिंग दिलाने के साथ ही कम्पनियों के साथ अनुबंध भी कराता है, जिससे किसानों को फसल बेचने के लिए भटकना ना पड़े। करार के बाद फार्मा कंपनियां किसान से सीधे फ सल खरीद लेती हैं।” सीमैप के वैज्ञानिक संजय कुमार कहते हैं, ”कम लागत और ज्य़ादा मुनाफे सेे प्रदेश में इसकी खेती बढ़ती रही है। छोटे और मंझोले किसानों के लिए आर्टीमीशिया समेत सभी औषधीय फ सलों की खेती लाभदायक है। 

साभार गाँव कनेक्शन पत्रिका 
किसान आर्टीमीशिया की खेती से लिए लखनऊ में केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौध संस्थान (सीमैप) के साथ ही कई दवा बनाने वाली कंपनियों से भी संपर्क कर सकते हैं। किसान कंपनी से एग्रीमेंट कर बीज भी पा सकते हैं। मुफ्त में बीज देने के साथ ही कंपनी किसानों की फसल भी खरीद लेती है।
”कम्पनी के साथ कांट्रैक्ट फॉर्मिंग (करार बद्ध खेती) करने वाले किसानों को हम बीज मुफ्त में देते हैं। फ सल तैयार होने पर सीधे घरों से ही खरीद लेते हैं। किसानों को चेक के भुगतान किया जाता है। इससे उनकी आमदनी 15 से 25 हजार रुपये तक प्रति एकड़ हो जाती है।  आर्टीमीशिया की खेती को कम पानी की भी आवश्यकता पड़ती है।