जैविक खेती से ही बचेंगे मित्र कीट और बढ़ेगा मुनाफा
·कानपुर से जुड़े लगभग 30 गाँवों में पिछले कुछ सालों में जैवि· खेती को लेकर एक नई चेतना आई है। गैरसरकारी संगठन (एनजीओ) श्रमिक भारती ने गाँव की महिलाओं के बीच जैविक खेती को लेकर न केवलजागरुकता अभियान चलाया बल्की उन्हें जैविक खेती की तकनीकें सिखाईं। इस बारे मेंएनजीओ के प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर उदय प्रकाश उपाध्याय ने बात की उमेश पंत से :
सवाल-जैविक खेती को लेकर आप किन किन क्षेत्रों में काम कर रहे हैं और क्या क्या?
जवाब-कानपुर नगर के शिवराजपुर ब्लॉक के 30 गाँवों में केकेएस जर्मनी तथा डब्ल्यू डब्ल्यू एफ के सहयोगसे लगभग 1400 किसानों के साथ स्थायी कृषि तकनीकों पर कार्य किया जा रहा है। किसानों को जैविक विधिसे ऊसर सुधार की विधि बताई जा रही है एवं रासायनिक खादों का प्रयोग धीरे धीरे कम करके गोबर की खादतथा अन्य जैविक खादों के प्रयोग को बढावा दिया जा रहा है। रासायनिक कीटनाशी, खरपतवार नाषी काप्रयोग रोकने एवं स्थानीय स्तर पर तैयार कीट प्रबन्धन हेतु अमृत पानी, नीम तेल तथा नीमखली के प्रयोगको बढ़ावा दिया जा रहा है। गोबर ठीक से न सडऩे के कारण खेतों में उसका इस्तेमाल करने पर खरपतवारऔर दीमक की बढ़ जाते हैं, जिससे खरपतवार रोकने में कृषि लागत में बढोत्तरी होती है। किसानों को इसनुकसान से बचाने के लिए कम्पोस्ट पिट बनाने को प्रेरित किया जा रहा है तथा लगभग 900 किसानों ने अपनेघरों तथा खेतों में कम्पोस्ट पिट का बनाकर गोबर को उस गड्ढ़े में डालना शुरू किया है जिसके भर जाने पर वेइस गड्ढ़े को 90 से 100 दिनों के लिये ढ़क देते हैं और उसके बाद उस सड़े हुए गोबर की खाद को अपने खेतोंमें इस्तेमाल करते हैं जिससे उनके खेतों को पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन तथा अन्य पोशक तत्व मिलते हैं औररासायनिक खादों पर होने वाला खर्च कम हो जाता है।
नीम की खली के प्रयोग को बढावा दिया जा रहा है जिससे किसानों के खेती पर आने वाले खर्च में कमी आरही है। नीम की खली से मिट्टी तो शोधित हो ही रही है साथ ही साथ कीट पतंगों आदि से भी किसानों कोनिजात मिल रही है।
सवाल- इस बीच गांवों में खेती को लेकर क्या बदलाव आये हैं? जैविक खेती ने गांवों की अर्थव्यवस्था में किसतरह से बदलाव किया है?
जवाब- किसानों की कृषि लागत में लगभग 40 प्रतिशत की कमी आयी है। पहले जहॉं किसान अपने पड़ोसीकिसान से प्रतिस्पर्धा में रासायनिक खादों का प्रयोग करता था वही़ अब वह रासायनिक खादों का प्रयोग बहुतकम कर रहा है। गड्ढ़े की कम्पोस्ट खाद की तरफ किसानों का रूझान बढ़ा है। किसानों ने सूक्ष्म पोशक तत्वोंका प्रयोग करना शुरू किया है।
खुद किसान बताते हैं कि जैविक विधि से तैयार उत्पाद ज्यादा स्थायी, स्वास्थ्यप्रद तथा कम लागत वाला है।इस साल आलू की फ सल में अंतिम समय में बारिश होने के कारण आम तौर पर किसानों की आलू में सडऩआ गयी है, जबकि जिन किसानों ने नीमखली तथा अमृतपानी का प्रयोग किया है उनके आलू में सडऩ नही हैआलू स्वस्थ्य निकल रहे हैं। किसानों ने अपनी खेती की लागत में आयी कमी तथा अतिरिक्त आमदनी सेअपने परिवार के बच्चों की शिक्षा तथा रहन सहन के स्तर में बढोत्तरी की है।जल संचयन सरंचनाओं केनिर्माण से भूगर्भ जल स्तर औसतन लगभग 2 मीटर ऊपर आया है जिससे किसानों का सिंचाई का खर्च औरखेती में लगने वाले समय दोनों में कमी आयी है।
सवाल- पारम्परिक खेती से जैविक खेती की ओर महिलाओं के रुझान को आप कैसे देखते हैं?
