Aksh's blog

रासायनिक खाद और कीटनाशक से मुक्त हो कृषि

रासायनिक खाद और कीटनाशक से मुक्त हो कृषि

मैं उन लोगों में शामिल नहीं हूं जो सब्जियां और खाने-पीने की दूसरी चीजें खरीदने बाजार जाते हैं। दरअसल मेरा मौजूदा पेशा मुझे इस सुविधा की इजाजत नहीं देता, लेकिन मुझे याद है कि जब मैं बच्चा था तो अपनी मम्मी और आंटी के साथ अक्सर बाजार जाता था। मुझे यह भी याद है कि तब मुझे कितनी बोरियत होती थी, क्योंकि मम्मी और आंटी को सब्जियां और फल छांटने में घंटों लगते थे। वे बड़ी रुचि के साथ सब्जियों और खाने-पीने की गुणवत्ता पर बहस करती थीं और खामियों की ओर इशारा करती थीं और सबसे बढि़या क्वालिटी पर जोर देती थीं। वे लगातार अलग विक्रेताओं की सब्जियों और फलों की तुलना करती रहती थीं। जब यह सब होता था उस समय मेरे

अनाज क्या शोरूम में मिलेगा!

अनाज क्या शोरूम में मिलेगा!

खाद्य सुरक्षा की व्यवस्था में जितना उत्पादन का तंत्र महत्वपूर्ण है;  उतना ही महत्वपूर्ण है बाजार का तंत्र। भारत में 2.9 करोड़ लोग भोजन और भोजन से सम्बन्धित सामग्री का व्यापार करते हैं। वे केवल लाभ के लिये व्यापार नहीं करते हैं बल्कि खाद्य सुरक्षा की परिभाषा के महत्वपूर्ण हिस्से ‘‘पहुंच’’ को सुनिश्चित करने में उनकी केन्द्रीय भूमिका रही है। अब इस ‘‘बाजार’’ पर प्रमुख भोजन व्यापार कम्पनियां अपना मिला-जुला एकाधिकार चाहती है। वालमार्ट, रिलायंस, भारती, ग्लेक्सो स्मिथ कंज्यूमर हेल्थ केयर, नेस्ले, केविनकरे, फील्ड फ्रेश फूड, डेलमोंटे, बुहलर इंडिया, पेप्सीको, और कोका कोला शामिल है। बाजार विष्लेषण करने

उपेक्षा का दंश झेलते किसान

उपेक्षा का दंश झेलते किसान

कभी खाद्यान्न संकट से गुजरने वाला भारत आज इतना आत्मनिर्भर हो चुका है कि अब वह दूसरे देशों को भी इसका निर्यात करता है। इस उपलब्धि के बावजूद हम देश को कृषि उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने वाले किसान को ही भूल गए हैं जो आज भी आत्मनिर्भरता की बजाय गुरबत की जिन्दगी गुजारता है। देश का पेट भरने वाला यह किसान स्वयं का पेट भरने के लिए जिन्दगी भर संघर्ष करता रह जाता है और कभी-कभी इतना मजबूर हो जाता है कि उसके सामने आत्महत्या के अतिरिक्त और कोई रास्ता नहीं रह जाता।

हरित क्रान्ति के जख्म

हरित क्रान्ति के जख्म

पंजाब का खेती प्रधान इलाका मालवा इन दिनों खेती से जुड़े जिन घपले-घोटालों और कपास उगाने वाले 15 किसानों की आत्महत्यायों की वजह से चर्चा में है, उसमें ऊपरी तौर पर दो चीजें दिख रही हैं। एक, जिस बीटी कपास (जीन संवर्धित कॉटन) को सुखे और कीटों के हमलों से सुरक्षित बताया जा रहा था- वह दावा सफेद मक्खी (वाइट फ्लाई) के हमले के साथ खोखला साबित हो गया। इस मक्खी ने चार हजार करोड़ रुपए से ज्यादा के बीटी कपास की खेती चौपट कर दी, जिससे प्रभावित किसानों को मौत आसान लगने लगी। दूसरी बात नकली कीटनाशकों से जुड़े घपले की है जिसमें पंजाब स्वास्थ्य विभाग के आला अफसर और बाजार के बिचौलिए शामिल थे, जिनकी ‘कृपा’ से कि

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