बूंद-बूंद पानी को तरस रहे खेत
बूंद-बूंद पानी को तरस रहे खेत एक तो तपती गर्मी ऊपर से लड़खड़ाती विद्युत व्यवस्था ने लोगों का जीना मुहाल कर रखा है। सूखे पड़े खेत पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहे हैं। नहरें-बंबे सूखे पड़े हैं। ट्यूबवेल बंद पड़े हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युतापूर्ति के नाम पर तो सिर्फ दिखावा है। आपूर्ति न होने से किसान खेतों की ¨सचाई करने के लिए तरस रहे है। मई में पड़ रही रिकार्ड तोड़ गर्मी ऊपर से विद्युत की आंख-मिचौली शहरी ही नहीं ग्रामीण क्षेत्र के लोगों का जीना मुहाल किए हुए है। विद्युतापूर्ति व्यवस्थित न होने से जहां एक ओर शहर के वा¨शदों को गर्मी, पानी के चलते परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्रों में तो लोगों के सामने समस्याओं का अंबार लग गया है। किसानों के सूखे पड़े खेतों को पानी की एक बूंद भी नसीब नहीं हो पा रही है, जबकि खेतों की ¨सचाई का समय आ गया है। ऐसी स्थिति में किसान खेतों की ¨सचाई के लिए रात-दिन विद्युत आने का इंतजार करता रहता है या फिर आसमान की तरफ देखता है कि कब मानसून आए। जिन गांव के नजदीक से बंबे गुजर रहे हैं उनकी हालत बद से बदतर हो रही है। बंबे तो दूर गोरहा जैसी महत्वपूर्ण नहर भी सूखी पड़ी हुई है। बंबों की सफाई नहीं की गई है। 40 फीसद ट्यूबवेलों की तो हालत ऐसी है कि बिजली का आने या न आने से उन पर कोई प्रभाव नहीं है। किसी न किसी तकनीकी खराबी के चलते ट्यूबवेल बंद पड़े हैं। अगर तालाबों की स्थिति पर नजर डाली जाए तो मनरेगा के अन्तर्गत गांव में तालाब खुदवा दिए गए हैं। जो तालाब मौजूद थे उनकी सफाई भी करा दी गई। तालाबों में पानी की व्यवस्था के लिए सरकार ने प्रशासन को निर्देश दिए हैं, लेकिन यह व्यवस्था नहीं है।