पपीता

पपीते की खेती की उन्‍नत विधि

पपीता सबसे कम समय में फल देने वाला पेड है इसलिए कोई भी इसे लगाना पसंद करता है, पपीता न केवल सरलता से उगाया जाने वाला फल है, बल्कि जल्‍दी लाभ देने वाला फल भी है, यह स्‍वास्‍थवर्धक तथा लोक प्रिय है, इसी से इसे अमृत घट भी कहा जाता है, पपीता में कई पाचक इन्‍जाइम भी पाये जाते है तथा इसके ताजे फलों को सेवन करने से लम्‍बी कब्‍जियत की बिमारी भी दूर की जा सकती है।

जलवायु 

पपीता की खेती स्वास्थवर्धक तथा लोकप्रिय बागबानी

जलवायु

पपीते की अच्छी खेती गर्म नमी युक्त जलवायु में की जा सकती है. इसे अधिकतम 38 डिग्री सेल्सियस से 44 डिग्री सेल्सियस तक तापमान होने पर उगाया जा सकता है. न्यूनतम पांच डिग्री सेल्सियस से कम नही होना चाहिए. लू तथा पाले से पपीते को बहुत नुकसान होता है. इससे बचने के लिए खेत के उत्तरी पश्चिम में हवा रोधक वृक्ष लगाना चाहिए. पाला पड़ने की आशंका हो तो खेत में रात्रि के अंतिम पहर में धुंआ करके एवं सिंचाई भी करते रहना चाहिए.

भूमि

पपीता का उन्नत जैविक खेती

जलवायु -
पपीता यद्यपि उष्ण जलवायु का पौधा है , फिर भी यह उपोष्ण जलवायु में अच्छी तरह उगाया जाता है इसका उत्पादन समुद्र तल से 100 मीटर कि उचाई तक सुगमता से होता है . 12 डिग्री से . से नीचे का तापमान इसकी उत्पादकता को प्रभावित करता है . इसके लिए 20-25 डिग्री से . तापक्रम . उचित रहता है . जल भराव , ओला तथा अधिक तेज हवाएं इसे नुकसान है पहुंचाती .

देशी पपीता: लाभदायक खेती

पपीता (केरिका पपाया) भारत में बहुतायत में उगाया जाता है। इसकी खेती भारत के अधिकांश राज्यों में की जाती है। इसके फल में 0.5 प्रतिशत प्रोटीन, 9.0 प्रतिशत कार्बोहाइडेªट , 0.1 प्रतिशत वसा तथा प्रचुर खनिज तत्व (आयरन, कैल्शियम तथा फास्फोरस), 25 प्रतिशत विटामिन-ए (अन्र्तराष्ट्रीय इकाई ), 70 मिलीग्राम विटामिन-सी प्रति 100 ग्राम फल में पाये जाते है।
इसके कच्चे फल से पपेन निकाला जाता है, जो च्युइन्गम बनाने, चमड़ा उद्योग तथा पाचक दवाईयां बनाने में किया जाता है। इसके पके फल लिवर एवं पाचनतंत्र की सक्रियता को बढ़ाते हैं साथ ही स्वादिष्ट एवं रूचिकर होते है।

भूमि एवं जलवायु:-

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