भारत में जीएम सरसों पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

 भारत में जीएम सरसों पर  सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

किसानों के लिए बड़ी खबर है। जीएम सरसों अब बाजार में नहीं आएगी। सुप्रीम कोर्ट ने भारत में जीएम सरसों के बीजों को बाजार में लाने से रोक लगा दी है। जेनेटिकली मॉडिफाइड सरसों का बीज 17 अक्टूबर को बाजार में लॉन्च होनी थी।

देश की सबसे बड़ी अदालत में सरसों की जीन संवर्धित फसल के व्यावसायिक उपयोग और खेतों में इसके प्रशिक्षण प्रतिबंधित करने के संबंध सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायधीश टी.एस. ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने ये फैसला सुनाया। अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने इस पर तुरंत सुनवाई के लिये जोर दिया था। याचिका अरणा रोड्रिग्स ने दायर की थी। याचिका में न्यायालय से जीएम सरसों का खुले खेत में प्रशिक्षण करने को रोकने और एचटी सरसों डीएमएच 11 और इसकी मूल श्रृंखला के दूसरे बीजों सहित हर्बिसाइड टालरेंट के व्यावसायिक उपयोग शुरू करने पर रोक लगाने का आग्रह किया गया था। तकनीकी विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट में इसकी सिफारिश की गई थी।

याचिका में किसी भी अन्य जीएम फसल के व्यावसायीकरण पर रोक लगाने का भी आग्रह किया गया था। इसमें कहा गया है कि सरसों एचटी डीएमएच 11 और इसके एचटी मूल बीज से जो संपर्क प्रभाव होगा उसका कोई उपचार नहीं होगा और वापस मूल स्थिति में आना मुश्किल होगा।

जीएम फसलों के विरोध में किसान संगठन सड़क पर भी लड़ाई लड़ रहे थे। 2 अक्टूबर को देशभर के किसानों ने दिल्ली समेत कई जगहों पर जोरदार प्रदर्शन किया था। केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी (जीईएसी) संशोधित जीन वाली जीएम सरसों को अनुमति देने की ओर तेजी से अग्रसर है। पिछले वर्ष 2010 में इस कमेटी द्वारा बीटी बैंगन को अनुमति दिये जाने के बाद इसी मंत्रालय द्वारा बीटी बैंगन पर अनिश्चित काल के लिए प्रतिबंध लगाया था, जो अब तक जारी है। यानी छह साल गुजर जाने के बाद भी इस की सुरक्षा स्थापित नहीं हुई है। ऐसे में इस बीज को अनुमति देना भविष्य में भी दुष्परिणामों को लेकर आएगा।

बीटी कपास का दिया था उदाहरण

किसानों ने अपने ज्ञापन में लिखा था, बीटी कपास का हश्र देश के सामने है। जहां एक ओर बीटी कपास के आने के बाद सदियों से चली आ रही देसी किस्मों की शुद्धता चंद वर्षों में लगभग खत्म हो गई। बाजार में कपास का शुद्ध गैर-बीटी बीज मिलना दूभर हो गया। वहीं, चंद वर्षों में ही पहले बीटी कपास एक, फिर बीटी कपास दो और अब बीटी कपास तीन लाने की नौबत आ गई है। इस तकनीक से उत्पन्न बीज चंद बरसों में खत्म हो जाते हैं।

शोध के कागजात भी सार्वजनिक नहीं

बता दें कि जीएम सरसों को जिस खरपतवारनाशक, ग्लूफोसिनेट अमोनियम के प्रति सहनशील बनाया गया है वह भारत में प्रमुख तौर पर उस कम्पनी बेयर द्वारा ही बेचा जाता है जिसके पास इसमें प्रयुक्त जीन के बौद्धिक अधिकार हैं। उधर, दिल्ली विश्वविद्यालय की इस जीएम सरसों को बनाने में प्रयोग की गई विभिन्न जीन सामग्री और प्रक्रियाओं के कापीराइट की स्थिति भी अस्पष्ट है क्योंकि जीएम सरसों पर शोध एवं अनुसंधान के लिए किए गए सामग्री हस्तांतरण समझौतों के नियम और शर्तें सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं हैं। इस हवाले के साथ ही ज्ञापन में लिखा गया है कि कहीं ऐसा न हो कि भारत का किसान फिर मोन्सेंटो या किसी ओर ऐसी ही बहुराष्ट्रीय कम्पनी के मकड़ जाल में फंस जाये।

समस्या तकनीक नहीं आर्थिक है

नीतिगत स्तर पर तिलहनों और खाद्य तेल से संबन्धित आयात-निर्यात नीतियां ऐसी होनी चाहिए जो भारतीय उत्पादकों को उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रेरित करें न कि सस्ते आयात के चलते उन्हें बाजार से बाहर धकेल दें। तिलहन की समर्थन मूल्य नीति एवं खरीदी व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जो किसानों को अधिक उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करे। इतिहास गवाह है कि जब-जब ऐसा हुआ है, देश खाद्य उत्पादन में आर्थिक निर्भरता की ओर अग्रसर हुआ है। जब विश्व व्यापार संगठन के नियम आयात पर 150 प्रतिशत तक की दर से कर लगाने की अनुमति देते हैं, पिछले कई सालों से यह दर शून्य रही है और अब कुछ समय से मात्र 20 प्रतिशत है। अगर वर्तमान भारत सरकार सचमुच में तिलहन उत्पादन बढ़ाने को उत्सुक है तो स्थायी परिणामों के लिए उसे इन सभी विकल्पों पर गंभीरता से काम करना चाहिए। देश में फसल आने के बाद तिलहन फसलों की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर भी नहीं हो पाती है, जिसके कारण तिलहन का उत्पादन गिरा है।