मक्का उगाएं,आमदनी बढ़ाएं

मक्का उगाएं,नी बढ़ाएं आमद

जायद में मक्का की खेती कर किसान अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं। विश्व के सकल खाद्यान्न उत्पादन में इसका 25 फीसद योगदान है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह फसल कम समय में तैयार होती है। जिला कृषि अधिकारी आरएन सिंह का कहना है कि जायद में मक्का की खेती से न केवल हम आय बढ़ा सकते हैं बल्कि पशुओं के चारे की समस्या का भी समाधान कर सकते हैं।

खेत की तैयारी- गहरी भारी मिट्टी मक्का की खेती के लिए उपयुक्त समझी जाती है क्योंकि यह पानी को अपने अन्दर अधिक समय तक रोक सकती है। इसकी खेती में लवण युक्त व क्षारीय मिट्टी से बचना चाहिए क्योंकि ऐसी मिट्टी में अंकुरण के समय से ही फसल को नुकसान पहुंचने लगता है। जल भराव होने की स्थिति में फसल सूख जाती है।

उपयुक्त प्रजाति- मक्का की जल्द पकने वाली प्रजाति 70 से 80 दिन तथा देर से पकने वाली प्रजाति 90 से 100 दिन में तैयार हो जाती है। प्रोएग्रो 4210 व 4212 जल्द पकने वाली तथा प्रोएग्रो 4230 देर से पकने वाली प्रमुख प्रजाति है।

बोआई का समय- जायद मक्का की बोआई का उचित समय फरवरी के अन्तिम सप्ताह से पन्द्रह मार्च तक है। प्रति हेक्टेयर बीस से चौबीस किग्रा बीज की जरूरत होती है। दीमक से बचाव के लिए बोआई से पूर्व बीज को पांच मिली प्रति किग्रा के हिसाब से क्लोरपायरीफास से उपचारित करना चाहिए।

बोआई की विधि- वैसे तो मक्का की बोआई कई विधि से होती है लेकिन कूंड़ में बोआई की विधि सबसे अच्छी होती है। इसके अलावा संकर प्रजाति की बोआई डिबलिंग से की जा सकती है। इस विधि से बीज की मात्रा कम लगती है। देशी मक्का के लिए 45 सेमी तथा संकर मक्का के लिए 60 सेमी कूंड़ से कूंड़ की दूरी होनी चाहिए। पौध से पौध की दूरी 20 से 25 सेमी होनी चाहिए।

उर्वरक प्रबंधन- मक्के में प्रति हेक्टेयर 120 से 150 किग्रा नत्रजन, 50 से 60 किग्रा फास्फोरस तथा 40 से 50 किग्रा पोटाश की आवश्यकता होती है। जिंक की कमी वाले क्षेत्रों में 20 से 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर जिंक का प्रयोग करना चाहिए।

सिंचाई- जायद में मक्का की फसल में हल्की सिंचाई करते हैं। पुष्प लगने अथवा दाना भरते समय सिंचाई अनिवार्य होती है। ऐसा न करने पर उत्पादन प्रभावित होता है।

खर-पतवार नियंत्रण- मक्का की बोआई के एक माह तक पौध की वृद्धि धीमी होती है। ऐसे में खर-पतवार फसल को नुकसान पहुंचाते हैं इसलिए पन्द्रह दिन के अन्तराल पर निराई करनी चाहिए। रासायनिक खर-पतवार नियंत्रण के लिए एट्रोजिन एक किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से पांच सौ लीटर पानी में घोल बनाकर पौध जमने से पूर्व छिड़काव करना चाहिए।

कीट व बीमारी नियंत्रण- बीज का चयन करते समय ऐसी प्रजाति का चुनाव करना चाहिए जो बीमारी से प्रभावित न हो। मक्का का वृन्तभेदक मुख्य हानिकारक कीट है। इसकी रोकथाम के लिए 0.1 प्रतिशत इण्डो सल्फान 35 ईसी का 700 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।

साभार जागरण