मेथी की करें बिजाई, हरी काटकर बेचें या फसल पका करें कमाई

Growing Fenugreek

मेथी एक दलहनी फसल है लेकिन इसकी पत्तियां सब्जी व चटनी के तौर पर भी खूब खाई जाती हैं। देसी दवाइयों और पशुओं को बादी आदि से बचाने के लिए भी मेथी का भरपूर इस्तेमाल होता है। वैसे तो बाजार में हरी मैथी की गुच्छियां अभी भी आई हुई हैं लेकिन इसी डिमांड हमेशा रहती है। हरियाणा में मेथी की बिजाई का समय 15 दिसंबर तक का है इसलिए जब तक इसकी हरी फसल आएगी तब तक बाजार की हाल फिलहाल की मेथी गायब हो चुकी होगी। तब इसकी हरी गुच्छियों के दाम भी अच्छे मिलेंगे और फसल पकाएंगे तो भी चांदी रहेगी। हरियाणा में मुख्य तौर पर मेथी की सिरसा, हिसार, भिवानी महेंद्रगढ़, रेवाड़ी, गुडग़ांव एवं रोहतक जिले के कुछ भागों में सीमित सिंचाई वाले क्षेत्रों में की जाती है।
 मुख्य किस्में
टी-8: इसकी पत्तियां हरे रंग की तथा किनारों पर लाल रंग लिए होती हैं। बीज मध्याकार एवं पीले रंग के होते हैं। यह 145 दिन में पकती है। यह किस्म सफेद चूर्णी रोग के लिए संवेदनशील है। इसकी औसत पैदावार 36-40 क्विंटल प्रति एकड़ है। 
एचएम-65: इसकी पत्तियां हरे रंग की होती हैं, जिनके किनारे भी हरे रंग के होते हैं। यह टी 8 से उत्तम किस्म है। इसके बीज मोटे तथा पीले रंग के होते हैं। यह सफेद चूर्णी रोग के लिए कुछ सहनशील है। यह 135 दिन में पकती है तथा औसत पैदावार 4.8-6.0 क्विंटल प्रति एकड़ है।
दोमट भूमि अच्छी
दोमट भूमि, जिसमें जल निकास अच्छा हो, इसकी खेती के लिए उत्तम है। वैसे तो इसे रेतीली दोमट भूमि में भी उगाया जा सकता है किंतु पानी के ठहराव वाली लवणीय भूमि में इसकी खेती नहीं की जा सकती।
बिजाई से पहले गहरी जुताई जरूरी
पलेवा ((रौनी)) करने से पहले खेत की गहरी जुताई करें। रौनी करने के बाद जब खेत बत्तर आये तो दो सीधी एवं आड़ी जुताइयां करें तथा प्रत्येक जुताई के बाद खेत में सुहागा लगाएं। गहरी जुताई करने से खेत की मिट्टी में हवा का संचार अच्छा रहता है, जिससे जड़ विकास में मदद मिलती है। खाद मिट्टी परीक्षण रिपोर्ट के आधार पर डालें किंतु साधारण दशा में 8 किलोग्राम नत्रजन ((17.5 किलोग्राम यूरिया)) तथा 16 किलोग्राम फास्फोरस ((100 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट)) प्रति एकड़ बिजाई से पहले या बिजाई के समय ड्रिल करें। बिजाई के 30-35 दिन बाद पहली निराई करें और यदि आवश्यक हो तो दूसरी निराई पहली सिंचाई के बाद करें। इसके खेत में खड़े खरपतवार का नियंत्रण होता है तथा नमी का भी सरंक्षण होता है।

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