गेहूं की रोटी में भी हुई जहरीली

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गेहूं की रोटी में भी "जहर"

अगर आप सोच रहे हैं कि गेहूं के आटे की ताजी रोटी आपकी सेहत बना रही है तो सावधान हो जाएं। फूली हुई स्वादिष्ट रोटी आपकी सेहत को तंदुरुस्त करने की जगह बीमार भी कर रही है। उत्तर भारत में पैदा होने वाली अधिकांश गेहूं की प्रजातियों में अधिकाधिक मात्रा में ग्लूटन प्रोटीन पाया जा रहा है, जो कई बीमारियों को बढ़ाने का कारक है।

ग्लूटन की अधिकता होने से गेहूं की रोटी खाने से सिलिएक नामक रोग तेजी से फैल रहा है, जिसमें पेट से लेकर जोड़ों से संबंधित बीमारियां हो रही हैं। उत्तर भारत में गेहूं की जितनी भी प्रजातियां बोयी जा रही हैं, उसमें ग्लूटन प्रोटीन की मात्रा अधिकाधिक है।

सरदार बल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ में जैव प्रौद्योगिकी विभाग के कृषि वैज्ञानिकों ने प्रदेश के सभी हिस्सों से गेहूं की प्रजातियों पर रिसर्च किया है। इन प्रजातियों की स्क्रीनिंग के बाद पता चला कि प्रदेश सहित उत्तर भारत में ग्लूटन की अधिकता वाले गेहूं की प्रजातियां ही बोई जा रही हैं।

कृषि वैज्ञानिक डा. आरएस सेंगर बताते हैं कि जैव प्रौद्योगिकी विभाग में गेहूं की कम ग्लूटन वाली प्रजातियों को पहचाना जा रहा है। बॉयोटेक्नोलॉजी की सहायता से उन जीनों को खोजा जा रहा है, जिसकी वजह से ग्लूटन बनता है। विवि में शोध के माध्यम से कम ग्लूटन वाली गेहूं की प्रजातियों के विकास के लिए काम किया जा रहा है।

ये है ग्लूटन

ग्लूटन प्रोटीन आटे को गूंथने पर उसे बांधे रखता है और इसकी वजह से हल्की फुल्की फुली हुई रोटी बन जाती है। जिन अनाजों में यह ग्लूटन नहीं होता है या कम होता है, उसके आटे को गूंथना मुश्किल होता है।

ग्लूटन का वैश्विक असर

कृषि विवि के वैज्ञानिकों का कहना है कि गेहूं में ग्लूटन का असर वैश्विक स्तर पर है। अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ. डेविड पर्लकुटर ने पाया था कि 40 फीसदी अमेरिकी ग्लूटन को नहीं पचा पा रहे हैं, शेष 60 फीसदी लोग इससे होने वाली बीमारी के शिकार हैं।

सेहत पर ग्लूटन का असर

ग्लूटन प्रोटीन के खाने से सीलिएक नामक रोग हो रहा है, जो छोटी आंत की पाचन क्रिया को प्रभावित करता है। कुछ डाक्टर इसे लाइलाज बीमारी भी मानते हैं। ग्लूटन की अधिकता वाले गेहूं के आटे की रोटी खाने से पेट में अफरा, गैस, डायरिया, उल्टी, माइग्रेन, जोड़ों का दर्द से जूझना पड़ सकता है।

विश्वविद्यालय में गुणवत्तायुक्त प्रजातियां विकसित की जा रही हैं। जो इको फ्रेंडली होने के साथ किसान और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। जल्द ही गेहूं की ऐसी प्रजातियां आ जाएंगी, जो पूरी तरह से लोगों की सेहत का ख्याल करेंगी। 

- प्रो. एचएस गौड़

, कुलपति, सरदार बल्लभ भाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय, मेरठ