कुपोषण

शरीर के लिए आवश्यक सन्तुलित आहार लम्बे समय तक नही मिलना ही कुपोषण है। कुपोषण के कारण बच्चों और महिलाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे वे आसानी से कई तरह की बीमारियों के शिकार बन जाते हैं। अत: कुपोषण की जानकारियाँ होना अत्यन्त जरूरी है। कुपोषण प्राय: पर्याप्त सन्तुलित अहार के आभाव में होता है। बच्चों और स्त्रियों के अधिकांश रोगों की जड़ में कुपोषण ही होता है। स्त्रियों में रक्ताल्पता या घेंघा रोग अथवा बच्चों में सूखा रोग या रतौंधी और यहाँ तक कि अंधत्व भी कुपोषण के ही दुष्परिणाम हैं। इसके अलावा ऐसे पचासों रोग हैं जिनका कारण अपर्याप्त या असन्तुलित भोजन होता है।
 पहचान
यदि मानव शरीर को सन्तुलित आहार के जरूरी तत्त्व लम्बे समय न मिलें तो निम्नलिखित लक्षण दिखते हैं। जिनसे कुपोषण का पता चल जाता है।

1. शरीर की वृद्धि रुकना।

2. मांसपेशियाँ ढीली होना अथवा सिकुड़ जाना।

3. झुर्रियाँ युक्त पीले रंग की त्वचा।

4. कार्य करने पर शीघ्र थकान आना।

5. मन में उत्साह का अभाव चिड़चिड़ापन तथा घबराहट होना।

6. बाल रुखे और चमक रहित होना।

7. चेहरा कान्तिहीन, आँखें धँसी हुई तथा उनके चारों ओर काला वृत्त बनाना।

8. शरीर का वजन कम होना तथा कमजोरी।

9. नींद तथा पाचन क्रिया का गड़बड़ होना।

10. हाथ पैर पतले और पेट बढ़ा होना या शरीर में सूजन आना (अक्सर बच्चों में)। डॉक्टर को दिखलाना चाहिए। वह पोषक तत्त्वों की कमी का पता लगाकर आवश्यक दवाइयाँ और खाने में सुधार के बारे में बतलाएगा।

कुपोषण के कारण
विकसित राष्ट्रों की अपेक्षा विकासशील देशों में कुपोषण की समस्या विकराल है। इसका प्रमुख कारण है गरीबी। धन के अभाव में गरीब लोग पर्याप्त, पौष्टिक चीजें जैसे दूध, फल, घी इत्यादि नहीं खरीद पाते। कुछ तो केवल अनाज से मुश्किल से पेट भर पाते हैं। लेकिन गरीबी के साथ ही एक बड़ा कारण अज्ञानता तथा निरक्षरता भी है। अधिकांश लोगों, विशेषकर गाँव, देहात में रहने वाले व्यक्तिय़ों को सन्तुलित भोजन के बारे में जानकारी नहीं होती, इस कारण वे स्वयं अपने बच्चों के भोजन में आवश्यक वस्तुओं का समावेश नहीं करते, इस कारण वे स्वयं तो इस रोग से ग्रस्त होते ही हैं साथ ही अपने परिवार को भी कुपोषण का शिकार बना देते हैं। इनके अलावा कुछ और कारण निम्न हैं-

गर्भावस्था के दौरान लापरवाही
भारत में हर तीन गर्भवती महिलाओं में से एक कुपोषण की शिकार होने के कारण खून की कमी अर्थात् रक्ताल्पता की बीमारी से ग्रस्त हो जाती हैं। हमारे समाज में स्त्रियाँ अपने स्वयं के खान-पान पर ध्यान नहीं देतीं। जबकि गर्भवती स्त्रियों को ज्यादा पौष्टिक भोजन की आवश्यकता होती है। उचित पोषण के अभाव में गर्भवती माताएँ स्वयं तो रोग ग्रस्त होती ही हैं साथ ही होने वाले बच्चे को भी कमजोर और रोग ग्रस्त बनाती हैं। अक्सर महिलाएँ पूरे परिवार को खिलाकर स्वयं बचा हुआ रूखा-सूखा खाना खाती हैं, जो उनके लिए अपर्याप्त होता है।

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