धान के खेतों में बत्तखों से मजदूरी,जहरीले कीटनाशक रसायनों से तोबा !
पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में इन दिनों किसान धान के खेतों में बत्तखों से मजदूरी करा रहे हैं । आपको इस बात पर भले ही विश्वास न हो लेकिन पिछले दस सालों से बत्तखें इस काम को बिना पैसे के बखूबी कर रही है ।
खरीफ की फसलों में धान की फसल बहुत ही मुख्य हैं । पूर्वी उत्तर प्रदेश में धान की खेती बहुत ही अधिक मात्र में होती हैं । यह किसानों के लिए बहुत ही मेहनत का काम होती है । समय-समय पर पानी देना उसमें उगने वाले खर- पतवार , कीडॆ-मकोडो व काई की सफाई के लिए खेत मजदूरों एवं कीट नाशकों पर हजारों रुपये खर्च करने होते है । लेकिन जौनपुर के कई गाँव में अब बत्तखें धान के खेत में खेत मजदूरों की जगह इस काम को कर रही है ।
पानी भरे धान के खेत में तैर- तैर कर बहुत ही सफाई से खेत में उगने वाले खर – पतवार, काई के साथ ही साथ धान की फसल को नुकसान पहुचानें वाले कीडॆ-मकोडो को भी खा जाती है । इसके अलावा वह पुरे खेत की निराई – गुडाई भी कर देती है । बत्तखों से इस काम को कराने के लिए किसान बत्तख मालिक के यहाँ लाइन लगा रहे हैं ।
बत्तख पालक सुन्नीलाल राजभर ने बताया कि उसने गरीबी से तंग आकर सन् २००० में बत्तख पालन का काम शुरू किया और फिर उसके अण्डों से उसका खर्च चलने लगा । बत्तखों को चराने के लिए मज़बूरी के कारण धान के खेत में घुसा देता था. बत्तखों ने धान के खेत में उगे खर- पतवार,कीडॆ-मकोडो व काई की सफाई कर डाली. उसकी फसल आस- पास के खेतों की तुलना में सबसे अच्छी हो गई.बस बत्तखों से खेत मजदूरी कराने का सिलसिला यही से शुरू हो गया.उसके दो लड़के हैं वह दोनों भी दिन भर बत्तखे ही चरते हैं । कभी इस खेत में तो कभी उस खेत में ।
सुन्नीलाल ने बत्तखों से धान की खेती में यह नायब तरीका खोज डाला । धान की खेती के समय किसान उससे संपर्क करते है और वह अपने बत्तखों को पानी भरे उनके खेतों में घुसा देता है । बत्तखों को पानी में रोकने के लिए गेंहू बिखेर दिया जाता है । बत्तखे गेंहू खोजने के चक्कर में पुरे खेत की निराई – गुडाई कर देती हैं व खर- पतवार , कीडॆ-मकोडो को भी खा जाती हैं वह भी बिना धान की फसल को कोई नुकसान किये.सबसे बड़ी बात यह है कि इस काम को वह बिना पैसे के करती है.सुन्नीलाल कहता है कि किसान अपने खेत में बत्तख चराने देते हैं बस उसके लिए इतना खाफी हैं ।
सुन्नीलाल के पास २७०० बत्तखें है वह इन बत्तखों से प्रति माह २ से ३ हज़ार रुपये कमा लेता है और हर तीसरे साल वह पूरी बत्तखों को बेच कर १-१.५ लाख रुपये तक की कमाई करता है.सतहडा निवासी आशुतोष ने बताया कि एक एकड़ धान के खेत में सिर्फ निराई – गुडाई में कम से कम २ हज़ार रुपये लग जाते थे इसके अलावा कीडॆ-मकोडो को मारने के लिए कीट नाशको पर ५०० रुपये खर्च पड़ता है । कुल मिला कर एक एकड़ धान की खेती में २.५ से ३ हज़ार रुपये का कम से कम फायदा हो रहा हैं । वही अबबत्तखों की बीट खाद का काम कर जाती है. अब न तो हमेशा मजदूर खोजना है न ही मजदूरी का जुगाड़ करना हैं. यह काम बत्तखों के करने से काफी सहूलियत होने लगी हैं ।
सुन्नीलाल की इस खोज से जौनपुर के कई गाँव के किसानों को फायदा हो रहा हैं धीरे- धीरे उसकी पूछ भी बढ़ती जा रही हैं.लेकिन उसकी माली हालात में कोई बहुत सुधार नहीं हुआ हैं । वैसे देश के और भी भागों में इसका प्रयोग कर किसानों को फायदा पहुचाया जा सकता हैं । सुन्नीलाल कहता है कि कब किसके दिन बदल जाएँ कहा नहीं जा सकता ।