भारत में बदहाल पशुधन और कृषि
Submitted by Aksh on 15 April, 2015 - 23:42सांस्कृतिक और सामाजिक ताने-बाने में कृषि प्रधानता और पशुधन की परिकल्पना प्राचीन समय से ही रही है। किसी भी समाज में खाद्य-सुरक्षा के लिए कृषि उत्पाद और पशुधन उत्पाद की उपल्बधता आवश्यक मानी जाती है। इस चीज को अगर हम भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखें तो पता चलता है कि ग्रामीण भारत में कृषि के साथ ही साथ पशुपालन की परंपरा भी समानांतर ढ़ंग से चलती रही है। ग्रामीण जीवन में पशुपालन ही वो जरिया है जो किसानों की नियमित आय का साधन बनता है और यही वजह है कि कृषि के साथ ही साथ लगभग 72 फीसदी ग्रामीण घरों में पशुपालन किया जा रहा है। पूरे देश में पशुपालन ने उन लोगों के लिए संजीवनी का काम किया है जो भूमिहीन या