जैविक कृषि एक समग्र उत्पादन प्रबंधन सिस्टम
जैविक कृषि एक समग्र उत्पादन प्रबंधन सिस्टम
अधिकांश किसान कृषि भूमि का खाद का उपयोग करना पसंद करते हैं क्योंकि यह आम तौर पर उपलब्ध होता है। दूसरे लाभ हैं मृदा संवर्धित करने की इसकी क्षमता, जोताई और वातन का संवर्धन, यह मृदा की जल धारिता क्षमता बढ़ाता है और सूक्ष्म जीवों के क्रियाकलाप को सक्रिय करता है जो मिट्टी में पौधों के भोजन तत्व तैयार करते हैं। कम्पोस्टिंग वनस्पति और पशु अपशिष्ट को तुरंत गलाकर उपयोग योग्य बनाने की प्रक्रिया है। यह अपशिष्ट पर सूक्ष्मजीवों के कार्यों के द्वारा किया जाना है। इन अपशिष्टों में पत्तियां, जड़ें, ठूंठ, फसल के अवशेष, पुआल, बाड़ चिमटा, घास - पात, जत सम्बूल, लकड़ी के बुरादे, रसोई के अपशिष्ट और मानव निवास के अपशिष्ट शामिल हैं। अपशिष्ट सामग्रियां ढेरों में या गड्ढों में जहां पर्याप्त आर्द्रता होती है मध्यम - उच्च तापमान पर गहन सड़न प्रक्रिया से लगभग 3 - 6 माह तक गुजरती हैं। तैयार कम्पोस्ट भुरभुरे, भूरा से गहरा भूरा आर्दतावाली सामग्री का मिश्रण होता है। जैविक कृषि एक समग्र उत्पादन प्रबंधन सिस्टम है जो जैव विविधता, पोषक जैव वैज्ञानिक चक्र, मृदा माइक्रोबॉयल और जैव रसायन क्रियाकलाप से संबंधित कृषि स्थिति की प्रणाली के स्वास्थ्य का संवर्धन करता है। जैव सक्रिय कृषि जैविक का एक सिद्धांत है जिसमें रसायन उर्वरक के स्थान पर माइक्रोबायल पोषक दाता जैसे शैवाल, फंगस, बैक्टीरिया, माइकोरिजा और एक्टिनोमाइसीन का उपयोग होता है। जैव वैज्ञानिक कीट प्रबंधन पक्षी और परजीवी जैसे कीटों का प्राकृतिक परभक्षी का उपयोगी रसायन कीटनाशक के बदले करने की प्रक्रिया है। कम्पोस्टिंग, हरा खाद बनाना, फसल चक्र, मिश्रित फसल, पक्षी दूर भगाना और फंसाना और ट्रेप फसल जैविक कृषि के अन्य सिद्धांत हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और कृषि एवं सहकारिता विभाग भारत में जैविक कृषि का संवर्धन करने में रत है। जैविक खाद में मवेशी के गोबर, जानवरों के अपशिष्ट, ग्रामीण और शहरी कम्पोस्ट, अन्य पशु अवशिष्ट, फसलों के अपशिष्ट और हरे खाद शामिल हैं। इस प्रकार से ये अपशिष्ट मृदा की उर्वरकता और उत्पादकता बढ़ाने में उपयोगी होते हैं: • पशु का गोबर मृदा की सरंघ्रता बढ़ाता है अन्य मवेशियों से मल मिट्टी की जलधारिता क्षमता बढ़ाता है। • ग्रामीण और शहरी कम्पोस्ट मिट्टी की जल धारिता क्षमता बढ़ाता है। मूलरूप से दो प्रकार के कम्पोस्टिंग होते हैं - एरोबिक और गैर एरोबिक एरोबिक कम्पोस्टिंग, में प्रतिदिन मवेशी का प्रयुक्त बेडिंग, मवेशी शाला का झाड़ू बुहारन और कुछ मूत्र सनी मिट्टी अस्तबल की हटाई जाती है। इस मवेशी के गोबर के साथ मिलाया जाता है और थोड़ी सी राख मिला दी जाती है और इसे अच्छी निकासी वाले स्थल पर रखा जाता है। धीरे-धीरे 30 से 45 सें.