भिंडी में कीट और बीमारियों के लक्षण, बचाव
भिंडी गर्मी और बारिश के मौसम में उगाई जाने वाली महत्वपूर्ण फसल है. बाजार में भिंडी की ज्यादातर मांग होने से किसानों को अच्छा-खासा भाव मिल जाता है, जिससे उनकी बहुत अच्छी आमदनी होती है, लेकिन कई बार भिंडी की फसल में कुछ कीड़े और बीमारियां लग जाती हैं, जिससे फसल की पैदावार और गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है. अगर भिंडी की खेती से अच्छी उपज लेनी है, तो फसल को कीटों और बीमारियों से बचाना बहुत ज़रूरी है. आइए आपको भिंडी की फसल की प्रमुख बीमारियां और उनके रोकथाम की जानकारी देते हैं.
प्रमुख बीमारियां और उनकी रोकथाम
पौध और जड़ गलन: जब भिंड़ी की फसल में यह रोग लगता है, तो पौधे उगते समय भूमि की सतह से गल जाते हैं. इस रोग की रोकथाम करना बेहद ज़रूरी है. इसके लिए बीज को ढाई ग्राम बाविस्टिन प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए, साथ ही बीमार पौधों को फसल से निकालते रहें.
पीला शिरा मोजेक: इस रोग में पत्तियों की शिराएं पीली, चितकबरी, प्यालेनुमा, फल छोटे और कम लगते हैं, इसलिए भिंडी की फसल के लिए यह सबसे खतरनाक बीमारी है. यह रोग रस चूसने वाले कीट सफ़ेद मक्खी से फैलता है. इस रोग से फसल को बचाने के लिए रोग रोधी किस्म पी-7 लगाएं. इसके अलावा कीटनाशक दवाओं का नियमित छिड़काव भी कर सकते हैं.
प्रमुख कीड़े और उनकी रोकथाम
सफ़ेद मक्खी: यह कीट पत्तों के लिए बहुत नुकसानदायक होता है. यह कीट पत्तों की निचली सतह से रस चूस लेता है, साथ ही इससे पीला मोजेक रोग फैलाता है. इसको रोकने के लिए लगभग 300 से 500 मिली मैलाथियान 50 ई.सी. को लगभग 200 से 300 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव कर देना चाहिए.
हरा तेला: इस प्रकार के छोटे कीट भी पत्तों की निचली सतह से रस चूस लेते हैं, जिससे पत्ते किनारों से मुड़ जाते हैं. अगर इस कीट का प्रकोप ज्यादा हुआ, तो पत्ते सूखकर गिरने लगते हैं, इसलिए इन कीटों की रोकथाम के लिए मैलाथियान का उपयोग कर सकते हैं.
फल और तना छेदक सुंडियां: इस कीट की सुंडियां बेलनाकार, हल्की पीली और भूरे काले धब्बे वाली होती हैं. ये फसल की कलियों, फूलों और फलों को बहुत नुकसान पहुंचा सकती हैं, इसलिए इनकी रोकथाम समय पर करना बहुत ज़रूरी है. इसके लिए लगभग 400 से 500 मिली मैलाथियान या फिर कार्बोरिल 50 धू.पा. को 250 से 300 लीटर पानी में मिलाकर तैयार कर लें. इसका छिड़काव लगभग 15 दिनों के बाद करते रहें.