आधुनिक खेती से संवर रही किसान की किस्मत
'उत्तम खेती, मध्यम वान, अधम चाकरी भीख सामान' यह लोकयुक्ति प्रखंड के किसान 'श्री' योजना से सम्मानित कृषक उमेश चंद्र पांडेय पर सटीक बैठती है। पारंपरिक तरीके या आधुनिक पद्धति से खेती में इस किसान को महारथ हासिल है। अपनी बेहतरीन खेती के तौर-तरीके से लोहा मनवा चुका यह किसान अन्य कृषकों के लिए मिसाल है। इनके द्वारा उपजाये गये धान के ग्यारह प्रजातियों के जीनों को परीक्षण के लिए अमेरिका के कृषि शोध प्रयोगशालाओं को भेजा जा चुका है। इन्हीं कुछ योगदानों के कारण राज्य सरकार द्वारा इन्हें प्रखंड किसान 'श्री' सम्मान योजना से नवाजा गया है।
श्री पांडेय पारंपरिक व आधुनिक ढंग से बीजों की नर्सरी तथा बागवानी के तहत सब्जी, केला की खेती के लिए जिला ही नहीं प्रदेश में भी चर्चित हैं। क्षेत्र के कृषि वैज्ञानिकों, कृषि विशेषज्ञों एवं प्रगतिशील किसानों के बीच आधुनिक कृषि उपकरणों के साथ अत्याधुनिक तरीके से खेती के लिए प्रसिद्ध है। बीजों के प्रत्यक्षण एवं परीक्षण के लिए स्वयं से कई विधियों का इजाद किये हैं। मसलन जीरो ट्रील के पिछले पिस्टलों को बंद कर सिर्फ अगले भाग में लगे पिस्टलों से बुआई कर अधिक उत्पादन प्राप्त करना शामिल है। इन्हीं कई बेहतर व आधुनिकता के लिए राज्य सरकार द्वारा 15 अगस्त, 2007 को तत्कालीन कृषि मंत्री सुचित्रा सिन्हा के हाथों प्रखंड किसान 'श्री' योजना से सम्मानित किया गया। रवीन्द्र कुमार के अनुसार उमेश जी के द्वारा उपजाये गये धान के ग्यारह प्रभेदों के जीनों को वर्ष 2009 में तत्कालीन जिलाधिकारी डा.सफीना ए.एन. के कृषि वैज्ञानिक पति द्वारा शोध के लिए अमेरिका स्थित कृषि शोध संस्थाओं एवं प्रयोगशालाओं को भेजा गया था। श्री पांडेय बताते हैं कि आधुनिक खेती के साथ पारंपरिक खेती करना बहुत जरूरी है। फिलहाल श्री पांडेय को धान, गेहूं एवं सब्जी की खेती से प्रत्येक वर्ष अच्छी आमदनी हो जाती है। वर्ष 1989 में स्नातक करने के बाद कई नौकरी को छोड़ खेती को अपनाया और किस्मत ने भी इनका साथ दिया।
धान की प्रजातिया-
राजेन्द्र मंसुरी, राजेन्द्र श्वेता, राजेन्द्र कस्तूरी, राजेन्द्र सुवाषिनी, सरजू-52, 7029 नाटी मंसूरी, पूसा बासमती, राजश्री, जयश्री, सुगंधा बासमती तथा रूपाली।
प्रजातियों की विशेषताएं
राजेन्द्र श्वेता : इस प्रजाति में सूखा सहने की क्षमता है। कम पानी में अथवा ज्यादा पानी में इस महीन धान की उपज अन्य महीन धानों से ज्यादा है।
पूसा बासमती : कम अवधि एवं ऊंचे भूखंड पर भी कम पानी में तैयार हो सकता है। खुशबूदार लंबा धान 110 दिनों के भीतर तैयार हो जाता है।
राजेन्द्र कस्तूरी : कम पानी में होने वाली यह अपनी तरह की पहली सुगंधित धान है जिसमें प्राकृतिक आपदाओं को सहने की अनूठी क्षमता है। इसका चावल छोटा एवं सुगंध से भरपूर है।
बाटी मसूरी (7029) : उत्पादन में अव्वल, इस पर रोगों का आक्रमण नहीं के बराबर होता है। लंबी अवधि में अधिक उत्पादन वाली प्रजाति। गरीबों के लिए वरदान
सरयू (52) : नाटी कद की मोटे दाने में कम अवधि में होने वाली अच्छी प्रजाति। इसके बाद समय पर गेहूं की फसल ली जा सकती है।
जयश्री एवं राजश्री : यह दोनों समान गुणवत्ता वाली खाने में मुलायम प्रजाति है।
सुगंधा बासमती : छोटे दाने में अधिक उत्पादन देने वाली कम पानी एवं ऊंची जमीन पर होने वाली सर्वोत्तम प्रजाति खुशबुदार ।
राजन्द्र-1 : नाटी मंसूरी की तरह ही ज्यादा उत्पादन देने में सक्षम लेकिन कम पानी में भी होने वाली प्रजाति ।
साभार जागरण