Aksh's blog

जमीन में हो रही है ह्यूमस मिट्टी की कमी

जमीन में हो रही है ह्यूमस मिट्टी की  कमी

चल रही महती प्राकृतिक आपदा से कृषिक त्राहि त्राहि कर रहा है, क्यूँकि आने वाला वर्ष उसके लिए निःसन्देह बहुत ही कठिन सिद्ध होने वाला है । ऐसी भीषण समस्या का समाधान क्या हो, इस पर गम्भीर विचार विमर्श करने की आवश्यकता है ।सम्पूर्ण समाज को कृषिकों की हानि का सहभागी बनने के लिए प्रेरित किया जाए । यह कार्य व्यापक प्रचार के माध्यम से किया जा सकता है । यदि खाने के लिए अन्न नहीं होगा, तो सभी जन भूखे रहते हुए मृत्यु को प्राप्त होंगे ही । इतिहास में ऐसा हुआ है, और भविष्य में भी भीषण आपदा आने से इस भुखमरी की सम्भावना को कदापि नकारा नहीं जा सकता, केवल न्यून किया जा सकता है । अतः हम यह निष्कर्ष निकाल सकते

अगर देश बचना है तो छोटे किसानों को बचाना ही होगा

अगर देश बचना है तो छोटे  किसानों  को बचाना ही होगा

एक बार फिर बिन मौसम बारिश और दिल्ली में सार्वजनिक तौर पर हुई आत्महत्या ने भारत में लंबे समय से उपेक्षित पड़े कृषि और गांव के मुद्दे को फिर से चर्चा में ला दिया. स्वतंत्रता के बाद शहरीकरण विकास की पूर्व शर्त बन गया. यह माना गया की बिना शहरीकरण हुए गाँवों का विकास नहीं हो सकता. इससे पलायन बढ़ा और गांव हाशिये पर चले गए. शहरों का विस्तार होता गया और वे गाँवों में घुस कर उसे शहर बनाने लगे. उपजाऊ जमींन बिचने लगी और कंक्रीट का फैलाव होता गया. महंगे बीज, उर्वरक और कीटनाशक, गिरता भूजल स्तर, बढ़ती मजदूरी के कारण खेती की लागत में बेतहाशा बढ़ोतरी हो चुकी है. ऐसे में बिना कर्ज लिए खेती संभव नहीं रह गई है.

बीमा के मायाजाल में उलझा किसान

बीमा के मायाजाल में उलझा किसान

कृषि उत्पादों के मूल्य पिछड़ने के कारण खेती घाटे का सौदा होती जा रही है। फलस्वरूप किसान ऋण लेने को मजबूर होता जा रहा है। ऋण लेने के बाद वे ब्याज और बीमा के प्रीमियम भी अदा करते हैं। उनकी आय पहले ही कम थी। अब उसमें एक हिस्सा सरकारी बैंकों तथा बीमा कंपनियों के हिस्से चला जाता है। किसान गरीब होता जा रहा है। किसान को राहत पहुंचानी है, तो केंद्र सरकार से कृषि मूल्यों में महंगाई से अधिक वृद्धि करनी चाहिए। तब किसान को मोबाइल खरीदने को पैसा होगा और ऋण लेने और बीमा की जरूरत नहीं रह जाएगी…

जीवन और जमीन दोनों के लिए घातक कोराजन

 कोराजन  coragen

जहर की बाजार में किसानों को बरबादी के नए युग की शुरुआत हो गई है  किसान स्वम् अपना दुश्मन बन बैठा है चटकीले विज्ञापन की चकाचौंध में अपनी सुध बुध खो बैठा है एक ओर किसान अपनी तबाही अपने हाथ से लिख रहा है बही दूसरी ओर पैस्टीसाइड के अंधाधुंध इस्तेमाल से जहरीले होते जा रहे पर्यावरण पर भी चिंता बढती ही जा रही है किसान अधिक उत्पादन के लालच में पैस्टीसाइड  का अंधाधुंध प्रयोग कर रहे हैं । इसी कड़ी में एक नए जहर ने अपना कब्ज़ा कर किया है वह जहर है कोराजन कृषि वैज्ञानिकों ने कोराजन पेस्टीसाइड से जन एवं जमीन दोनों को ही खतरा बताया।

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