Aksh's blog
मॉनसून नहीं रहा भाग्य विधाता
Submitted by Aksh on 14 September, 2015 - 09:44आजादी के इन साढ़े छह दशकों में देश में रह-रह कर यह सवाल उठता रहा है कि अगर किसी साल मॉनसून की चाल ठीक न रही तो क्या होगा?
देश को एक कृषिप्रधान अर्थव्यवस्था बताकर यह साबित करने की कोशिश की जाती है कि जून से सितम्बर के बीच चार महीने की अवधि में अगर मॉनसूनी वर्षा में जरा भी ऊंच-नीच हुई, तो हमारी आर्थिक तरक्की ठिठक जाएगी और अनाज के लिए हम विदेशों के मोहताज हो जाएंगे.
कृषि विनाश के कारण हम तो नहीं ....................?
Submitted by Aksh on 28 July, 2015 - 19:26किसान को अन्नदाता कहा जाता है क्योकि किसान अन्न उगाता है सारी दुनिया दिन में दो बार भोजन और दो बार जलपान करते हैं। यह किसान की कृपा से ही सम्भव है। अगर मैं यह कहूँ कि किसान देश में बीमारियाँ भी फैला रहे हैं, तो आपको ताज्जुब होगा, लेकिन यह एक कड़वा सत्य है । आश्चर्यजनक बात यह है कि किसान इस हकीकत से बखूबी वाकिफ हैं, लेकिन फिर भी कर रहे है बदलना नही चाहते हैं
कीटनाशकों से हो रहा नाश
जैविक खेती पर्यावरण के लिए खतरा नही बल्कि लाभकारी
Submitted by Aksh on 26 July, 2015 - 22:31 कुछ दिनों पहले मैंने समाचार पत्र के माध्यम से सुना की कुछ बैज्ञानिकों ने जैविक को रासायनिक खेती की तरह ही दर्जा दे डाला हमार देश के विशेषज्ञ वही बात ही बोल रहे है जो कुछ समय पहले अमेरिका ने कहा था मुझे ये समझ नही आता है की हमारे विशेषज्ञ अपना परीक्षण करने के बजाय पश्चिमी देशो द्वारा दिया गया त्थ्थों को क्यों दोहराते है
अमेरिका ने कहा है तो सत्य ही होगा ऐसी अबधारना हमारे ऊपर हाबी हो चुकी है