किसानी सीखनी है तो राम औतार से मिलिए
जीरो बजट वाली प्राकृतिक संसाधनों से खेती, गुलाब से लेकर तमाम फूलों की खेती, सर्पगंधा से लेकर सफेदमूसली तक की खेती…गोबर गोमूत्र से खाद से लेकर कीटनाशक तक बनाने का कारखाना और भी बहुत कुछ …। महज एक हेक्टेअर भूमि में कुर्रैया (पीलीभीत) के किसान रामऔतार मौर्य ने उत्तम खेती की ऐसी मुकम्मल कार्यशाला बना रखी है, जिसे देख तक कृषि वैज्ञानिक भी दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं।
महज इंटरमीडिएट पास राम औतार ने खेती को ऐसा व्यवसायिक रूप दिया कि कृषि के तमाम शोधार्थी उनके इस ताने-बाने सीखने-समझने आते रहते हैं। इतना ही नहीं प्राकृतिक खेती ने ही उन्हें नेचुरोपैथी (प्राकृतिक विधि) का चिकित्सक भी बना दिया। अब वे दूसरे किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत बने हैं।
बात वर्ष 1997 की है। राम औतार मौर्य पंतनगर में किसान मेला गए थे। वहां मशरूम की खेती से संबंधित कुछ कागज मिले तो स्टाल से विस्तृत जानकारी ली। इसके बाद गांव आकर खंडहर पड़े अपने मकान के एक हिस्से में मशरूम की खेती शुरू की। वर्ष 2000 में जैविक खेती पर प्रयोग शुरू किए। वर्मी कंपोस्ट से लेकर सींग तक की खाद बनाकर अपने खेत में उपयोग करने लगे।
उन्होंने काऊ पैड फिक्स (सीपीपी) नाम से एक जैविक खाद बनाई, जिसमें दुधारू जानवर के गोबर में मुर्गी के अंडे का छिलका व बांबी की मिट्टी के साथ कुछ कल्चर मिलाए जाते हैं। महज 90 दिन में तैयार होने वाली यह जैविक खाद भूमि शोधन और बीज शोधन दोनों के लिए काफी असरकारक साबित हुई। अब वे इस खाद को बनाकर बिक्री भी कर लेते हैं।
इसी प्रकार गाय के सींग में गोबर आदि भरकर डायनमिक खाद बनाई। जैविक खादों के बाद गोमूत्र में नीम की पत्ती व कुछ अन्य चीजें मिलाकर नीमास्त्र तो गोमूत्र में मदार का पत्ता व केचुआ मिलाकर ब्रह्मास्त्र नाम से कीटनाशक बनाए। खेत में लंबे समय तक नमी बनाए रखने व खेत में ही बरसाती जल संग्रह करने का इंतजाम किया। इसके बाद तो एक जोड़ी बैल के सहारे अपनी एक हेक्टेयर खेती को जीरो बजट पर पहुंचा दिया।
दूर तलक है उपज की महक
शुरुआती दौर में मशरूम के अलावा गेहूं धान व गन्ना की खेती करने वाले राम औतार ने वर्ष 2005 से गुलाब, गेंदा, गुलदावरी, रजनीगंधा, डहलिया आदि फूलों की खेती की तो पीलीभीत से लेकर बरेली मंडी तक उनके फूलों की महक पहुंची।
इस दौरान उन्होंने कानपुर व पंतनगर कृषि विश्वविद्यालयों के किसान मेलों से लेकर मंडल स्तर पर लगने वाले मेलों में अपनी साइकिल से ही उपस्थिति दर्ज कराते रहे। वर्ष 2008 में उद्यान विभाग की मदद से अश्वगंधा, सर्पगंधा, सनाय, पीपली, गिलोय, एलोवरा, आरुसा और मुरेठी जैसी औषधीय खेती शुरू की।
एक हेक्टेअर खेती और 11 लोगों का परिवार
राम औतार के परिवार में 11 सदस्य हैं। महज एक हेक्टेअर खेती से पूरे परिवार न केवल बेहतर ढंग से पालन पोषण हो रहा है बल्कि किसी नौकरीपेशा से भी अच्छी जिदगी जी रहे हैं। प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर जिदगी जीने वाले 65 वर्षीय राम औतार को तो याद भी नहीं है कि उन्हें कभी एलोपैथिक दवा का इस्तेमाल करना पड़ा हो।
कंजा, गिलोय से बुखार, शिवांगी, करेला, फरेंदा (जामुन) से मधुमेह जैसी तमाम जड़ी बूटियां भी वे बनाते हैं। राम औतार को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम ने उन्हें जैविक खेती के लिए सम्मानित कर चुके हैं। इसके अलावा भी कई संस्थानों ने उन्हें सम्मानित किया है।