बिना सिंचाई के अब खेतों में लहलहाएगा धान
बारिश के टूटते चक्र के बीच किसानों के लिए यह अच्छी खबर है. अब तक धान की खेती समय पर सिंचाई न होने के चलते सूख जाती थी या फिर यू कहें कि बिना पानी के धान की उपज ही नहीं होती थी लेकिन अब ऐसी दिक्कत नहीं होगी. अब उनकी धान की फसल बिना सिंचाई के ही लहलहाएगी. असिंचित क्षेत्रों के लिए यह फसल वरदान से कम नहीं होगी. अलीगढ़ में क्वार्सी स्थित उत्तर प्रदेश राजकीय कृषि शोध केंद्र ने धान की ऐसी ही दो प्रजातियां तैयार की हैं. इनका प्रयोग भी सफल रहा है.
क्वार्सी फार्म को पिछले साल 31 जनवरी को राजकीय कृषि शोध केंद्र की मान्यता मिली है. यह प्रदेश का दसवां शोध केंद्र है. यहां नई प्रजातियों के बीज तैयार होते हैं, जिन्हें परीक्षण के लिए लखनऊ बीज शोध केंद्र भेजा जाता है. वहां से परीक्षण के बाद बीज को किसानों को दिया जाता है. क्वार्सी परिक्षेत्र में तीन हेक्टेयर भूमि में बीजों का परीक्षण चल रहा है.
केंद्र प्रभारी जैनेंद्र यादव द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार धान की दो प्रजातियां (पीएसी 8130 व 801) तैयार की गई हैं. इनकी असिंचित क्षेत्रों में बुआई की जा सकती है. बांदा, चित्रकूट, उरई, ललितपुर ऐसे जिले हैं, जहां बारिश कम होती है. वहां के किसानों के लिए धान की ये प्रजातियां वरदान साबित होंगी.
जैनेंद्र यादव के मुताबिक 12 जून को इन प्रजातियों के धान की बुआई की गई थी. आठ जुलाई को पौध रोपी गई. इस बार अलीगढ़ में बारिश काफी कम हुई. इसके बावजूद धान की अच्छी फसल तैयार हुई है. 90 वर्ग मीटर में दोनों प्रजातियों की पौध रोपी गई है. 20 अक्टूबर तक फसल तैयार हो जाएगी. इसके बाद इसे परीक्षण के लिए लखनऊ भेजा जाएगा.
शोध केंद्र के वरिष्ठ टेक्निकल सहायक लाल साहब सिंह ने जानकारी दी है कि इन प्रजातियों के लिए रोपाई के समय सावधानी बरतनी होगी. खेत की मेड़ ऊंची होनी चाहिए, ताकि बारिश का पानी न निकलने पाए. इसके बाद चार महीने तक सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ेगी. थोड़ी-बहुत होने वाली बारिश से यह फसल तैयार हो जाएगी. अगर बिल्कुल भी बारिश न हुई तो रोग से बचाने के लिए सिंचाई की जा सकती है. आधी लागत धान की फसल में अधिक सिंचाई की जरूरत होती है. जहां बारिश कम होती है, वहां सिंचाई की लागत बढ़ जाती है.
शोध केंद्र के टेक्निकल सहायक महेश चंद्र के अनुसार एक बीघा धान की फसल में खाद, बीज, कीटनाशक, सिंचाई आदि का खर्च करीब तीन हजार रुपये आता है. नई प्रजातियों की बुआई पर लागत आधे हो जाएगी.
कुल मिलाकर यह खबर किसानों के लिए राहत भरी है. किसान भगवान की मदद से धान की रोपाई के समय जरूर अपने खेतों के मेड़ों को बड़ा कर सकता है. जाहिर सी बात है ऐसा करने से उनके खेतों में पानी अधिक समय तक रुका रहेगा. उसके बाद चार महीनें तक धान को पानी का जरूरत नहीं पड़ेगी. मतलब 90-110 दिनों में धान की फसल तैयार हो जाती है.
साभार श्री न्यूज़