खाद्य के नए स्त्रोत भी तलाशने होंगे : कृषि मंत्री

खाद्य के नए स्त्रोत भी तलाशने होंगे : कृषि मंत्री

हरित क्रांति के बाद भारतीय खेती चुनौतियों के नए चौराहे पर खड़ी है। छोटी जोत, भूमि की घटती उर्वरता, सीमित होते प्राकृतिक संसाधनों के बीच खाद्यान्न की पैदावार बढ़ाना एक गंभीर चुनौती है। उससे भी बड़ी मुश्किल कृषि उपज का उचित मूल्य दिलाना और खेती को लाभ का कारोबार बनाना है।

खेती से मुंह मोड़ रहे युवाओं के लिए इस क्षेत्र को आकर्षक बनाना है, ताकि विकास की निरंतरता कायम रह सके। केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने हरित क्रांति के स्वर्ण जयंती पर शुक्रवार को आयोजित समारोह में शामिल वैज्ञानिकों के समक्ष चिंताओं से उन्हें अवगत कराया।

देश के एक बड़े हिस्से में खेती आज भी इंद्र देवता की कृपा (बारिश) पर निर्भर है। हरित क्रांति के प्रभावों से ये क्षेत्र अछूते रहे, जहां उन्हें इसका लाभ नहीं मिल सका है। उत्पादकता बढ़ाने की संभावना इस क्षेत्र से बहुत अधिक है।

जबकि कुल खाद्यान्न उत्पादन में 60 फीसद का योगदान इन्हीं क्षेत्रों का है। कृषि मंत्री ने कहा कि इन क्षेत्रों में उन्नत व दक्षतापूर्ण जल प्रबंधन, जल संग्रहण व नमी संरक्षण के लिए तकनीक के विकास व प्रसार पर बल देने की जरूरत है।

राधा मोहन ने दाल व खाद्य तेलों की कमी पर चिंता जताते हुए कृषि वैज्ञानिकों से तिलहन व दलहनी फसलों की पैदावार बढ़ाने की अपील की। उन्होंने हरित क्रांति की उपलब्धियों का बखान करते हुए कहा कि खाद्य के नए स्त्रोत भी तलाशने की जरूरत है।

हमें अब वर्तमान और भावी जरूरतों पर ध्यान देने के लिए ही दूसरी हरित क्रांति को आगाज करना होगा। देश के पूर्वी राज्यों में शुरू हुई दूसरी हरित क्रांति को सफल बनाने के लिए अनुसंधान व विकास पर ध्यान देना चाहिए।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) के वैज्ञानिकों की पीठ ठोंकते हुए सिंह ने कहा कि मेरा गांव-मेरा गौरव और फारमर्स फर्स्ट जैसी अनूठी पहल के नतीजे अच्छे आएंगे।

इसीलिए सरकार ने कृषि विज्ञान केंद्रों के बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने को 3,900 करोड़ रुपये की धनराशि मंजूर की है। इस कार्यक्रम में हरित क्रांति के पुरोधा सम्मानित किए गए।