गेहूं की कटाई के बाद बचे अवशेषों को खेतों में न जलाये
आधुनिक तकनीक का कृषि में समझदारी से उपयोग करना बहुत जरुरी है। जैसे मजदूरों की कमी के विकल्प के तौर पर आई कंबाइन मशीन वर्तमान में खेती के लिए घातक बनती जा रही है। किसानों द्वारा गेहूं की कटाई के बाद बची पराती को खेतों में जलाया जाता है। जिससे मृदा के पोषक तत्व नष्ट हो जाते है और धुएं से निकलती जहरीली गैसें पर्यावरण को प्रदूषित कर देती है।
गावों में मजदूरों की कमी की वजह से किसान मशीनों से खेती करने के लिए मजबूर है। गेहूं की कटाई व मड़ाई के लिए श्रमिकों के विकल्प के रूप में कंबाइन मशीन का प्रयोग तेजी सेबढ़ रहा है। पंजाब, हरियाणा आदि प्रांतों से हर साल जनपद में आधा दर्जन से अधिकहार्वेस्टर आते हैं। मशीन को अपनाने से सहूलियत तो हो रही है लेकिन भूसा घरों मेंन पहुंचने से पशुओं के चारे का संकट गहराने लगा है। वहीं खेतों में पड़े गेहूं के अवशेष को जला ने से मिंट्टी में पोषक तत्वों की कमी आ रही है और पर्यावरण को भी धोखा निर्माण हो रहा है।
कृषि वैज्ञानिक डॉ. टीएन सिंह ने कहा कि पराती को खेतों में जलाने से फसल के अवशेष के साथ जीवांश भी जल जाते हैं। जिससे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के साथ कार्बन की मात्रा घट जाती है। डा.सिंह ने बताया कि सूक्ष्म वैक्टीरिया मिंट्टी के अंदर भोजन सड़ाकर पौधे को उपलब्ध कराते रहते हैं। उनके नष्ट होने से फसलों को संतुलित आहार नहीं मिल पाता। मृदा में कार्बन की मात्रा 6 से 8 प्रतिशत होनी चाहिए जो अब घटके 2 फीसद रह गई है। उन्होंने किसानों को बताया कि कटाई के बाद अवशेष को न जलाएं। डिस्क हैरो या रोटावेटर से जुताई के बाद आठ किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ खेत में डालकर हल्की सिंचाई कर दें। जिससे अवशेष पूरी तरह सड़कर उर्वरक का काम करेंगे और जीवांश तथा कार्बन की मात्रा बढ़ जाएगी।