जैविक खाद

जैविक खेती (Organic farming) कृषि की वह विधि है जो संश्लेषित उर्वरकों एवं संश्लेषित कीटनाशकों के अप्रयोग या न्यूनतम प्रयोग पर आधारित है तथा जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बचाये रखने के लिये फसल चक्र, हरी खाद, कम्पोस्ट आदि का प्रयोग करती है।जैविक खाद वे सूक्ष्म जीव हैं जो मृदा में पोषक तत्वों को बढ़ा कर उसे उर्वर बनाते हैं। प्रकृति में अनेक जीवाणु और नील हरित शैवाल पाए जाते हैं जो या तो स्वयं या कुछ अन्य जीवों के साथ मिलकर वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का यौगिकीकरण करते हैं( वातावरण में मौजूद गैसीय नाइट्रोजन को अमोनिया में परिवर्तित करते हैं)। इसी प्रकार, प्रकृति में अनेक कवक और जीवाणु पाए जाते हैं जिनमें मृदा में बंद्ध फॉस्फेट को मुक्त करने की क्षमता होती है। कुछ ऐसे कवक भी होते हैं जो कार्बनिक पदार्थों को तेजी से विघटित करते हैं जिसके फलस्वरूप मृदा को पोषक तत्व प्राप्त होते हैं। अत: जैविक खादें नाइट्रोजन के यौगिकीकरण, फॉस्फेट की घुलनशीलता और शीघ्र पोषक तत्व मुक्त करके मृदा को उपजाऊ बनाती हैं।

एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन

एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें फसलों को हानिकारक कीड़ों तथा बीमारियों से बचाने के लिए किसानों को एक से अधिक तरीकों को जैसे व्यवहारिक, यांत्रिक, जैविक तथा रासायनिक नियंत्रण इस तरह से क्रमानुसार प्रयोग में लाना चाहिए ताकि फसलों को हानि पहुंचाने वालें की संख्या आर्थिक हानिस्तर से नीचे रहे और रासायनिक दवाईयों का प्रयोग तभी किया जाए जब अन्य अपनाए गये तरिके से सफल न हों।

प्राकृतिक हलवाहा केंचुआ से पायें प्राकृतिक जुताई

कहा जाता है कि मनुष्य धरती पर ईष्वर की सबसे खूबसूरत रचना है। डार्विन के ‘योग्यतम की उत्तरजीविता’ सिद्धांत के अनुसार मनुष्य सभी प्रजातियों में श्रेष्ठ प्रजाति है। लेकिन जीव विज्ञानी क्रिस्टोलर लाॅयड ने अपनी पुस्तक ‘व्हाट आॅन अर्थ इवाॅल्व्ड’ में पृथ्वी पर मौजूद 100 सफल प्रजातियों की सूची में केंचुए को सबसे ऊपर रखा है। उनके अनुसार केंचुआ धरती पर लगभग 60 करोड़ वर्षों से मौजूद है। जबकि मानव प्रजाति धरती पर लगभग 16 लाख वर्ष पूर्व से उपस्थित है। 

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