मी. ऊंचाई की परत बनती है। यह ढेर वर्षा ऋतु के शुरू होने के पहले बनता है। पहली भारी वर्षा के बाद उसमें डूबी हुई सामग्रियां दोनों ओर की 1.2 मीटर पट्टी 2.4 मीटर चौड़ी पट्टी पर रेक बनती है इस प्रकार से ढेर की ऊंचाई लगभग 1 मीटर बढ़ जाती है। यह प्रक्रिया आर्द्रता क्षय से बचाती है और सड़न तुरंत आरंभ होना सुनिश्चित करती है। जब तीन से चार सप्ताह के बाद ढेर कम होता है तो इसे दूसरा टर्निंग दिया जाता है और अंदर की सामग्री के साथ बाहरी सामग्रियां मिलाकर नया ढेर बना लिया जाता है। लगभग एक माह या अधिक दिनों के बाद यह वर्षा की मात्रा पर निर्भर करता है, बादल वाले दिन से ढेर को अंतिम टर्निंग दिया जाता है। कम्पोस्ट को चार माह के बाद प्रयोग किया जा सकता है। गैर एरोबिक कम्पोस्टिंग, में सुविधाजनक आकार के गड्ढे में फार्म के अवशेषों को जमा किया जाता है यह लगभग 4.5 मीटर X 1.5 मीटर X 1 मीटर होता है। प्रत्येक दिन के संग्रहण को पतली परत में फैला दिया जाता है उसके ऊपर ताजा गो मूत्र (4.5 कि.ग्रा.), राख (140 से 170 ग्राम) और पानी (18 से 22 लीटर) का छिड़काव किया जाता है। तब यह सघन बना दिया जाता है। जब तक कच्ची सामग्री 30 से 46 सें. मी. इसके किनारे से ऊपर होती है तब इसे मिट्टी और गोबर के मिश्रण से प्लास्टर कर दिया जाता है। सघन आर्द्र सामग्रियां आगे बिना किसी प्रकार के कार्य के ही लगभग चार से पांच माहों में कम्पोस्ट बन जाती हैं। इस कम्पोस्ट में सामान्यत: लगभग 0.8 से 1 प्रतिशत नाइट्रोजन होता है। हरी खाद बनाने में लेगुमिनस पौधें का उत्पादन शामिल होता है उनका उपयोग उनके सहजीवी नाइट्रोजन या नाइट्रोजन फिक्सिंग क्षमता के कारण किया जाता है। कुछ क्षेत्रों में गैर लेगुमिनस पौध का भी उपयोग उनकी स्थानीय उपलब्धता, सूखा सहन क्षमता, त्वरित वृद्धि और प्रतिकूल परिस्थितियों के साथ अनुकूलन के कारण किया जाता है। सर्वोत्तम हरी खाद में निम्नलिखित गुण होने चाहिए: 1. तुरन्त स्थापना और अधिक बीज क्षमता दर्शाना 2. सूखा, छाया, बाढ़ और प्रतिकूल तापमान के प्रति सहनशीलता 3. पहले नाइट्रोजन फिक्सिंग शुरू करने और इसके सक्षय बरकरारता 4. बड़ी बायोमास को संचित करने की क्षमता और नाइट्रोजन 4-6 सप्ताह में 5. इसे शामिल करना सरल हो 6. वह तुरन्त सड़न योग्य हो 7. कीट और रोगों के प्रति सहनशील मध्य प्रदेश में, वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों और बाढ़ प्रबंधन कार्मिकों की एक विशेषज्ञ टीम के दिशानिर्देशन में जैविक कृषि 1565 गांवों में कार्यान्वित की जा रही है। फसलों के लिए पोषक हरा खाद कम्पोस्ट, फास्फोकम्पोस्ट और गाय के गोबर और मूत्र से तैयार किण्वित रूप द्वारा दिया जाता है। कीटों का प्रबंधन नीम और गोमूत्र आधारित किण्वन से किया जाता है। कम्पोस्टिंग के आठ भिन्न-भिन्न तरीके मध्य प्रदेश के लिए अनुशंसित है। वे आन्तरिक प्रविधियां हैं, मैडेप कम्पोस्ट, नैडेप फोस्फोकम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट भभूत अमृत पानी , संजीवनी, पीचर खाद, बायोगैस स्लरी, हरा खाद और जैव-उर्वरक। • अन्य पशु अपशिष्ट रिसाव बेहतर बनाता है। • फसल अपशिष्ट और हरा खाद हाइड्रॉलिक संवाहकता सुधारता है।
राधाकान्त जी के कार्यक्रम के अंश किसान हेल्पलाइन