गेहूं की जगह अमरूद पैदाकर कमा रहे लाभ
गेहूं, धान और सरसों जैसी परंपरागत फसलों को छोड़कर फलों की खेती करना सोईं क्षेत्र के किसानों के लिए लाभ का धंधा साबित हुआ। जिस खेत में 10 हजार का गेहूं या फिर 14 हजार रुपए का धान होता था, उसी खेत में 65 से 70 हजार रुपए के अमरूद पैदा हो रहे हैं। फलों की खेती से हो रहे फायदे को देख किसानों में पारंपरिक खेती छोड़ फलो उद्योन करने की होड़ सी मच गई है। इसका असर किसानों की आर्थिक हालत पर सकरात्मक तो पड़ा ही है साथ ही जिले में उग रहे अमरूद महानगरों में श्योपुर को विशेष पहचान देने का काम
कर रहे हैं।
सोईं क्षेत्र में सबसे पहले सलीम खान, कलीम खान और समीम खान तीन भाईयों ने अपने खेतों में अमरूद के पौधे लगाए। तीनों भाइयों ने 15 बीघा खेत में अमरूद के पौधे लगाए। दो साल बाद इन पौधों में इतने अमरूद उगे कि, एक बीघा में 65 से 70 हजार रुपए के अमरूद बेचना शुरू कर दिया, जबकि इन्हीं के खेतों में पहले एक बीघा में 10 हजार रुपए के गेहूं हो पाते थे। तीनों भाइयों की बढ़ती इनकम देख आस-पास के किसानों ने भी खेतों में अमरूद लगा लिए। अब हालत ऐसी है कि सोंई, ज्वालापुर, दांतरदा आदि गांवों में करीब 250 बीघा क्षेत्र में अमरूद की खेती लहलहा रही है। खास बात यह भी है कि गेहूं, सरसों और धान जैसी फसलों पर होने वाले खर्च की तुलना में अमरूद की फसल का खर्च काफी कम है।
न सूखे, ओलों की मार, न मुआवजे का झंझट
अमरूद पैदा करने वाले किसानों पर कभी प्रकृति की मार भी नहीं पड़ी। ओलों, बारिश या सूखे के कारण अमरूद की फसल पर कोई भारी असर पड़ा नहीं है।
पिछले साल जितने अमरूद हुए थे, लगभग उतनी ही पैदावार इस साल हुई है। जिले के अधिकांश किसान मुआवजे के लिए तहसीलों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन अमरूद की खेती करने वाले किसान मुआवजे के लिए हाथ फैलाते अब तक नजर नहीं आए हैं
साभार नई दुनिया जागरण