जवाब- महिला स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं को संगठित कर उनके परिवारों को आर्थिक स्तरपर मजबूत करने का प्रयास किया जा रहा है। श्रमिक भारती द्वारा संचालित कृषि आधारित परियोजनाओं मेंइन समूहों का विशेष योगदान होता है। गांव में कृषि निवेशों जैसे, उन्नत किस्म के बीज, सूक्ष्म पोशक तत्व,श्रम में कमी लाने वाले यंत्र, हरी खाद तथा नीम खली तथा नीम तेल आदि की व्यवस्था का काम इन समूहों केसंघ (फेडरेशन) को दिया गया है। किसानों से इन कृषि निवेशों का मूल्य लेकर फेडरेशन में रिवाल्विंग फं ड केतौर पर जमा किया जाता है। इस रिवाल्विविंग फंड से परियोजना समाप्त होने के बाद भी किसानों को कृषिनिवेशों का फायदा मिलता रहेगा और इससे फेडरेशन की आय भी होती रहेगी। साल 2011-12 में यह निवेशपरियेाजना में उपलब्ध धन से खरीद कर किसानों को मुहैय्या कराया गया और उसकी कीमत किसानों सेलेकर फेडरेशन में जमा की गई। साल 2013 में परियेाजना में निवेश का बजट न होने के बावजूद भी किसानोंको पिछले सालों में तैयार रिवाल्विंग फं ड से निवेश की व्यवस्था कराई जायेगी।
सवाल- कुछ लोगों के बारे में बताइये जिन्होंने जैविक खेती के जरिये आर्थिक रुप से अच्छा मुनाफ ा कमायाहो?
जवाब- ज्ञान चौरसिया, हरनू:-पिछले वर्श 12 बिसुवा में प्याज की खेती की जिसमें लगभग 16 कुन्तल प्याजपैदा हुई इसके पहले इनके खेत में प्याज का औसत उत्पादन 18-20 कुन्तल प्रति बीघा होता था वही इस सालकेवल 12 बिसुवा में 16 कन्तल उत्पादन रहा। प्याज में किसी भी तरह के रासायनिक खादों आदि काप्रयोग नही किया गया था। आमतौर पर प्याज जल्दी खराब होना षुरू हो जाती है जबकि इनकी प्याज अंततक रोगमुक्त रही एवं ज्यादा दिन तक चली। पिछले वर्शो का औसत उत्पादन को देखे तो प्रतिबीधा 1 कुन्तलका उत्पादन होता था इस हिसाब से इनके 12 बिसुवा खेत में 12 कुन्तल उत्पादन होना चाहिये। इस वर्श 4कुन्तल अतिरिक्त उत्पादन लिया गया। जिससे लगभग 4000 रूपये का अतिरिक्त लाभ कमाया।
राम बिलास, रवांलालपुर- जैविक विधि से 10 बिसुवा में गाजर की साबरी किस्म की 90 दिन की फसल लगाईइस फसल में कुल लागत 500 रू0 लगाई। रासायनिक खादो का प्रयोग बिल्कुल भी नही किया। कुल 3200किलोग्राम का उत्पादन हुआ। गाजर का बाजार मूल्य आमतौर पर 6 से 8 रू0 प्रति किलो है जबकि मण्डी मेंइनकी गाजर की क्वालिटी साइज आदि को देखते हुए 10 रू0 प्रति किलो का रेट मिला। इनकी गाजर कीलम्बाई औसतन 6 से 8 इंच रही। पहले इतने ही क्षेत्रफल में औसत उत्पादन लगभग 3000 किलोग्राम होताथा।
इसी तरह से 30 गांवों में किसानो की बहुतायत है मुख्यत: इन कसानों ने उल्लेखनीय आर्थिक मुनाफा कमाया। बाबूराम, सोमनाथ, नन्दगोपाल,ओम प्रकाश, बाबूपाल, छोटेलाल, राममूर्ति, सुरेशकुमार आदि लाभार्थी किसान हैं।
सवाल- आमतौर पर ये माना जाता है कि गांवों में लोग खेती के पारंपरिक तरीकों को छोडऩा नहीं चाहते, वोकोई रिस्क नहीं लेना चाहते, इस बारे में आपके अनुभव?
जवाब- इस परियोजना की शुरुआत में किसानों ने इन विधियों का विरोध किया और यह कहा कि बिनारासायनिक खाद एवं कीटनाषियों के खेती हो ही नहीं सकती। लेकिन जब हमने किसानों को व्यावहारिक रूप सेइन तकनीकों को प्रदर्षित करके दिखाया तो धीरे धीरे लोगों ने इन तकनीकों को अपनाना शुरू किया और अबवो इन तकनीकों का खुशी-खुशी इस्तेमाल कर रहे हैं।
सवाल- जैविक खेती अपनाने को क्यों जरुरी मानते हैं आप?
जवाब- रासायनिक खाद के अत्यधिक प्रयोग से जमीन की उर्वरा शक्ति नष्ट हो रही है आज यह हालत है किकिसान जिस मात्रा में खादों का प्रयोग कर रहे हैं उसकी तुलना में उनको उत्पादन नहीं मिल रहा। रासायनिकखादों एवं कीटनाषियों के प्रयोग से सभी के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। आज हर घर में कोई नकोई बीमारी का शिकार हो रहा है। खेती के मित्र कीट-पतंगे नष्ट हो चुके है। आज केंचुए, गिद्ध, मेढ़क आदिविलुप्त हो चुके हैं। यह रासायनिक खादों का ही असर है।