टमाटर की बैक्टीरियल विल्ट या जीवाणु उखटा रोग

बैक्टीरियल विल्ट मिट्टी जनित जीवाणु (राल्स्टोनिआ सोलेनेसीरम) के कारण होता है । टमाटर के अलावा यह आलू, बैंगन और शिमला मिर्च में भी हमला करता है । कुल्लू घाटी में इस बीमारी का प्रकोप कम है । अगर यह रोगज़नक़ एक बार  मिट्टी में स्थापित हो जाता है तो यह नौ साल तक उस खेत में रह सकता है ।

पहचान

रोग के कारण कुछ ही दिनों में पौधे का पूरा भीतरी तंत्र कमजोर पड़ जाता है । और बाद में अचानक ही  पत्ते गिरना शुरू हो जाते हैं । ग्रसित पौधे के पत्ते बिना पीले हुए हरे ही रहते हैं ।

रोग का समय

शलजम की खेती

शलजम स्वाद में जितना स्वादिष्ट होता है, उतना ही स्वास्थ के लिए लाभकारी भी है | किन्तु आप यह जरूर जान ले कि शलजम किसी बीमारी का उपचार नहीं है, यह सिर्फ रोग से बचाव और लक्षण को कम करने में कुछ हद तक कारगार है शलजम (टरनिप) एक सफेद कंदमूल वाली सब्जी है, जो पोष्टिकता से भरपूर होने के कारण स्वास्थवर्धक होती है। इसमें कैलोरी बहुत कम होती है। इसलिए जो किसान स्वस्थ रहना चाहते है, उनके लिए बहुत ही फायदेमंद है। लेकिन आयुर्वेद में शलजम को खाने के अलावा औषधि के रूप में भी उपयोग किया जाता है।

शलजम में मौजूद पोषक तत्व

जंगली जानवरों के आतंक से परेशान किसान

जंगली जानवरों के आतंक से परेशान किसान

नीलगाय , बंदर , सुअर और जंगली जानवरों द्वारा फसलों को होने वाले भारी नुकसान से परेशान किसानों ने कुछ स्थानों पर सब्जियों तथा बागवानी फसलों की खेती से मुंह मोडना शुरू कर दिया है ।

अफीम की खेती पर मौसम की मार, अच्छी ठंड नहीं पड़ने से कमजोर पड़े पौधे

अफीम की खेती पर मौसम की मार, अच्छी ठंड नहीं पड़ने से कमजोर पड़े पौधे

राजस्थान में भीलवाड़ा जिले के बिजोलिया उपखंड में पिछले साल की तुलना में ठंड कम पड़ने से न केवल अफीम के पौधों की ग्रोथ में कमी आई है, बल्कि पौधों में रोग लगने से भी खेती पर बुरा असर पड़ने की संभावना बढ़ गई है. इससे किसानों में चिंता देखी जा रही है क्योंकि उन्हें अफीम उत्पादन में कमी का डर सताने लगा है. यहां अफीम को काला सोना भी कहा जाता है.

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