जूट के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 500 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि

जूट के न्यूनतम समर्थन मूल्य

नीति आयोग और कई अन्य मंत्रालयों की सिफारिशों के विपरीत कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने जूट के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 500 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी है। सिंह ने अपने मंत्रालय की सिफारिशों को भी खारिज कर दिया है, जिसमें सिर्फ 300 रुपये की वृद्धि की बात कही गई थी। केंद्रीय मंत्रिमंडल की अगली बैठक में इस पर मुहर लगने की संभावना है।

जूट उत्पादक असम और पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में सरकार वहां के जूट किसानों को एमएसपी में कोताही कर किसी तरह नाराज नहीं करना चाहेगी। तभी तो कृषि मंत्री सिंह को खुद आगे आना पड़ा और कई मंत्रालयों और नीति आयोग की टिप्पणियों को दरकिनार कर जूट का समर्थन मूल्य 3200 रुपये प्रति क्विंटल तय करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। पिछले साल यह मूल्य 2700 रुपये प्रति क्विंटल था।

सूत्रों के मुताबिक नीति आयोग ने कृषि लागत व मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिशों को गैर वाजिब करार देते हुए इसे किसी भी हाल में 3000 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक नहीं करने का सुझाव दिया था। जबकि सीएसीपी ने अपनी सिफारिश में इसे 3200 रुपये प्रति क्िवटल करने का सुझाव दिया था। कुछ अन्य मंत्रालयों ने इसे जिंसों की महंगाई बढ़ाने वाला कदम बताते हुए कैबिनेट नोट पर अपनी टिप्पणी दी थी। नीति आयोग ने कहा था कि इससे जिंस बाजार की पैकेजिंग की लागत बढ़ेगी और खाद्य वस्तुओं में महंगाई आ सकती है।

प्रस्तावित कैबिनेट नोट पर आई टिप्पणियों के आधार पर कृषि मंत्रालय ने अपनी फाइनल रिपोर्ट में इसे 3000 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित की थी। लेकिन राजनीतिक संवेदनशीलता को देखते हुए कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने सबको दरकिनार करते हुए जूट का एमएसपी 3200 रुपये प्रति क्विंटल करने को ही अंतिम रूप दिया है। यह वृद्धि 18.5 फीसद की वृद्धि होगी। प्रस्ताव अंतिम मुहर कैबिनेट की अगली बैठक में लगनी है। हालांकि टैक्सटाइल मंत्रालय ने इन सबसे अलग 3650 रुपये प्रति क्विंटल करने का सुझाव दिया था।

कृषि व टैक्सटाइल मंत्रालय जूट की घटती खेती व पैदावार से चिंतित हैं। एमएसपी बढ़ाकर उन्हें जूट खेती के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश की जा रही है। असम, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और पूर्वी बिहार के 40 लाख से अधिक किसान परिवार जूट खेती में लगे हुए हैं।

साभार नई दुनिया