(आइवीआरआइ) में चार दिवसीय मेले का समापन

भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आइवीआरआइ) में चार दिवसीय मेले का शुक्रवार को समापन हो गया। मेले में यूपी, उत्तराखंड के अलावा पंजाब, हरियाणा, हिमांचल प्रदेश, चंडीगढ़ और जम्मू के करीब 15 हजार आए किसान आए। वह आइवीआरआइ से पशुपालन के लिए खोजी तमाम तकनीक से परिचित हुए। साथ ही खेती और पशुपालन के वैज्ञानिकों से अपनी समस्याओं का समाधान भी जाना। जाते-जाते संस्थान से तैयार किए गए करीब साढ़े छह लाख के उत्पादक खरीद ले गए।

चार दिन से आइवीआरआइ परिसर में चले रहे आंचलिक कृषि मेले का शुक्रवार को समापन हुआ। मेले में संस्थान से तैयार किए गए खाद, यंत्र, दवाएं आदि के स्टाल लगे थे। किसानों की इसकी जमकर खरीदारी की। वहीं समापन अवसर पर मुख्य अतिथि और संस्थान के पूर्व डायरेक्टर डॉ. एमपी यादव ने कहा कि देश में हर साल दुग्ध उत्पादन में 3.5 फीसद की बढ़ोतरी हो रही है। लेकिन मांग के अनुरूप पांच फीसद की दर से बढ़ोतरी होनी चाहिए। विशिष्ट अतिथि करनाल के पूर्व निदेशक डॉ. नागेन्द्र शर्मा ने कहा कि ऐसे मेले से किसानों को तमाम चीजें सीखने को मिलती है। केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान मथुरा के निदेश डॉ. एसके अग्रवाल ने कहा कि जब तक हरित क्रांति सफल नहीं होगी, पशुपालन का विकास नहीं होगा। मेले के दौरान राष्ट्रीय कत्थक केन्द्र वाराणसी के माता प्रसाद मिश्र एवं उनकी टीम ने संगीत कार्यक्त्रम प्रस्तुत किया। इस दौरान संस्थान के इतिहास को संजोए एक पुस्तक का भी विमोचन किया गया। इस अवसर पर संस्थान के निदेषक डॉ. आरके सिंह, डॉ. महेष चन्द्र, डॉ. त्रिवेणी दत्त, डॉ. एसवीएस मलिक, डॉ. वीपी सिंह, संयुक्त निदेशक, डॉ. वीपी सिंह, डॉ. वीके गुप्ता आदि थे।

चार दिन में बिका साढ़े छह लाख का सामान

मेले में 62 स्टाल लगाए गए। इसमें अधिकतर आइवीआरआइ के थे। मेले में डेयरी के स्टाल से मीठा दही, लस्सी और आइसक्रीम की बिक्री खूब हुई। अधिकतर भीड़ इसी स्टाल पर रही। चार दिन में यहां से 80 हजार रुपये का सामान बिका। इसके अलावा कृषि विज्ञान केंद्र के स्टाल से वर्मी कंपोस्ट, बीज, शहद आदि तमाम सामान बिके। आइवीआरआइ के सभी स्टालों से चार दिन में 6 लाख 50 हजार से अधिक का सामान बिका।

किसान ने पैदा की आठ इंच बाली वाला गेहूं

शाहजहांपुर के कटरा क्षेत्र के गांव कसरक निवासी किसान ज्ञानेंद्र सिंह गंगवार आठ इंच की बाली वाला गेहूं लेकर आए थे। उन्हें पुरस्कृत भी किया गया। उन्होंने बताया कि सामान्यतया गेहूं की बाली चार से छह इंच की होती है। गेहूं के अलावा आलू और नीलू की भी प्रदर्शनी उन्होंने लगाई। उन्होंने बताया कि वह ऐसे चने की खेती कर रहे हैं जो सूखने के बाद भी हरा रहता है। यहां आए भुता के किसान दिनेशपाल सिंह ने बताया कि मेला आने से उन्हें दो फायदे हुए। एक तो मेला देखा और वैज्ञानिकों से अपनी समस्या का हल जाना। इसके अलावा आइवीआरआइ की डेयरी देखी है।

साभार नई दुनिया