भिण्डी की फसल में कीटों से निपटने का जैविक तरीका

श में विभिन्न सब्जियों के बीच भिंडी बड़े पैमाने पर पैदा की जाती है। पिछले कुछ सालों से इसके उत्पादन में थोड़ी कमी आई है जिसका कारण फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों, रोगों और सूत्रकृमि में हो रही वृद्धि है। भिण्डी की नरम और कोमल प्रकृति तथा उच्च नमी के कारण इसकी खेती में कीटों व रोगों के हमले की संभावना अधिक रहती है। एक  अनुमान के अनुसार कीटों व रोगों के प्रकोप से कम से कम 35 से 40 प्रतिशत उत्पादन का नुकसान हो सकता है।भी ने भिंडी की खेती को व्यावसायिक रूप से अपनाया है। इन सभी सफल कृषकों की समस्या एक ही है जिससे इन्हें नुकसान उठाना पड़ता है, वो है भिण्डी में लगने वाले रोग व कीट।
कीटों के कारण होने वाले नुकसान को कम करने के लिए किसान भिंडी पर कीटनाशकों की ज्यादा मात्रा का प्रयोग करता है। इसके कई गंभीर नुकसान हैं, जैसे- जो किस्म कम अंतराल पर काटी जाती हैं उनमें डाले जा सकने वाले कीटनाशक के अवशेष उच्च स्तर पर सब्जियों में रह जाते हैं जो उपभोक्ताओं के लिए बेहद खतरनाक हो सकते हैं। इसलिए भिण्डी में लगने वाले रोगों-कीटों के निवारण के लिए जैविक तरीके अपनाना न सिर्फ सुरक्षित है बल्कि किसानों की उपभोक्ताओं के प्रति जिम्मेदारी भी है।

साभार : गाँव कनेक्शन