फसलों को बीमारियों से बचायें

फसलों को बीमारियों से बचायें

वर्तमान समय में खेत की सतत निगरानी करते हुये फसल में रोगों से बचाव हेतु उपाय कर लें। बताया कि अरहर व धान का पत्ती लपेटक रोग से पीले रंग की सूड़ियाॅ पौधे की चोटी की पत्तियों को लपेटकर सफेद जाला बना लेती हैं और उसी में छिपी पत्तियों को खाती हैं और बाद में फूलों,फलों को नुकसान पहुॅचाती हैं। बचाव हेतु मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिषत 1 लीटर या क्यूनालफास 25 प्रतिशत ईसी 1.250 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें या नीम का तेल गौमूत्र के साथ स्प्रे करें ।
धान का गन्धी बग- 
यह हरे रंग का बेलनाकार कीट होता है जो बाली से दूध चूसकर फसल को हानि पहुॅचाता है। इससे बचाव हेतु मैलाथियान 5 प्रतिषत धूल अथवा फेनवेलरेट 0.4 प्रतिषत धूल 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। धान में तना छेदक रोग में कीट की पूर्ण विकसित सूड़ी हल्के पीले रंग के शरीर तथा नारंगी पीले रंग की सिर वाली होती है जो फसल के लिये हानिकारक है। इनके आक्रमण के फलस्वरूप फसल के वानस्पतिक अवस्था में मृतगोभ तथा बाद में प्रकोप होने पर सफेद बाली बनती है। इनके नियंत्रण हेतु कार्बोयूरान 3 जी 20 किलो या कारटाप हाइड्रोक्लोराइड दानेदार चूर्ण 17 से 18 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। धान की पत्तियों का भूरा धब्बा पत्तियों पर गहरे कत्थई रंग के गोल अण्डाकार धब्बे दिखाई देते हैं तथा इन धब्बों के चारों तरफ हल्के पीले रंग का घेरा बन जाता है जो इस रोग का विषेश लक्षण है। इसके उपचार हेतु मैंकोजेब 75 प्रतिशत या जिनेब 75 घू0चू0 प्रतिशत को 2 कि0ग्रा0 प्रति हेक्टेयर की दर से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। धान का फुदका रोग में कीट के शिशु एवम् प्रौढ़ दोनों पौधों के किल्लों के बीच रहकर पत्ती का रस चूसते हैं। नीम  का काडा ,तम्बाकू का काडा और गौमूत्र का स्प्रे इसका विशेष रोकथाम करने का साधन है ।
आवश्यकता से अधिक चूसा हुआ रस निकलने के कारण पत्तियों पर काला कंचुल हो जाता है। वानस्पतिक अवस्था में इसके प्रकोप से पौधे छोटे रह जाते हैं। इसे हापर बर्न कहते हैं। इसके उपचार हेतु नीम आयल 1.5 लीटर या क्यूनालफाॅस 25 प्रतिषत ईसी1.5 लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिषत 250 मिली0 प्रति हे0 की दर से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। धान का फाल्स स्मट फफूॅदी का प्रकोप होने पर बाली में दाने फट जाते हैं तथा दाने के स्थान पर पीले रंग का चूर्ण दिखाई देता है। उत्पादन के साथ-साथ फसल की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। बीज अगले वर्श प्रयोग के उपयुक्त नहीं रह जाता है। इसके उपचार हेतु काबेण्डाजिम 12 प्रतिशत मैंकोजेब 63 प्रतिशत 1.5 कि0ग्रा0 या मैंकोजेब 75 प्रतिषत 2 कि0ग्रा0 अथवा प्रोपीकोनाजोल 25 प्रतिशत 500 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।  ट्राइकोडरमा विरीडी  अथवा ट्राइकाडेरमा हारजिएनम का प्रयोग कर सकते हैं ,5 लीटर देशी गाय का मठा लेकर उसमे 15 चने के बराबर हींग पीसकर घोल दें , इस घोल को स्प्रे करें।