फायदेमंद है गर्मी में लौकी की खेती
लौकी अत्यंत स्वास्थ्यप्रद सब्जी है जिसकी खेती इस क्षेत्र में परवल की ही तरह प्रमुखता से की जा रही है। गर्मी में तो इसकी खेती विशेष रूप से फायदेमंद है। यही वजह है कि क्षेत्रीय किसान ग्रीष्मकालीन लौकी की खेती बड़े पैमाने पर किए हैं। बैरिया निवासी अवकाश प्राप्त कैप्टन व खेती के जानकार प्रभुनाथ सिंह ने लौकी की ग्रीष्मकालीन खेती से जुड़ी तमाम जानकारियां दीं।
उन्नतशील किस्में
पूसा समर प्रोलिफिक राउंड : इसके फल गोलाकार हरे रंग के होते हैं। इसकी पैदावार 200 से 250 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती है।
पूसा कोमल : यह अगेती किस्म है जो 70 दिनों में तोड़ने लायक हो जाती है। इसके फल लम्बे होते हैं, उत्पादन औसतन 500 कुंतल प्रति हेक्टेयर होता है।
पूसा नवीन : इसका फल 800 से 850 ग्राम तक होता है। उत्पादन इसका भी 275 से 300 कुंतल प्रति हेक्टेयर होता है।
भूमि की तैयारी : खेत की ठीक ढंग से दो या तीन जोताई देशी हल से करनी चाहिए।
खाद उर्वरक : अच्छी प्रकार सड़ी हुई गोबर की खाद के अलावा 50 किलो नाइट्रोजन, 40 किलो पोटास, 40 किलो फास्फोरस प्रति हेक्टेयर देना चाहिए।
बोआई का समय : इसकी बोआई जनवरी से मई तक करते हैं।
सिंचाई : खेत की नमी के लिए गर्मी में हर सप्ताह सिंचाई जरूरी है।
रोग व रोकथाम :
चुर्णी फफूंद- लौकी की पत्तियों पर धुंधले आभायुक्त धब्बे दिखाई देना ही इसके प्रमुख लक्षण में शामिल है। इसकी रोकथाम के लिए कैल्शियम की 0.05 प्रतिशत अर्थात 1/2 मिली लीटर दवा एक लीटर पानी में घोलकर सात दिनों के अंदर छिड़काव करना चाहिए।
लालकीट : यह प्रौढ़ कीट 5-8 मिली लम्बा होता है। कीट के ऊपर का हिस्सा नारंगी या लाल होता है। ये जनवरी से अप्रैल तक काफी सक्रिय होते हैं। मालाथियान चूर्ण पांच प्रतिशत या काबर्रिलय पांच प्रतिशत-25 किग्रा राख में मिलाकर सुबह में छिड़काव करना चाहिए।
साभार जागरण