एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन

एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें फसलों को हानिकारक कीड़ों तथा बीमारियों से बचाने के लिए किसानों को एक से अधिक तरीकों को जैसे व्यवहारिक, यांत्रिक, जैविक तथा रासायनिक नियंत्रण इस तरह से क्रमानुसार प्रयोग में लाना चाहिए ताकि फसलों को हानि पहुंचाने वालें की संख्या आर्थिक हानिस्तर से नीचे रहे और रासायनिक दवाईयों का प्रयोग तभी किया जाए जब अन्य अपनाए गये तरिके से सफल न हों।
एकीकृत कीट प्रबन्धन (आईपीएम) किसानों के लिए काफी लाभकारी है। इसे अपनाने से फसल का उत्पादन बढ़ सकता है। साथ ही इससे खेत के जीवांश भी सुरक्षित रहेंगे। राज्य औद्योगिक मिशन एवं सघन क्षेत्रों में व्यवसायिक औद्यानिक विकास योजना अन्तर्गत आईपीएम प्रोत्साहन कार्यक्रम के तहत किसानों को अनुदान भी दिया जाता है।
क्या है आईपीएम
एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन (Integrated pest management (IPM), या Integrated Pest Control (IPC)) नाशीजीवों के नियंत्रण की सस्ती और वृहद आधार वाली विधि है जो नाशीजीवों के नियंत्रण की सभी विधियों के समुचित तालमेल पर आधारित है। इसका लक्ष्य नाशीजीवों की संख्या एक सीमा के नीचे बनाये रखना है। इस सीमा को 'आर्थिक क्षति सीमा' (economic injury level (EIL)) कहते हैं।

आई. पी. एम. उददेश्य
१. फसल की बुराई से लेकर कटाई तक हानिकारक कीड़ो, बीमारियों तथा उनके प्राकृतिक शत्रुओं की लगातार एवं
व्यवस्थित निगरानी रखना।

२. कीड़ो एवं बीमारियो को उनके आर्थिक हानि स्तर से नीचे रखने के लिए सभी उपल्बध नियंत्रण विधियों जैसे व्यवहारिक,
यांत्रिक, अनुवांशिक, जैविक, संगरोध व रासायनिक नियंत्रण का यथायोग्य करना।

३. कीड़ो एवं बिमारियों के आर्थिक हानि स्तर (ई.आई.एल.) को पार कर लेने पर सुरक्षित कीटनाशकों को सही समय पर
सही मात्रा में प्रयोग करना।

४. कृषि उत्पादन में कम लागत लगाकर अधिक लाभ प्राप्त करने तथा साथ साथ वातावरण को प्रदूषण से बचाना।
आईपीएम ऐसा प्रबंधन है जिसमें कृषि से सम्बन्धित विभिन्न परिस्थितियों एवं पर्यावरण के साथ सामंजस्य बनाते हुए नासी कीट, रोगों और खरपतवार के नियंत्रण की तकनीकों का प्रयोग किया जाता है। इससे नासी जीवों की संख्या, सघनता इत्यादि नियंत्रित होते हैं।
सस्य क्रियाओं का प्रबन्धन
इसमें हम यह ध्यान देते हैं कि सस्य क्रियाएं नासी जीवों के प्रतिकूल और मित्रकीटों के अनुकूल हों। साथ ही यह भी ध्यान दें कि उचित फसल चक , गर्मी की जोताई, सही फसलों का चुनाव व बोआई अथवा रोपण का निश्चित समय होना चाहिए।
इस पर दें ध्यान
कद्दू प्रजाति की सब्जियों की बोआई नवम्बर में करें। करेला अक्टूबर में तथा भिंडी की बोआई जून के द्वितीय सप्ताह में करें।
जैविक नियंत्रण
जैव नियन्त्रणः फसलों के नाशीजीवों (pests) कों नियन्त्रित करने के लिए प्राकृतिक शत्रुओं को प्रयोग में लाना जैव नियन्त्रण कहलाता है।

नाशीजीव फसलों को हानि पहुँचाने वाले जीव नाशीजीव कहलाते है।

प्राकृतिक शत्रुः प्रकृति में मौजूद फसलों के नाशीजीवों के नाशीजीव 'प्राकृतिक शत्रु', 'मित्र जीव', 'मित्र कीट', 'किसानों के मित्र', 'वायो एजैेट' आदि नामों सें जाने जोते हैं।

जैव नियन्त्रण एकीकष्त नाशीजीव प्रबधन का महत्वपूर्ण अंग है। इस विधि में नाशीजीवी व उसके प्राकृतिक शत्रुओ के जीवनचक्र, भोजन, मानव सहित अन्य जीवों पर प्रभाव आदि का गहन अध्ययन करके प्रबन्धन का निर्णय लिया जाता है।
टमाटर में फलभेदक कीट सबसे अधिक नुकसान पहुंचाते हैं। इसके लिए ट्राइकोग्रामा का प्रयोग करें। सफेद मक्खी, हरा फफूदा, माहू आदि की रोकथाम के लिए क्राइसोपारला कार्निया नामक परजीवी 50 हजार प्रति हेक्टेअर की दर से 10 दिन के अन्तर पर तीन बार छोड़ें। गोभी की हरी सूड़ी, भिंडी के तना एवं भलभेदक, बैगन के फलभेदक कीटों की रोकथाम के लिए एनपीबी का 350 एलई का घोल प्रति हेक्टेअर दोपहर बाद छिड़काव करें।
यांत्रिक नियंत्रण
फसल में नजर आने वाले कीटों को पकड़कर नष्ट कर दें। फेरोमोनट्रैप, लाइटट्रैप आदि के प्रयोग द्वारा फलभेदक कीटों व मक्खियों को भ्रमित कर नष्ट किया जा सकता है।