जिमीकंद की बुवाई मई तक पूरी कर लें
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जिमीकन्द अपने औषधीय एवं भोज्य गुणों के कारण जाना जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसकी खेती छोटे स्तर पर घरों के आसपास पेड़ों की छाया में की जाती है। इसके औषधीय गुणों की वजह से मांग बढऩे की वजह से इसकी खेती व्यावसायिक रूप लेने लगी है। इसकी खेती को अपनाने के इच्छुक किसान मार्च से मई तक इसकी बोआई पूरी कर लें।
इसकी अच्छी उपज के लिए बलुई दोमट व दोमट मिट्टी सबसे अच्छी रहती है। खेत अच्छी तरह समतल तैयार होना चाहिए जिसमें दीमक के बचाव के लिए अंतिम जुताई में प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम मिथाइल पैराथियान मिला देना चाहिए। अच्छी उपज के लिए जैविक खाद के अतिरिक्त प्रति हेक्टेयर 120 किग्राा नाइट्रोजन, 80 किग्रा फॉस्फेट व 120 किग्रा पोटाश की आवश्यकता होती है। बुआई के समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा का प्रयोग करना चाहिए शेष मात्रा का बुआई के 65-70 दिन बाद खड़ी फसल में प्रयोग करना चाहिए।
उद्यान विभाग के सीनियर इंस्पेक्टर अजय कुमार श्रीवास्तव बताते हैं कि एक हेक्टेयर खेत की बुआई के लिए 75 कुंतल कंद की आवश्यकता होती है। बुआई के दौरान एक कंद लगभग 700 ग्राम का होना चाहिए। कंद के बीजो को 2 प्रतिशत तूतिया या 0.2 प्रतिशत बावेस्टीन के घोल में दस मिनट तक डुबों दें या कंद को गाोबर के घोल मे डाल कर छाया में सुखा लें।75 कुंतल जिमीकंद की आवश्यकता एक हेक्टेयर खेत की बुआई के लिए होती है।
700 ग्राम बुआई के दौरान एक कंद का वजन होना चाहिए।